मल्टीप्लैक्स के ज़माने में एकल परदे वाले 4,000 सिनेमाघर बंद  

इंदौर, 11 फरवरी (भाषा) : देश में एकल परदे वाले सिनेमाघरों के वजूद पर गंभीर खतरा मंडरा रहा है। घाटे के बढ़ते बोझ और लम्बे समय तक चलने वाली सुपरहिट फिल्मों के अभाव के कारण ऐसे अधिकांश सिनेमाघर अपने सुनहरे अतीत को याद करते हुए आखिरी सांसें गिन रहे हैं। फिल्म उद्योग की प्रमुख संस्था फिल्म फैडरेशन ऑफ इंडिया (एफएफआई) के पूर्व अध्यक्ष जयप्रकाश चौकसे ने  बताया, ॑कुछ साल पहले देश भर में एकल परदे वाले करीब 12,000 सिनेमाघर थे। लेकिन अब इनकी तादाद घटकर 8,000 के आस-पास रह गयी है।’ उन्होंने कहा, ‘खासकर शहरी क्षेत्रों में जमीनों के दामों में बड़े इजाफे से एकल परदे वाले सिनेमाघर बंद किये जा रहे हैं और इनके स्थान पर बहुमंजिला इमारतें तथा शॉपिंग मॉल खड़े किये जा रहे हैं।’ मशहूर फिल्म समीक्षक ने एकल परदे वाले सिनेमाघरों के बंद होने की एक और वजह गिनाते हुए कहा, मुझे लगता है कि खासकर हिन्दी फिल्म उद्योग इन दिनों ऐसे मनोरंजक शाहकार नहीं बना पा रहा है जो सभी वर्गों के दर्शकों को हर स्थान पर आकर्षित कर सकें। एकल परदे वाले सिनेमाघरों को चलाने के लिए लम्बे समय तक चलने वाली सुपरहिट फिल्में जरूरी हैं।’ उन्होंने कहा कि बढ़ते घाटे के कारण एकल परदे वाले सिनेमाघरों के बंद होने से हर साल बड़ी तादाद में रोजगार खत्म हो रहे हैं। इसके साथ ही, गरीब तबके के लोगों से मनोरंजन का सस्ता साधन छिन रहा है। चौकसे का मानना है कि दक्षिण भारत के मुकाबले उत्तर भारत में एकल परदे वाले सिनेमाघर ज्यादा दुश्वारियों का सामना कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि देश में एकल परदे वाले जो 8,000 सिनेमाघर बचे हैं, उनमें से करीब 5,000 दक्षिण भारत में हैं। तमिलनाडु और दक्षिण भारत के अन्य राज्यों की सरकारों ने इन सिनेमाघरों को बचाने में ज्यादा दिलचस्पी दिखाई है। पूर्व एफएफआई अध्यक्ष ने मल्टीप्लेक्स का कारोबारी गणित समझाते हुए कहा, मल्टीप्लेक्स में वार्षिक स्तर पर कुल सीट क्षमता के केवल 30 प्रतिशत टिकट बिक पाते हैं। लेकिन ये टिकट लेने वाले लोग ऊंची दरों पर पॉप कार्न, चाय, कॉफी इत्यादि खरीदने में सक्षम होते हैं।’ उन्होंने कहा, मल्टीप्लेक्स के मालिकों की असली कमाई टिकट काउंटर से नहीं, बल्कि फूड काउंटरों से हो रही है।’