अदालतों की पारदर्शिता

इस माह 14 मार्च को दिल्ली हाईकोर्ट के एक जज के घर से बड़ी मात्रा में नकदी मिलने की बड़े स्तर पर चर्चा हो रही है। देश के अदालती प्रबंध पर भी इससे स्वालिया निशान लगे हैं। भारतीय संविधान अनुसार अदालतें बिना सरकारी दबाव के स्वतंत्र तौर पर काम करती हैं। इस संबंधी लम्बे समय से प्रत्येक स्तर पर बहस और विचार-विमर्श भी होते रहते हैं। जब कोई पूर्व सरकार अदालती कार्यों में किसी भी तरह का अपना दखल बढ़ाती है तो उसकी कड़ी आलोचना भी की जाती है। देश की जनता की भी यही धारणा है कि अदालती प्रबंध को बिना किसी रुकावट और पक्षपात के अपना काम करना चाहिए और न्याय व्यवस्था में लोगों का विश्वास बनाये रखने के लिए इसका पारदर्शी होना भी बेहद ज़रूरी है।
अभी तक कुछ कमियों और कमजोरियों के बावजूद लोगों के मन में अदालतों का विश्वास बना रहा है, चाहे कि समय-समय इन पर किन्तु-परन्तु भी होते रहे हैं और प्रत्येक स्तर की अदालतों के विरुद्ध हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के पास अनेक बार शिकायतें भी दर्ज होती रही हैं। इनके निपटारे के लिए हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट द्वारा लम्बे विचार-विमर्श के बाद अंदरूनी कमेटियां बनाकर समस्याओं को हल करने के भी यत्न लगातार किये जाते रहे हैं। किसी भी निचली अदालत या हाईकोर्ट बारे सुप्रीम कोर्ट हमेशा सुचेत रहने का यत्न भी ज़रूर करती है। 
कुछ माह पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक जज द्वारा विश्व हिन्दू परिषद् से संबंधित एक समारोह में जो बयान दिया गया था, उसका भी सुप्रीम कोर्ट ने कड़ा नोटिस लिया था परन्तु अब घटित हुआ यह घटनाक्रम बेहद अजीब है और इस कारण पैदा हुए सवालों को सुलझाने की मांग करता है।  दिल्ली हाईकोर्ट से संबंधित जज के सरकारी आवास में अचानक आग लगने के कारण उस समय घर में कोई भी पारिवारिक सदस्य न होने के कारण फायर ब्रिगेड द्वारा आग पर काबू पाने के लिए की गई कार्रवाई के दौरान उपरोक्त जज के घर से भारी मात्रा में नोट मिले, जो आग लगने से आधे जलने से बच गए। 
सूचना के अनुसार 4-5 बोरियों में इन्हें घर के स्टोर में रखा गया था। प्राथमिक सूचनाएं इस प्रकार की आईं, परन्तु बाद में फायर ब्रिगेड के अधिकारियों तथा अन्य संबंधित लोगों द्वारा इन सूचनाओं को नकार दिया गया, परन्तु इसके बाद दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य जज दवेन्द्र कुमार उपाध्याय की रिपोर्ट के बाद सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना द्वारा की गई कार्रवाई ने सब को हैरान कर दिया। उनके द्वारा मिले नोटों की जानकारी को सार्वजनिक करने तथा इस घटनाक्रम की जांच के लिए तीन जजों की समिति बनाने की घोषणा ने यह अवश्य स्पष्ट कर दिया है कि मुख्य जज संजीव खन्ना ने ऐसे घटनाक्रम को इसलिए सार्वजनिक किया है, ताकि न्याय व्यवस्था पर लोगों का विश्वास बना रहे और इसके कामकाज में पारदर्शिता को प्राथमिकता दी जाए। 
हमारा यह भी विचार है कि सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य जज द्वारा अपने नेतृत्व में गठित की गई तीन सदस्यीय समिति की रिपोर्ट कब आएगी तथा यह जांच कब पूरी होगी, इस संबंधी एक समय निश्चित किया जाना भी ज़रूरी है, ताकि इस संबंधी आगामी कानूनी कार्रवाई को सम्पन्न किया जा सके। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अपनाया गया यह दृष्टिकोण निश्चय ही लोगों का देश के अदालती प्रबंध में विश्वास बनाए रखने में सहायक होगा और यह समूचे अदालती प्रबंध को भी एक नई दिशा देने में सहायक होगा।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द

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