विश्व विभूति जॉर्ज बर्नार्ड शॉ

नाट्य लेखन के मामले में बीसवीं सदी के शेक्सपियर माने जाने वाले जॉर्ज बर्नार्ड शॉ जितने प्रसिद्ध एक साहित्यकार के रूप में थे, उतने ही प्रसिद्ध एक चिंतक के रूप में थे। ...और हां उनके विवाहेत्तर संबंधों की भी खूब चर्चा होती थी। 26 जुलाई 1856 को आयरलैंड की राजधानी डबलिन में पैदा होने वाले जॉर्ज बर्नार्ड शॉ को हालांकि सर्वाधिक ख्याति एक नाटककार के रूप में मिली। लेकिन उन्होंने लिखने की शुरुआत एक उपन्यासकार के रूप में की थी। ‘लव एमंग द आर्टिस्ट’ तथा ‘कैशेल बायरंस प्रोफेशन’ जैसे उपन्यास लिखने वाले जॉर्ज बर्नार्ड शॉ को वास्तव में ख्याति मिली 1924 में उनके लिखे गये नाटक सेंट जोंस से। इसके बाद तो जैसे उन्होंने रंगमंच की दुनिया में धूम मचा दी।
पूर्णत: शाकाहारी तथा विचारों से समाजवादी जॉर्ज बनार्ड शॉ पर महात्मा गांधी का भी काफी असर था जोकि वह बापू के समकालीन थे। फिर भी अहिंसा के प्रणेता गांधी को वह जीनियस माना करते थे। उनका मौन समर्थन भारत के स्वतंत्रता संग्राम के लिए भी था। मामूली स्कूली शिक्षा पाने वाले जॉर्ज बर्नार्ड शॉ 16 साल की उम्र में ही नौकरी करने लगे थे क्योंकि उनके पिता जॉर्ज कार शॉ एक शराबी और गैर-जिम्मेदार व्यक्ति थे। जिसके कारण जॉर्ज बर्नार्ड को बचपन में बेहद अभावों भरा जीवन जीना पड़ा। शायद बेटे के मन में पिता की इसी गैर-जिम्मेदारी से उसके प्रति नफरत जागी और जॉर्ज बर्नार्ड शॉ ने अपने नाम के साथ अपने पिता का नाम लगाना छोड़ दिया।
आयरिश मूल के जॉर्ज बर्नार्ड शॉ की राजनीति में भी गहरी रुचि थी। वह फेबियन सोसाइटी के सक्रिय कार्यकर्ता के रूप में नुक्कड़ सभाओं में भाषण दिया करते थे। महिलाओं के बीच जॉर्ज अपने जमाने के दूसरे नेताओं के मुकाबले ज्यादा लोकप्रिय थे; क्योंकि वह महिलाओं को बराबरी का दर्जा दिए जाने और समाज में संपत्ति का समान बंटवारा किए जाने की पूरी शिद्दत से वकालत किया करते थे। वह डबलिन में स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद लंदन चले गए थे और फिर अगले तीस सालों तक आयरलैंड नहीं लौटे। उन्होंने आरंभ में पांच उपन्यास लिखे। उनके प्रसिद्ध नाटक हैं ‘कैंडिडा’, ‘द डेविल्स डिसाइपल’, ‘आर्म्स एंड द मैन’, ‘सीजर एंड क्लियोपेट्रा’, जॉन बुल्स अदर आईलैंड’, ‘थ्री प्लेज फॉर प्यूरिटंस’। उनके कई नाटकों पर फिल्में भी बनीं। 1925 में वह साहित्य के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किए गए। साहित्यिक रचनाएं लिखने के साथ-साथ उन्होंने कई पत्रिकाओं के लिए संगीत, कला और नाटक की समीक्षा का काम भी बखूबी किया। 1898 में शॉ ने चार्लोट पेनी से विवाह किया और 2 नवंबर 1950 यानी मृत्युपर्यंत चार्लोट के साथ ही रहे। प्रस्तुति-फ्यूचर मीडिया नेटवर्क