पूरी दुनिया से आकर परिंदे जहां करते हैं खुदकुशी...! 

क्या इंसानों की तरह जानवर और परिंदे भी आत्महत्या करते हैं ? भारत के जतिंगा गांव को देखकर तो इस सवाल का एक ही जवाब हो सकता है-हां। जी, हां! भारत के पूर्वोत्तर राज्य असम में, गुवाहाटी से कोई 330 कि.मी. दूर दक्षिण में स्थित जतिंगा एक कछारी गांव है। यह गांव पूरी दुनिया में पक्षियों के सुसाइड प्वाइंट के रूप में मशहूर है। यहां हर साल देश के अलग-अलग कोनों से ही नहीं बल्कि दुनिया के कई हिस्सों से आकर हजारों पक्षी आत्महत्या करते हैं, वह भी अकेले नहीं बल्कि समूह में। हर साल होने वाली सामूहिक आत्महत्या की ये घटनाएं न केवल पक्षी विज्ञानियों के लिए बल्कि जैव और भूगर्भशास्त्रियों के लिए भी यह रहस्य का विषय हैं कोई भी ठीक-ठीक यह नहीं समझ पा रहा कि आखिर पक्षी ऐसा क्यों करते हैं ? हद तो यह है कि पक्षियों की यह सामूहिक आत्महत्या का यह रहस्य अब जतिंगा गांव की एक किस्म से वैश्विक पहचान बन गया है जिस कारण हर साल देश-विदेश से सैकड़ों सैलानी यह गांव देखने आते हैं जो एक किस्म से यहां के लोगों की रोजी-रोटी का अच्छा भला जरिया बन गया है। यहां हर साल सैकड़ों की संख्या में पक्षी विज्ञानी, जिज्ञासु सैलानी और धरती की रहस्यमयी गतिविधियों को समझने वाले सैकड़ों वैज्ञानिक भी आते हैं। हर कोई यह जानना चाहता है कि आखिर ऐसी कौन-सी वजह है जो इन परिंदों को समूह में आत्महत्या के लिए प्रेरित करती है। आखिर इन नभचरों का कौन-सा ऐसा दु:ख है जो जिसके लिए ये मर जाना पसंद करते हैं।  यह गांव पक्षियों द्वारा की जाने वाली आत्महत्या की घटनाओं के कारण पूरी दुनिया में सुर्खियों में बना हुआ है। आत्महत्या की ये घटनाएं आमतौर पर उतरते मानसून के महीने में कृष्ण पक्ष की रातों में होती हैं। अमावस वाली या घने कोहरे वाली रात सबसे ज्यादा आत्महत्याएं होती हैं। स्याह रातों में अक्सर शाम 6 बजे से रात 9:30 बजे के बीच ये परेशान पक्षी एक साथ प्रकाश की किसी किरण की तरफ  लपकते हैं और फिर जैसे नशे में हों पेड़ों से टकराकर पट-पट जमीन पर गिरते हैं और मर जाते हैं। जिस समय यह रहस्यमयी दुर्घटना होती है इस समय ये पक्षी अजीब मदहोशी में होते हैं। प्रसिद्ध पक्षी विज्ञानी डा. सेनगुप्ता की मानें तो जहां ये गांव स्थित है वहां स्याह रातों में अचानक चुंबकीय शक्ति बदलने लगती है, जिस वजह से पक्षी असाधारण व्यवहार करते हैं। वैसे यह उनका एक अनुमान भर है उनके इस अनुमान पर कोई अंतिम मुहर नहीं लगी है। सच बात तो यही है कि पक्षीशास्त्री आज तक इस घटना के वैज्ञानिक कारणों का पता ही नहीं लगा सके हैं।  आमतौर पर साल के नौ महीने बाहरी दुनिया से यह लगभग अलग-थलग रहता है। लेकिन मानसून के खत्म होते ही सितंबर माह की शुरुआत के साथ ही यह देशी-विदेशी सुर्खियों के केंद्र में आ जाता है।
सितंबर से लेकर नवंबर तक बरैल पर्वत श्रृंखला की गोदी में बसी यह छोटी-सी घाटी पक्षीशास्त्रियों, पर्यटकों, पत्रकारों आदि की पसंदीदा जगह बन जाती है क्योंकि इन्हीं दिनों ज्यादातर ‘पक्षी आत्महत्या’ की रहस्यमय घटनाएं होती हैं। ज्यादातर ये सामूहिक आत्महत्या की घटनाएं  शाम सात बजे से लेकर रात के दस-साढ़े दस बजे के बीच  ही होती हैं। इस मौसम में जिस भी रात आसमान में धुंध छा जाए, हवा की रफ्तार तेज हो जाए और रह-रहकर रोशनी हो या कहें बिजली कौंधने लगे तो समझो वह कयामत की रात है। रौशनी कौंधते ही पक्षियों के झुंड कीट-पतंगों की तरह बदहवास होकर रोशनी के स्त्रोत पर गिरने लगते हैं और मरने लगते हैं। आत्महत्या की इस दौड़ में स्थानीय और प्रवासी चिड़ियों की करीब तीन दर्जन प्रजातियां शामिल रहती हैं। जतिंगा की इस रहस्यमय घटना का पता मणिपुर की ओर से आए जेमेस नामक जनजातीय समूह के लोगों ने लगाया था, जो एक जमाने में यहां सुपाड़ी की खेती की तलाश में पहुंचे थे। इस इलाके में पक्षियों की इस सामूहिक आत्महत्या के लिए कई तरह की बातें कही जाती हैं। कुछ के मुताबिक यह भूत-प्रेतों और अदृश्य ताकतों का काम है जबकि वैज्ञानिक धारणा यह है कि यहां तेज हवाओं से पक्षियों का संतुलन बिगड़ जाता है और वह आस-पास मौजूद पेड़ों से टकराकर घायल हो जाते हैं और फिर मर जाते हैं।