देश में कब और कैसे थमेगी सांप्रदायिक हिंसा ?
देश में एक और सांप्रदायिक हिंसा हो गई। इस बार महाराष्ट्र का नागपुर शहर इन सांप्रदायिक हिंसा की आग से धधक उठा। टीवी पर जो आग की उठती लपटें दिखीं, घायल लोग व पुलिस वाले दिखे, क्षतिग्रस्त व जले वाहन नज़र आए, इसके गम्भीर मायने हैं। सवाल है कि क्या हमारे देश के समुदाय विशेष को आईएसआई लगातार भड़का रही है जिससे वह निरन्तर हिंसक होते जा रहे हैं। सवाल यह भी है कि क्या दुनियावी मंचों पर लगातार मजबूत हो रहे भारत को पुन: कमजोर करने की साज़िश के तहत अंतर्राष्ट्रीय ताकतों के इशारे पर यह सब कुछ हो रहा है।
नागपुर जैसी सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएं कैसे थमेंगी? आखिर ऐसी घटनाओं को रोकने में प्रथमदृष्टया हमारा पुलिस प्रशासन असहाय क्यों प्रतीत होता है और फिर घटना के बाद सक्रिय होकर स्थिति को काबू में करता है। सवाल यह भी है कि आखिर क्यों पुलिस बल की तमाम रणनीति फेल हो जाती है जिसकी कीमत इसके अधिकारियों-जवानों के साथ-साथ उन मेहनतकश लोगों को भी चुकानी पड़ती है जो अपने कार्यवश सड़क पर होते हैं या प्रभावित क्षेत्र से गुजरते हैं। प्रश्न यह भी है कि समय रहते ही पत्थर, ईंट-रोड़े छतों पर जमा होने की सूचना पुलिस को क्यों नहीं मिल पाती है? क्या हमारा खुफिया तंत्र बार-बार विफल हो रहा है या उसकी सूचना पर सही प्रशासनिक फैसले नहीं हो पाते हैं? यह सब कुछ प्रशासन को गम्भीर विचार करना चाहिए।
इस मामले में बयानबाजी भी सधी होनी चाहिए ताकि हिंसा और नहीं भड़के। सवाल यह भी है कि क्या इस क्षेत्र में नागरिक-पुलिस समन्वय समिति नहीं थी या फिर वह भी विफल साबित हुई। सवाल बहुत हैं और जवाब सिर्फ यही कि चुस्त-दुरुस्त प्रशासन ही ऐसी घटनाओं को रोक सकता है अन्यथा जन-धन की अप्रत्याशित क्षति होती रहेगी।
कहना न होगा कि नागपुर के महल क्षेत्र में दो समुदायों के बीच भड़की हिंसा पर कांग्रेस ने जिस तरह से भाजपा सरकार को ज़िम्मेदार ठहराया है, वह एक ओछी राजनीति का परिचायक है। ऐसे में एक कांग्रेस नेता ने कानून व्यवस्था बनाए रखने में सरकार की विफलता की जो आलोचना की है, वह उनकी दूषित सियासी मानसिकता का ही परिचायक है। ऐसी सियासी सोच के चलते ही साम्प्रदायिक हिंसा लाइलाज बीमारी बनती जा रही है। जानकारों का कहना है कि सियासी वर प्रशासनिक कमियों का ही नतीजा है कि हिंसा भड़क जाती है। उकसाऊ तत्वों का विधि सम्मत तरीके से सफाया करके ही इस समस्या का सार्थक समाधान किया जा सकता है। लोगों के मुताबिक जिस तरह से नागपुर के महल इलाके में हिंसा भड़की उससे प्रशासन की कार्यप्रणली पर ही सवाल उठता है। हैरत की बात है कि नागपुर के महल इलाके में दो समुदायों के बीच भड़की हिंसा पर जो राजनीति शुरू हुई, उससे दुर्भाग्यपूर्ण बात कुछ हो ही नहीं सकती!
भले ही कांग्रेस नेता ने सवाल उठाया है कि सांप्रदायिक सद्भाव के 300 साल के इतिहास वाले शहर में इस तरह की अशांति कैसे हो सकती है, लेकिन इसकी हकीकत उनसे ज्यादा कौन बयां कर सकता है। एक ओर उन्होंने कुछ राजनीतिक दलों पर अपने फायदे के लिए जानबूझकर तनाव पैदा करने का आरोप लगाया जबकि दूसरी तरफ सांप्रदायिक हिंसा रोकथाम विधेयक 2011 लाकर उनकी पार्टी ने किस तरह एकतरफा नियम बनवाए, वह हैरतअंगेज है।
यूं तो भारत में सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएं विशेषकर धार्मिक त्योहारों और जुलूसों के दौरान होती रही हैं, जिनमें 1946 की नोआखली हिंसा, 1989 का भागलपुर हिंसा, 1992 का बाबरी मस्जिद विध्वंस और हाल ही में मणिपुर और नूह में हुई हिंसा शामिल हैं। 1946 में बंगाल में सांप्रदायिक हिंसा हुई, जिसमें बड़ी संख्या में लोगों की जान गई। वहीं, 1989 के भागलपुर सांप्रदायिक दंगे के बाद भी कई जगह दंगे हुए जिसने कांग्रेस को हिला कर रख दिया, जिससे आजतक वह उबर नहीं पाई है। वहीं, 1992 के विवादास्पद बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद अयोध्या सहित देश भर में सांप्रदायिक हिंसा भड़क गई थी। जहां तक हाल की घटनाओं की बात है तो मणिपुर और नूह (हरियाणा) में सांप्रदायिक हिंसा हुई जिससे कई लोगों की जान गई और संपत्ति का नुकसान हुआ।
अन्य घटनाओं में 1921 का मोपला विद्रोह, 1947 का भारत विभाजन के समय हिंसा, और 1960 के दशक में पूर्वी भारत में हुई घटनाएं भी सांप्रदायिक हिंसा के उदाहरण हैं। जहां तक सांप्रदायिक हिंसा के कारणों की बात है तो धार्मिक आधार पर लोगों को बांटना इसकी मुख्य वजह है। वहीं राजनीतिक लाभ के लिए धार्मिक विभाजन को बढ़ावा दिया जाता है जिससे ऐसी घटनाएं बढ़ती हैं। सोशल मीडिया के माध्यम से नफरत और हिंसा को बढ़ावा देने से भी ऐसी घटनाएं घटती हैं। आर्थिक असमानता भी सांप्रदायिक हिंसा का कारण बनती है। अशिक्षित समाज में लोगों को आसानी से भड़काया जाता है। जहां तक सांप्रदायिक हिंसा के प्रभाव की बात है तो सांप्रदायिक हिंसा से समाज में दरार पैदा होती हैं और लोग एक-दूसरे पर भरोसा करना बंद कर देते हैं। ऐसी घटनाओं से लोगों की जान चली जाती है और संपत्ति का नुकसान होता है। सांप्रदायिक हिंसा से लोगों में डर और असुरक्षा की भावना पैदा होती है। (युवराज)