‘आप’ के 20 विधायकों की सदस्यता रद्द करने की सिफारिश

नई दिल्ली, 19 जनवरी (जगतार सिंह) : चुनाव आयोग ने आम आदमी पार्टी (आप) के 20 विधायकाें के लाभ के पद से जुड़े मामले में अपनी सिफारिश राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के पास भेज दी है। सूत्रों के अनुसार आयोग ने राष्ट्रपति से ‘आप’ के इन 20 विधायकों को अयोग्य करार देने की सिफारिश की है। हालांकि विधायकों की सदस्यता रद्द किए जाने बारे चुनाव आयोग ने सिफारिश को विचाराधीन बताकर कोई भी टिप्पणी करने से इन्कार कर दिया है, जबकि मीडिया रिपोर्टों में यह दावा किया गया है कि चुनाव आयोग ने 20 विधायकों की सदस्यता रद्द करने की सिफारिश भेजी है। दूसरी ओर आम आदमी पार्टी के 20 विधायकों को लाभ के पद के मामले में अयोग्य करार दिए जाने के पश्चात् दिल्ली की राजनीति में भी उबाल आ गया है। दिल्ली विधानसभा की 70 सीटों में से केवल 3 सीटें जीतने वाली भाजपा ने कहा कि मुख्यमंत्री केजरीवाल को इस्तीफा दे देना चाहिए। वहीं इस पूरे मामले में दिल्ली प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय माकन ने कहा कि अब पार्टी को सत्ता में बने रहने का कोई अधिकार नहीं रह गया है।‘आप’ ने चुनाव आयुक्त पर लगाया पक्षपात का आरोप : आम आदमी पार्टी ने इस मामले में मुख्य चुनाव आयुक्त ए.के. ज्योति पर तीव्र प्रहार करते हुए आरोप लगाया है कि आयुक्त ने ‘आप’ से संबंधित 20 विधायकों का पक्ष एक बार भी सुनने की कोशिश नहीं की। पार्टी विधायक सौरभ भारद्वाज ने आरोप लगाया कि 23 जनवरी को मुख्य चुनाव आयुक्त के पद से सेवानिवृत्त होने वाले गुजरात कैडर के आई.ए.एस. अधिकारी ए.के. ज्योति वास्तव में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का कज़र् उतार रहे हैं। उन्होंने कहा कि सच्चाई यही है कि ‘आप’ के जिन विधायकों को लाभ के पद देने का आरोप माना जा रहा है कि उन्होंने न तो कोई लाभ का पद लिया, न रुपया व न ही कोई गाड़ी ली।संसदीय सचिवों की नियुक्ति मामले में कानूनी पक्ष से कमज़ोर हैं ‘आप’ की दलीलें : दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल के राजनीतिक जीवन की शुरुआत बहुत ही तूफानी किस्म की रही है और अपनी अलग रणनीति के ज़रिये कई बार उन्होंने अपने संकटों को अपनी जीत के रूप में बदला है परंतु 20 संसदीय सचिवों की नियुक्ति वाला संकट पहले के किसी भी संकट से बहुत गम्भीर है, क्योंकि इस मामले में 20 विधायकों की सदस्यता रद्द होने की तलवार लटक गई है। केन्द्र सरकार जान बूझकर दिल्ली सरकार के रास्ते में बाधा पैदा करती है, ‘आप’ द्वारा किए जाते ऐसे कई दावों में सच्चाई हो सकती है परंतु संसदीय सचिवों की नियुक्ति से पहले दिल्ली सरकार को कानूनी स्थिति को ठीक तरह से समझ लेना चाहिए था। इस मामले में दिल्ली सरकार दावा कर रही है कि संसदीय सचिवों को कोई आर्थिक फायदा नहीं दिया गया है। इसके बावजूद कानूनी व संवैधानिक स्थिति से कैसे किनारा किया जा सकता है। दिल्ली में संसदीय सचिव पद की वैधानिक स्थिति यह है कि इसमें केवल मुख्यमंत्री के संसदीय सचिव को लाभ के पद के दायरे से बाहर रखने की व्यवस्था है। इसलिए दिल्ली सरकार के इस फैसले को चुनाव आयोग, अदालत व राष्ट्रपति के समक्ष चुनौती दी गई थी, क्योंकि संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार कोई जनप्रतिनिधि लाभ के पद पर नहीं रह सकता। संविधान की धारा 102 (1) (ए) व 191 (1) (ए) के अनुसार संसद या विधानसभा का कोई भी सदस्य यदि लाभ के किसी पद पर होता है तो उसकी सदस्यता जा सकती है। यह लाभ का पद केन्द्र व राज्य किसी भी सरकार का हो सकता है।क्या है मामला : वास्तव में दिल्ली सरकार ने मार्च 2015 में 21 ‘आप’ विधायकों को संसदीय सचिव के पद पर नियुक्त किया था, जिसे प्रशांत पटेल नामक वकील ने लाभ का पद बताकर 19 जून को राष्ट्रपति के पास शिकायत के ज़रिए 21 विधायकों की सदस्यता रद्द करने की मांग रखी थी। राष्ट्रपति ने यह मामला चुनाव आयोग के पास भेज दिया और चुनाव आयोग ने मार्च 2016 को 21 ‘आप’ विधायकों को नोटिस भेजा, जिसके बाद इस मामले की सुनवाई शुरू हुई। केजरीवाल सरकार ने पिछली तारीख से कानून बनाकर  संसदीय सचिव के पद को लाभ के दायरे से बाहर रखने की कोशिश की परंतु राष्ट्रपति ने इस प्रस्ताव को वापिस कर दिया था। अब राजौरी गार्डन से विधायक जरनैल सिंह पत्रकार ने पंजाब चुनावों के कारण इस्तीफा दे दिया था, जिस कारण उनके खिलाफ कार्रवाई बंद कर दी गई थी।वहीं दूसरी ओर चुनाव आयोग द्वारा आम आदमी पार्टी के 20 विधायकों की विधानसभा सदस्यता रद्द करने के मामले में दिल्ली हाईकोर्ट ने ‘आप’ को राहत देने से इन्कार कर दिया है। ‘आप’ के 6 विधायक चुनाव आयोग के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट पहुंचे थे। मामले की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि वह ‘आप’ के तथ्यों से संतुष्ट नहीं है और इस आधार पर तुरंत राहत नहीं दी जा सकती। कोर्ट ने ‘आप’ द्वारा लगाए गए आरोपों बारे चुनाव आयोग से भी जवाब मांगा है। मामले की अगली सुनवाई अब सोमवार को होगी। सुनवाई दौरान आज ‘आप’ के विधायकों को कोर्ट ने कड़ी फटकार भी लगाई। कोर्ट ने कहा कि आप वक्त रहते हुए चुनाव आयोग के पास क्यों नहीं गए और नोटिस का जवाब भी नहीं दिया। कोर्ट ने कहा कि जब आप चुनाव आयोग के बुलाए जाने पर नहीं गए तो अब आयोग इस मामले में फैसला देने के लिए स्वतंत्र है।