गवर्नर को विधानसभा से पास बिल नहीं लटकाने चाहिए - सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली, 20 नवंबर - सुप्रीम कोर्ट ने आज उन याचिकाओं पर अपना फैसला सुनाया, जिनमें राष्ट्रपति और गवर्नर को बिल मंज़ूर करने के लिए समय सीमा तय करने की मांग की गई थी। कोर्ट ने कहा कि उसे नहीं लगता कि गवर्नर के पास विधानसभा से पास हुए बिल को वीटो करने की पूरी पावर है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गवर्नर के पास तीन ऑप्शन हैं, या तो उन्हें मंज़ूरी दें, उन्हें दोबारा विचार के लिए वापस भेजें या प्रेसिडेंट के पास भेजें। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बिल को मंज़ूरी देने के लिए कोई टाइम लिमिट तय नहीं की जा सकती। अगर कोई देरी होती है, तो सुप्रीम कोर्ट दखल दे सकता है।

यह मामला तमिलनाडु के गवर्नर और राज्य सरकार के बीच विवाद से पैदा हुआ था, जहां गवर्नर ने राज्य सरकार के बिल रोक दिए थे। 8 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया था कि गवर्नर के पास वीटो पावर नहीं है।

फैसले में कहा गया कि प्रेसिडेंट को गवर्नर द्वारा भेजे गए बिल पर तीन महीने के अंदर फैसला लेना चाहिए। यह आदेश 11 अप्रैल को जारी किया गया था। इसके बाद राष्ट्रपति ने इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट से राय मांगी और 14 सवाल पूछे। इस मामले में आठ महीने से सुनवाई चल रही थी।

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