ऋतुएं प्रकृति का नियम

आदमियों की एक बस्ती के पास कई तरह के वृक्ष थे। उन वृक्षों की लंबी-लंबी शाखाओं पर हरी-हरी पत्तियां थीं। उन पर छोटे-बड़े मीठे फल लगते थे। उन वृक्षों पर ढेर सारी चिड़ियों के घोंसले थे। उन घोंसलों में चिड़ियों के अंडे थे, छोटे-छोटे बच्चे थे। सुबह जब चिड़ियां दाना चुगने जातीं तो वृक्ष उनके अंडों व बच्चों की रखवाली करते थे। 
उन बड़े-बड़े वृक्षों के नज़दीक ही नीम का एक छोटा सा पौधा भी उग आया था। वह अभी छोटा था इसलिए उस पर चिड़ियां नहीं आती थीं। वह नीम का पौधा अपने आसपास के पेड़ों को देखता। उन पर ढेर सारी चिड़ियां रहती थीं। उनके घोंसले थे। वह सोचता, काश मेरी टहनियों पर भी चिड़ियां आ कर बैठतीं, घोंसला बनातीं।
वह आस लगाए चिड़ियाें की ओर देखता रहता। पर जब कोई भी चिड़िया उसकी टहनियों पर नहीं बैठती तो वह उदास हो जाता था।  
गर्मी का मौसम था। दिन बड़े हो गए थे। शाम के समय चिड़ियां अपने घोंसलों में लौट रही थीं। वे चहचहा रही थीं। वे झुंड का झुंड उड़तीं। आसपास का चक्कर लगातीं। फिर आकर अपने-अपने पेड़ों पर बैठ जातीं। 
एक बार फिर जब वे अपने-अपने पेड़ों पर बैठीं, तो नीम के पौधे ने उनसे पूछा, ‘चिड़ियां बहनों, तुम मेरी टहनियों पर क्यों नहीं बैठतीं? मेरी टहनियों पर घोंसला बनाओ न।’ 
एक चिड़िया ने कहा, ‘तुम अभी छोटे हो। तुम्हारी टहनियां अभी नाजुक हैं। वे हमारा वजन सह न सकेंगी और टूट जाएंगी।’ 
दूसरी चिड़िया ने समझाया, ‘तुम्हारे पत्ते अभी घने नहीं हुए हैं। तुम जब बड़े हो जाओगे, हमारे बच्चे भी बड़े हो जाएंगे। तब वे तुम पर घोंसले बना लेंगे।’ 
चिड़ियों की बात सुन कर नीम का पेड़ खुश हो गया। वह अपने बड़े होने का इंतजार करने लगा। 
इसी तरह दिन और रात बीतते गए। नीम का वह पौधा धीरे-धीरे बड़ा होता गया। बरसात बीत गई। जाड़ा आ गया और शेष पेड़ों की तरह नीम से पेड़ के भी पत्ते झड़ गए। 
नीम का पेड़ उदास हो गया। उसने आसपास के पेड़ों से पूछा, ‘क्या हमारे पत्ते अब फिर नहीं आएंगे? और क्या अब चिड़ियां भी घोंसले नहीं बनाएंगी?’ 
बरगद के एक बूढ़े पेड़ ने उसे समझाया, ‘बेटा, अभी तुम छोटे हो, तुम्हें प्रकृति के नियम की जानकारी नहीं है। तुम पहली बार पतझड़ का सामना कर रहे हो, इसलिए तुम घबरा गए हो। ऋतुओं के अनुसार हम पेड़ों में परिवर्तन होते हैं। तुम देख ही रहे हो कि गर्मी के जाने के बाद बरसात आया। फिर जाड़े के मौसम के आगमन के साथ-साथ पतझड़ का मौसम भी आ गया। साल में एक बार जब पतझड़ का मौसम आता है तब हमें अपने पुराने पत्ते त्यागने पड़ते हैं। उसके बाद फिर नए पत्ते आते हैं। यही प्रकृति का नियम है।’
‘नए पत्ते आने में कितने दिन लगेंगे।’ नीम के पेड़ ने पूछा।  
बात को आगे बढ़ाते हुए आम के पेड़ ने कहा, ‘आएंगे, बहुत जल्दी हमारे नए पत्ते ज़रूर आएंगे। जब गर्मी की दस्तक होगी और बसंत ऋतु आएगा तब हम पेड़ों पर बहार आएगी। फिर चारों तरफ रंग-बिरंगे फूल खिलेंगे और चिड़ियां मधुर गीत गाएंगी, तब हमारे नए पत्ते आ जाएंगे। फिर चिड़ियां भी हम पेड़ों पर अपने घोंसले बनाएंगी।’ 
और सचमुच ऐसा ही हुआ। जाड़े ने विदा ली और गर्मी का अहसास होने लगा। हर तरफ फूल खिलने लगे थे और चिड़ियां गाने लगी थीं। सभी पेड़ों की तरह नीम के पेड़ पर भी नए पत्तों की कोंपलें फूट आई थीं। फिर जल्द ही नए पत्ते निकल आए। 
जैसे-जैसे गर्मी बढ़ती गई, नीम के पेड़ पर खुशबूदार छोटे-छोटे फूल दिखने लगे। कुछ दिनों बाद फूल फल बन गए। अब वह पूरा बड़ा और घना छायादार पेड़ बन गया था।  उधर, चिड़ियों के बच्चे भी बड़े हो गए थे। वे उड़ना सीख गए थे। धीरे-धीरे नीम के फल पक कर पीले होने लगे। उनमें मिठास आने लगी। नीम के फल मीठे हुए तो और चिड़ियों ने भी वहां घोंसले बना लिए। 
नीम का पेड़ खुशी से झूम उठा। अब जब चिड़ियां उसकी शाखाओं पर बैठ कर खेलती-कूदती और चहचहातीं तो उसे बड़ा सुकून मिलता था। (उर्वशी)

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