सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या विवाद

सुप्रीम कोर्ट में बाबरी मस्जिद- राज जन्मभूमि स्थल विवाद पर सुनवाई शुरू हो गई है। पहले लगता था कि रोज-रोज सुनवाई करके सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर जल्द से जल्द फैसला सुना देगा, लेकिन अब साफ  हो गया है कि इसमें समय लगेगा, हालांकि सच यह भी है कि इसी साल प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्र रिटायर हो रहे हैं और यह उम्मीद तो की ही जानी चाहिए कि उनके रिटायरमेंट के पहले इस पर फैसला आ जाएगा। कहते हैं कि पूत के पांव पालने में दिखते हैं। इसी तरह सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई शुरू करने के साथ ही संकेत दे दिया है कि सुनवाई की क्या दिशा होगी। यह साफ  क र दिया गया कि सुनवाईर् के दौरान भावनाओं को तरजीह नहीं दी जाएगी और न ही राजनीति की परिस्थितियों पर ध्यान दिया जाएगा। इसका मतलब यह है कि कोर्ट फैसले के राजनीतिक पहलुओं को ध्यान में रखते हुए कोई फैसला नहीं करेगा। यह उचित भी है। न्यायपालिका को अपने सामने आए हुए ठोस सबूतों के आधार पर ही फैसला सुनाना चाहिए।
एक बात और भी स्पष्ट कर दी गई है और वह यह है कि कोर्ट के सामने उस स्थल के मालिकाना हक का मसला विचाराधीन है। इसका मतलब यह हुआ कि कोर्ट सिर्फ  इस बात का निर्णय करेगा कि उस जमीन का मालिक कौन है। गौरतलब है कि उस मुकद्दमे में तीन पक्ष हैं। एक पक्ष सेंट्रल सुन्नी वक्फ  बोर्ड है, जिसका दावा है कि बाबरी मस्जिद और उसके अहाते की जमीन का मालिक वह है। दूसरा पक्ष निर्मोही अखाड़ा है। वह जमीन पर यह कहकर दावा करता है कि वहां बाबरी मस्जिद बनने के पहले रामलला का मंदिर था। तीसरा पक्ष खुद रामलला विराजमान हैं। रामलला के कुछ कथित दोस्त यह मुकद्दमा खुद रामलला की तरफ  से लड़ रहे हैं। इन तीन पक्षों के अलावा कुछ और पक्ष भी इसमें शामिल हो गए हैं। एक पक्ष तो सेंट्रल शिया बोर्ड है। उसका कहना है कि बाबरी मस्जिद और उससे जुड़ी जमीन का मालिकाना हक उसके पास है, क्योंकि जिस मीर बाकी ने बाबरी मस्जिद बनाई थी, वह शिया मुसलमान था। बाबरी मस्जिद को शिया वक्फ  बोर्ड एक शिया मस्जिद मानता है, जिसकी देख-रेख सुन्नी मुसलमानों के हाथों में थी, लेकिन मालिकाना हक शिया का ही था। यहां एक पेंच यह है कि 1940 के दशक में उस स्थल के मालिकाना हक को लेकर निचली अदालत में शिया और सुन्नी के बीच मुकद्दमा भी चला था। उस मुकद्दमे में शिया पक्ष की हार हो गई थी और अदालत ने उसका मालिकाना हक सुन्नियों को ही दिया था। वैसे शिया पक्ष के पास उस फैसले के खिलाफ  अपील करने का अधिकार था, लेकिन उन्होंने अपने खिलाफ  निचली अदालत के फैसले को ऊपरी अदालत में चुनौती नहीं दी थी। पर एकाएक अब वे सक्रिय हो गए हैं और उस ज़मीन पर अपना दावा पेश करते हुए उस स्थल को राम जन्मभूिम मंदिर बनाने को देने को तैयार हैं। लेकिन वे इस मुकद्दमे के मूल पक्ष नहीं हैं। इसलिए अभी यह साफ  नहीं हो पा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट उनके पक्ष को सुनेगा या नहीं। वैसे कोर्ट ने कहा है कि वह अब किसी अन्य पक्ष को नहीं सुनेगी, लेकिन इससे यह साफ  नहीं हुआ है कि शिया पक्ष को वह सुनेगी या नहीं, क्योंकि यह पक्ष कुछ समय पहले से ही सक्रिय है और कोर्ट में अपनी मिल्कीयत का दावा पेश कर चुका है।इसे मंदिर-मस्जिद विवाद के रूप में नहीं, बल्कि जमीन विवाद के रूप में देखने के सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद मंदिरवादियों को जरूर झटका लगा होगा, क्योंकि उन्हें उम्मीद थी कि सुप्रीम कोर्ट इस बात को लेकर सुनवाई करेगा कि वहां मस्जिद बनने के पहले मंदिर था या नहीं, लेकिन अब लग रहा है कि मंदिर होने या न होने को लेकर सुप्रीम कोर्ट चिंतित नहीं है, बल्कि वह सिर्फ  यह देखना चाहती है कि उस स्थल का मालिक कौन है। दस्तावेजों की छानबीन कर और उनसे संबंधित वकीलों का पक्ष देखकर सुप्रीम कोर्ट निष्कर्ष निकालेगी कि उस जमीन का मालिक कौन है। और जो जमीन का मालिक दिखाई पड़ेगा, सुप्रीम कोर्ट का फैसला उसके पक्ष में ही होगा।सुप्रीम कोर्ट के इस अंदाज को लेकर सुन्नी वक्फ  बोर्ड का उत्साहित होना लाजिमी है, क्योंकि उसके पास उस स्थल के मालिकाना हक को लेकर दस्तावेज हैं। एक दस्तावेज तो शिया- सुन्नी मुकद्दमे में उसके पक्ष में 1946 को आया वह अदालती फैसला ही होगा, जिसमें उसे उस स्थल का मालिक घोषित कर दिया गया था। वैसे सुप्रीम कोर्ट में उसे यह भी साबित करना होगा कि निचली अदालत ने जिन आधारों पर उसके पक्ष में फैसला किया था, वे आधार काफी ठोस हैं और वे सुप्रीम कोर्ट की कसौटी पर भी खरे उतरेंगे। हालांकि उस समय उसके सामने प्रतिद्वंद्वी शिया था, पर आज प्रतिद्वंद्वी रामलला के मंदिर बनाने वाला हिन्दू पक्ष है। पर पता नहीं रामलला के पक्ष के पास उस जमीन के मालिकाना हक का कोई सबूत है भी या नहीं या सिर्फ  वह पहले मंदिर होने की बात कह कर ही अपना दावा पेश कर रहा है। यदि सुप्रीम कोर्ट ने सिर्फ  ज़मीन के मालिकाना हक पर ही फैसला दिया और यह फैसला मुस्लिम वक्फ  बोर्ड के पक्ष में गया, तब भी शायद यह समस्या समाप्त नहीं हो, क्योंकि तब मंदिर पक्ष भावना की बात करेगा और फि र इतिहास कुरेदा जाएगा। विवादित स्थल के खनन में प्राप्त सामग्रियों का हवाला दिया जाएगा और इस तरह विवाद बना रहेगा।बाबरी मस्जिद विवाद अभी समाप्त भी नहीं हुआ है, पर आगरा के ताजमहल का एक नया विवाद शुरू कर दिया गया है। अब भारतीय जनता पार्टी के नेता सांसद विनय कटियार ने दावा किया है ताज महल शिव का मंदिर था, जिसका नाम तेजो महालय था, जिसे शाहजहां ने ताजमहल में परिवर्तित कर उसमें अपनी बेगम मुमताज को दफ ना दिया। पीएल ओक ने अपनी एक विवादित पुस्तक में इस पर विस्तार से चर्चा की है, लेकिन उस पुस्तक को कभी भी गंभीरता से नहीं लिया गया। लेकिन शासक पक्ष द्वारा इस मसले को तूल दिए जाने के बाद यह भी मसला विस्फ ोटक रूप धारण कर सकता है। (संवाद)