क्या एक बार फिर होंगे पाकिस्तान के टुकड़े ?
जब से संसार के मानचित्र पर पाकिस्तान नामक देश को जगह मिली। तब से उसका सबसे पहला उद्देश्य येन केन प्रकारेण भारत में आतंकी गतिविधियों को बढ़ाकर अस्थिरता फैलाना रहा है। कश्मीर पर अपना हक जताने के बहाने वह कई बार भारत पर प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष आक्रमण करने की भूल कर चुका है। वहां के राजनीतिक दल पाकिस्तानी जनता का ध्यान दैनिक जीवन की समस्याओं से इतर कश्मीर की ओर लगाए रखते हैं और उनकी वतन-परस्ती की भावनाओं का दोहन कर उन्हें भारत के विरुद्ध भड़काते रहते हैं। सन 1965 की लड़ाई में बुरी तरह मुंह की खाने के बाद 1971 में पूर्वी पाकिस्तान खो दिया।
पूर्वी पाकिस्तान खोने का बदला वह भारत में कई अलगाववादी आंदोलनों को हवा देकर लेने का प्रयास करता रहा। 1999 में कारगिल में फिर से मुंह की खाई। उसके पश्चात पठानकोट और उरी जैसे स्थानों पर सैनिक ठिकानों पर छिपकर आतंकी घटनाओं को अंजाम दिया। परन्तु बदले में उससे भी अधिक नुकसान उसे उठाना पड़ा तथा अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के समक्ष न उसे स्वीकार करते बना और न अस्वीकार बनते। आज आतंक की उसी आग में पाकिस्तान स्वयं झुलसने लगा है। अभी 11 मार्च को बलोच लिबरेशन आर्मी ने जाफर एक्सप्रेस को हाइजैक कर जो संदेश दिया वह न केवल पाकिस्तान के सैन्य बलों के लिए चुनौती है, बल्कि बलोचिस्तान में दशकों से चल रहे संघर्ष की जटिलता को भी उजागर कर दिया।
जाफर एक्सप्रेस को हाइजैक करना महज एक आतंकवादी हमला नहीं था, बल्कि एक गहरे असंतोष और विद्रोह की अभिव्यक्ति थी, जो बलोच लोगों के दर्द, उनकी उपेक्षा और उनके अधिकारों के लिए संघर्ष को दर्शाती है। इसके ठीक चार दिन बाद 15 मार्च को नोशकी में हुए एक और आत्मघाती हमले ने इस विद्रोह की आग को और भड़का दिया। बीएलए ने दावा किया कि उसने 90 पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया। हालांकि सरकार इस संख्या को कम बताकर अपनी विफलता को छिपाने की कोशिश कर रही है। इन घटनाओं ने न केवल पाकिस्तानी सेना की कमज़ोरियों को उजागर किया, बल्कि यह भी सवाल उठाया कि क्या बलोचिस्तान पर उसका नियंत्रण वास्तव में उतना मजबूत है, जितना वह दावा करती है।
बलोचिस्तान पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रांत है। सरकार द्वारा उपेक्षित, अपनी प्राकृतिक संपदा (तेल, गैस, सोना और तांबे) के लिए जाना जाता है, लेकिन यह विडंबना ही है कि इस संपदा का लाभ वहां के मूल निवासियों, बलोच लोगों को लगभग नाममात्र मिलता है। बलोच समुदाय लंबे समय से यह आरोप लगाता रहा है कि पाकिस्तानी सरकार उनकी ज़मीन का शोषण तो करती है, लेकिन बदले में उन्हें विकास, शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी सुविधाओं से वंचित रखती है। 1948 में जब बलोचिस्तान को पाकिस्तान में शामिल किया गया, तब से ही वहां के लोग इसे एक जबरन अधिग्रहण मानते हैं। उस समय के शासक खान ऑफ कालात मीर अहमद यार खान ने कथित तौर पर स्वतंत्रता की मांग की थी, लेकिन सैन्य दबाव में उन्हें हार माननी पड़ी। तब से लेकर आज तक बलोचिस्तान में असंतोष की यह आग कभी शांत नहीं हुई। बीएलए जैसे संगठन इसी असंतोष की उपज हैं। यह संगठन बलोचिस्तान की आज़ादी के लिए लड़ रहा है और इसे पाकिस्तान से अलग एक स्वतंत्र राष्ट्र बनाना चाहता है। हालांकि इसे पाकिस्तान, अमरीका और कई अन्य देशों ने आतंकवादी संगठन घोषित किया है, लेकिन बलोच समुदाय के एक बड़े हिस्से के लिए यह उनकी आवाज़ बन गया है। जाफर एक्सप्रेस हाईजैक और नोशकी हमला इस बात का सबूत हैं कि बीएलए अब पहले से कहीं अधिक संगठित, साहसी और प्रभावशाली हो गया है। 11 मार्च को जाफर एक्सप्रेस पर हमला बीएलए के लिए एक टर्निंग प्वाइंट था। जाफर एक्सप्रेस हाईजैक के चार दिन बाद 15 मार्च को नोशकी में हुए आत्मघाती हमले ने बीएलए की ताकत को साबित कर दिया। इस हमले में उसने एक सैन्य काफिले को निशाना बनाया और दावा किया कि 90 सैनिक मारे गए। हालांकि स्थानीय पुलिस ने इस संख्या को केवल पांच बताया। यह अंतर दोनों पक्षों के प्रचार और सूचना युद्ध को दर्शाता है। बीएलए अपनी ताकत दिखाना चाहता है, जबकि सरकार नुकसान को कम करके स्थिति को नियंत्रण में दिखाने की कोशिश करती रही। लेकिन सच जो भी हो, यह स्पष्ट है कि बीएलए अब पहले की तुलना में कहीं अधिक मज़बूत और संगठित हो गया है। नोशकी हमले ने यह भी दिखाया कि बीएलए अब केवल रक्षात्मक रणनीति तक सीमित नहीं है। वह सक्रिय रूप से हमले कर रहा है और पाक सैन्य ठिकानों को निशाना बना रहा है। इसका मजीद ब्रिगेड, जो आत्मघाती हमलों के लिए जाना जाता है, इस विद्रोह का सबसे खतरनाक चेहरा बन गया है। इस ब्रिगेड ने पहले भी चीनी नागरिकों और उसकी परियोजनाओं को निशाना बनाया है, जिससे पाकिस्तान-चीन संबंधों पर भी असर पड़ा है।
बीएलए का कहना है कि वह अपने लोगों की आज़ादी के लिए लड़ रहा है, लेकिन इस प्रक्रिया में वह उन लोगों की जान ले रहा है जो शायद इस संघर्ष से सीधे जुड़े भी न हों। दूसरी ओर पाकिस्तानी सरकार और सेना की नीतियां भी इस हिंसा को बढ़ावा दे रही हैं। बलोच लोगों के साथ बातचीत करने, उनकी शिकायतों को सुनने और उन्हें मुख्यधारा में शामिल करने की बजाय सरकार ने दमन को चुना है। नतीजा यह है कि दोनों पक्षों के बीच की खाई बढ़ती जा रही है और आम लोग इसकी कीमत चुका रहे हैं।
बीएलए की हालिया कार्रवाइयां इस बात का संकेत हैं कि बलोचिस्तान में स्थिति अब सरकार के नियंत्रण से बाहर हो रही है। पहले बीएलए को एक कमजोर संगठन माना जाता था, जो छिटपुट हमले ही कर सकता था, लेकिन अब वह बड़े पैमाने पर हमले करने में सक्षम हो गया है। कई विशेषज्ञों का मानना है कि अगर पाकिस्तान ने अपनी नीति नहीं बदली तो यह विद्रोह और बढ़ेगा।
कुछ तो यह भी कहते हैं कि पाकिस्तान चार हिस्सों में बंट सकता है—जैसे पंजाब, सिंध, बलोचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा। यह भविष्यवाणी भले ही अतिशयोक्ति लगे, लेकिन बलूचिस्तान में बढ़ती अशांति इसे असंभव भी नहीं बनाती। बीएलए का कहना है कि वह तब तक लड़ता रहेगा, जब तक बलोचिस्तान को आज़ादी नहीं मिल जाती। बीएलए ने इन हमलों से पाकिस्तान को यह संदेश दिया है कि वह अपनी मांगों को मनवाने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है।
पाकिस्तान के सामने अब दो रास्ते हैं, या तो वह बलोच लोगों के साथ संवाद शुरू करे, उनकी शिकायतों को सुने और उन्हें सम्मान दे या फिर सैन्य दमन को जारी रखे और इस आग को और भड़कने दे। बलोचिस्तान की यह जंग अभी खत्म होने वाली नहीं है। क्या पाकिस्तान का मानचित्र एक बार फिर बदलने वाला है? क्या पाकिस्तान एक बार फिर से टूटने जा रहा है? ये प्रश्न अभी काल के गर्भ में हैं। इनका उत्तर समय ही देगा।
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