एम.एस. रंधावा उत्सव की विलक्षणता

पंजाब कला परिषद चंडीगढ़ की ओर से आयोजित डा. एम.एस. रंधावा कला और साहित्य उत्सव बहुत गौरवशाली रहा। पहले दिन सांस्कृतिक मामलों के मंत्री नवजोत सिंह सिद्ध  की अध्यक्षता वाले सत्र में रंधावा की कार्यशैली और योगदान के बारे में लाजवाब बातें हुईं। उनके द्वारा फैसले लेने की फुर्ती, प्रताप सिंह कैरों की आकस्मिक मृत्यु का दु:ख, योजना आयोग की कम कार्य वाली सदस्यता के समय भागकर गुरमुखी लिपि की लिखाई सीखना और उत्तर प्रदेश तथा मध्य प्रदेश द्वारा भुलाई जा चुकी उर्दू भाषा को देश की अन्य भाषाओं के बराबर खड़ी रखना आदि। श्रोता मंत्रमुग्ध हो गए। कला परिषद् द्वारा यह  सात दिवसीय उत्सव सुबह दोपहर और शाम के लिए रचनात्मक कार्य निर्धारित करके रचाया गया। 
सुबह के सत्रों के लिए बड़े कलाकारों के रू-ब-रू, सवाल-जवाब और सैमीनार, बाद दोपहर मलवयी गिद्धा, शम्मी झूमर, तूंबा, अलगोजे और पुआधी जलसा। दूर निकट के बढ़िया कलाकारों का कला भवन के प्रांगण में आकर अखाड़े लगाना खूब सराहा गया। शाम के समय सुक्खी बराड़ और  नीले खां की गायकी, चुनिंदा नाटक तथा गुरमीत बाबा के परिवार के शगुनों के गीत आकर्षण का केन्द्र बने। गुरमीत बाबा तथा उनकी बेटियों ने गीतों के साथ-साथ लोक बोलियों तथा पीलू के मिज़र्ा साहिबा से मन-भावन बोल लम्बी हेक से गाकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया। एक शाम स्वराज वीर का लिखा और केवल धालीवाल द्वारा निर्देशित नाटक ‘फसल’ मौजूदा किसानी की हृदय-विदारक दशा को दर्शा गया। इस नाटक की प्रस्तुति से श्रोताओं ने महसूस किया कि यह वाला नाटक पंजाब के गांवों, शहरों और कस्बों में पहुंचना चाहिए ताकि नशों और ऋणों के शिकार हुए ग्रामीण परिवार विदेश जाने के जाल में फंसने की बजाय पूरी मेहनत करके अपनी मिट्टी को हसीन बनाएं। 
इस उत्सव के कवि दरबार में उर्दू, हिन्दी और पंजाबी के प्रसिद्ध कवियों ने पंजाबियों की दशा और दिशा का वास्ता देकर समूचे पंजाबियों को रचनात्मक सोच अपनाने के लिए प्रेरित किया और समय के शासकों को महेन्द्र सिंह रंधावा की कार्यशैली अपनाने के लिए चुनौती दी। इनमें से तरलोचन लोची, मनजीत इन्दिरा, मनमोहन सिंह दाऊं, गुरभजन गिल, बलविन्द्र संधू, सुरिन्द्र गिल, सुखविन्द्र अमृत, विजय विवेक, माधव कौशिक और सरदार पंछी खूब छाए। यह बात भी नोट की गई कि कला परिषद के अधिकारियों सुरजीत पात्र, लखविन्द्र जौहल तथा सर्बजीत सोहल ने नैतिकता का पालन करते हुए इस उत्सव में स्वयं को उभारने की बजाय दूसरे कवियों को ही पेश किया। इस उत्सव की एक विशेषता यह भी रही कि यहां तो वी.एन. गोस्वामी, वरियाम संधू तथा जतिन्द्र की कला, साहित्य और रंगमंच में डाले गए योगदान के लिए उनको पंजाब गौरव सम्मान से नवाज़ा गया। 
2 से 8 फरवरी तक चले इस उत्सव में दीवान मन्ना द्वारा तैयार की गई रंधावा की जीवनशैली की तस्वीरों की प्रदर्शनी सात दिन आकर्षण का केन्द्र बनी। उनके मुलकराज आनंद, डब्ल्यू.जी. आर्च, अमृता प्रीतम, मोहन सिंह तथा पंडित नेहरू जैसी हस्तियों के साथ मेल-मिलाप की बढ़िया तस्वीरें थीं। खासतौर पर कैरों, इन्दिरा गांधी और पंडित नेहरू ही नहीं विदेशी हस्तियों के बराबर का होकर विचरने वाली। दर्शकों ने यह भी नोट किया कि एक तस्वीर में किसी समारोह के समय रंधावा जी इतने तेज़ चल रहे हैं कि पंडित नेहरू उनके साथ भागकर मिलते दिखाई देते हैं। 
मोरनी के टिल्लों की हरियावल का भगवाकरण
गत सप्ताह पंचकूला से रायपुर रानी जाते हुए मोरनी के टिल्लों को खरोच कर उस मार्ग को चौड़ा होता देखकर आनंद आ गया। खुदाई के कारण गाड़ी को कई बार इधर-उधर करने के बावजूद लगता था इस मार्ग की पहली बार सुनी गई है। पतझड़ की ऋतु बाएं-दाएं की हरियावल देखने वाली है। सरकार को शाबाश देने के लिए मन करता है। शान्त, खूबसूरत और आकर्षक पहाड़ियों का दृश्य सचमुच ही देखने और आनंद लेने वाला है। पूछताछ से पता चला कि थन डॉग ब्लॉक के सात एकड़ साफ करके विश्व हिन्दू परिषद् यहां चिन्तन और खोज केन्द्र स्थापित कर रही है। हमारी यात्रा से पहले हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर विशेष तौर पर खट्टर मज़दूरों को कार्य करते देखकर गए हैं। यहां भक्तों की अराधना के लिए चार ब्लॉकों के अलावा एक लाइब्रेरी भी स्थापित होगी। तात्पर्य यह कि मोरनी की हरियावल पूरे तौर पर भगवा रंग की जायेगी। संघ परिवार को उनकी धारणा मुबारक।
विनय कटियार की बेतुकी
भाजपा सांसद विनय कटियार ने एक खतरनाक शोशा छोड़ा है। वह यह कि भारत के मुसलमानों को पाकिस्तान और बंगलादेश में चले जाना चाहिए। दलील यह कि उन्होंने 1947 में धर्म के आधार पर देश के टुकड़े करवाए थे। वह भूल जाते हैं कि देश विभाजन के ज़िम्मेदार सिर्फ मुस्लिम नेता ही नहीं, हिन्दू नेता भी थे। वैसे भी जनसंख्या के तबादले के समय हिन्दुओं या मुसलमानों की संख्या को आधार सिर्फ पंजाब और बंगाल के विभाजन के लिए बनाया गया था, समूचे भारत के लिए नहीं। इस विषय को बार-बार उभारना भारत की मुस्लिम, सिख, इसाई अल्पसंख्यकों के लिए अत्यंत भयानक है। धर्म-निरपेक्ष सोच वाले सावधान रहें।
अंतिका
(मौला बख्श कुशता)
दीवा मंदिर विच बले
मसीत विच जां 
मेरे लेयी है दोहां दी जोत इको
अजै तीक न ही मैनूं पता लगया।