थर्मल प्लांट बंद होने पर कम हो जाएगी कोयले की सप्लाई



जालन्धर, 13 फरवरी (शिव शर्मा): बठिंडा सहित रोपड़ प्लांट के दो यूनिट बंद होने के बाद पावरकॉम को गर्मियों में कोयले की सप्लाई कम लेनी पड़ेगी क्योंकि गर्मियों में बिजली निर्भरता निजी थर्मल प्लांट पर ही बढ़ जाएगी। पिछले माह पावरकॉम ने सरकार के फैसले के बाद बठिंडा व रोपड़ थर्मल प्लांट के दो यूनिटों को बंद कर दिया है। इस समय पावरकॉम के अपने तापघरों में लहरा मोहब्बत रह गया है। पावरकॉम के अपने थर्मल प्लांट के लिए पावरकॉम द्वारा 70 लाख मिलियन टन कोयले की सप्लाई ली जाती थी जिनमें से ज्यादा कोयले की सप्लाई कोल इंडिया से ही आती रही है। पावरकॉम को बेशक थर्मल प्लांट के लिए केन्द्र ने अपनी कोयले की खान झारखण्ड के पछवाड़ा में अलाट की है परन्तु इस स्थान से कोयला लाने के लिए उसका लम्बे समय तक झगड़ा चलता रहा है जबकि प्लांट में जिस बेहतर किस्म के कोयले और ज्यादा सेंक देने वाला कोयला पछवाड़ा से ही आना था जोकि झगड़े के कारण वहां समय पर नहीं आ सका। पावरकॉम अपने प्लांट के लिए निजी कम्पनियों से कोयले की खरीद करता रहा है। पछवाड़़ा से पावरकॉम के थर्मल प्लांट के लिए कोयले की खान अलाट की गई थी परन्तु उस स्थान से 1 अप्रैल 2015 में कोयला आना ही बंद हो गया था परन्तु उसके बाद पछवाड़ा से कोयला निकालने के लिए किसी तरह के कार्य का दोबारा टैंडर नहीं दिया गया था। अब अपने प्लांट बंद होने के साथ तो गर्मियों में इस खान से कोयला मिलने की इसलिए भी सम्भावना नहीं है क्योंकि अब लहरा मोहब्बत और रोपड़ के दो यूनिटों को चलाने के लिए कोयले की मांग कोल इंडिया से कोयला मंगवा कर पूरी कर ली जाएगी।
सूत्रों के अनुसार तो गर्मियों में पावरकॉम को निजी थर्मल प्लांट से पूरी समर्था के साथ ही बिजली मिलने की सम्भावना है। अपने बिजली थर्मल प्लांट के होने का पावरकॉम को एक यह भी लाभ होता था कि उसकी बिजली सस्ती पड़ने के कारण उसका काफी खर्चा कम हो जाता था यदि प्लांट पूरे लोड फैक्टर पर चयाला जाता है तो इसकी बिजली सस्ती पड़ती है परन्तु यदि इसको तय मापदण्डों से नीचे चलाया जाता था तो यह बिजली बहुत महंग पढ़ती थी। ज्यादातर राज्य अपने थर्मल प्लांट इसकारण ही लगाते रहे हैं कि उनको अपनी बिजली सस्ती पड़े व इसके साथ खपतकारों को प्रत्येक वर्ष महंगी बिजली के बिल न भरने पड़ें। पंजाब सहित कई राज्यों में अब निजी क्षेत्र से बिजली की खरीद करने की प्रक्रिया का अन्त में भार खपतकारों पर ही प्रत्येक वर्ष बिजली दरों में वृद्धि करके पूरा करना पड़ेगा।
थर्मल प्लांट यदि बिजली लोड फैक्टर 90 से कम चलाया जाता है तो बिजली महंगी पड़ती है। जिस तरह के साथ निजी बिजली थर्मल प्लांट के साथ किए गए बिजली खरीद समझौतों के अनुसार बिजली न लेने पर कम्पनियों को प्रत्येक वर्ष करोड़ों रुपए के फिक्स चार्जिज़ पावरकॉम को देने पड़ेंगे व उसी तरह के साथ अब बठिंडा और रोपड़ के दो यूनिट बंद होने के कारण उन्हें ही फिक्स चार्जिज़ पारवरकॉम को अदा करने पड़ेंगे। बठिंडा और रोपड़ के दो बंद हुए यूनिटों की भी अभी पावरकॉम के सिर देनदारियां हैं जिनमें स्टाफ के खर्चे और इसके लिए कर्जों के ब्याज की रकम की भी अदायगी शामिल है।
रोपड़ थर्मल प्लांट के दो यूनिट बंद करने के स्थान पर अब 800 मैगावाट की समर्था वाला सुपर क्रिटीकल अल्टरा यूनिट लगाने का फैसला किया गया है परन्तु पावरकॉम की मौजूदा वित्तीय हालत को देखते हुए इस नए आधुनिक यूनिट के लगाने का कार्य जल्द आरम्भ होने की सम्भावना नहीं लग रही है।