अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंधों से बचने का पाकिस्तान का स्वांग

अब पाकिस्तान के किसी भी कदम से हैरत नहीं होती चाहे वह आतंकियों के मामले में झूठ पर झूठ बोले या फिर भारत के दिये गये सबूतों को नकारे पर दु:ख इस बात का जरूर है कि सीमा पर भारतीय सैनिकों के शहीद होने के सिलसिले किसी भी सूरत में नहीं रुक रहे हैं। हाल ही में जम्मू के सुंजवां में सेना के ब्रिगेड पर जिस प्रकार फि दायिन हमला किया गया उसे देखकर सितम्बर 2016 की उड़ी में सेना के कैम्प पर हुये हमले की याद ताजा हो गयी। उड़ी में उन दिनों 18 सैनिक शहीद हुए थे जबकि सुंजवां में भी 6 जांबाज सैनिकों को देश ने खो दिया। 
गौरतलब है कि उड़ी की घटना का हफ्ता मात्र ही बीता था कि भारतीय सैनिकों ने पीओके में घुस कर आतंकियों के अड्डे नेस्तनाबूत किये और उनके लॉचिंग पैड को भी बर्बाद किया था साथ ही 40 से अधिक आतंकी उनके निशाने पर भी आये थे। बावजूद इसके पाकिस्तान की सेहत पर इसका कोई असर नहीं पड़ा मगर एक खास बात यह है कि बीते कुछ महीनों से सीमा पर पाकिस्तान की हरकतों का उसी अंदाज में भारतीय सेना जवाब दे रही है।  इस तथ्य को गैर-वाजिब नहीं कहा जा सकता कि पाकिस्तान के भीतर आतंकी संगठन दिन दूनी रात चौगुनी की तर्ज पर विकसित हुए हैं। इन्हीं आतंकियों में एक खूंखार आतंकी हाफि ज सईद है तो दूसरा अजहर मसूद है। हालांकि फ हरिस्त इकाई-दहाई में न होकर सैकड़ों की तादाद में है। मुम्बई हमले के मास्टर माइंड हाफि ज सईद और उसके आतंकी संगठन जमात-उद-दावा पर इन दिनों एक नया फैसला सामने आया है और ऐसा अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंधों के डर के चलते हुआ है। दरअसल फ्रांस में आतंकवाद को आर्थिक मदद के खिलाफ  एक अहम बैठक होने जा रही है जिसे देखते हुए पाकिस्तान को यह डर है कि 18 से 23 फ रवरी तक पेरिस में चलने वाली फ ाइनेंशियल एक्शन टास्क फ ोर्स की इस सालाना बैठक में उसके खिलाफ  कोई कड़े कदम न उठा लिये जायें। गौरतलब है कि अमरीका पाकिस्तान पर बीते कई महीनों से इस बात के लिये दबाव बनाये हुए है कि पाकिस्तान देश के भीतर आतंकवाद समाप्त करे। इसी को लेकर उसने इसे फंडिंग करने से भी मना किया था। अमरीका ने पाकिस्तान को वैश्विक आतंकियों की फंडिंग की सूची में डालने को लेकर अंतर्राष्ट्रीय संगठन एफ एटीएफ  से भी सम्पर्क साधा। जाहिर है इस कदम से पाकिस्तान सहमा हुआ है और इसी के चलते बैठक से ठीक पहले गुपचुप तरीके से अपने आतंकवाद रोधी कानून में संशोधन कर दिया है जिसके तहत आतंकी सरगना हाफिज सईद के संगठन जमात-उद-दावा, फ लाह-ए-इंसानियत और संयुक्त राष्ट्र की सूची में शामिल कुछ अन्य आतंकी संगठन को जो उसके देश के भीतर हैं, को आतंकी संगठन मान लिया है। सवाल है कि क्या पाकिस्तान के इस बनावटी कदम से एफ एटीएफ  के फैसले पर कोई असर पड़ेगा। हालांकि पाकिस्तान की आदतों को देखते हुए शायद ही यह उसके पक्ष में जायेगा। जिस तरह आतंक की पाठशालायें पाकिस्तान ने अपने यहां खोली और हाफि ज़ सईद और अजहर मसूद और लखवी समेत तमाम आतंकी गुर्गों को पाला-पोसा उससे साफ  है कि मात्र इतने से उसका काम नहीं चलेगा। 
गौर करने वाली बात यह भी है कि अमरीका और भारत पाक में पसरे आतंकी नेटवर्क को नेस्तानाबूत करने को लेकर एड़ी-चोटी का जोर लगाये हुए हैं। मनी लांड्रिंग और टेरर फंडिंग पर नजर रखने वाली एफ एटीएफ की काली सूची में सम्भव है कि इस बार पाकिस्तान का नाम आयेगा जबकि पाकिस्तान अपनी छवि साफ -सुथरी दिखाने की फिराक में है। गौरतलब है कि साल 2012 के फ रवरी में एफएटीएफ  की काली सूची में पाकिस्तान का नाम डाला गया था और तीन साल तक वह इसमें बना रहा पर अब उसकी एक बार फिर यहां जगह बनती हुई दिख रही है। एक लिहाज़ से देखा जाये तो पाकिस्तान दुनिया की आंखों में खूब धूल झोंक रहा है, साथ ही आतंक का पूरा उपयोग भारत के खिलाफ  किया है जिसकी कीमत आज भी देश चुका रहा है। जमात-उद-दावा समेत कई आतंकियों और उनके संगठनों को लेकर जिस तरह प्रतिबंध वाली हड़बड़ी उसने दिखाई है उसे देखते हुए अब वह दुनिया को बेवकूफ  शायद ही बना पाये। खास यह भी है कि आतंकियों पर पाक द्वारा खेला गया दांव पुख्ता नहीं है क्योंकि प्रतिबंध एक अध्यादेश के माध्यम से है जो कुछ समय बाद भंग हो जायेगा क्योंकि इसकी अपनी समय सीमा होती है। जाहिर है प्रतिबंधित आतंकी और संगठन पुन: बहाल हो जायेंगे। यदि पाकिस्तान उसे कानून में बदल दे तब यह स्थायी हो सकता है पर वह ऐसा क्यों करेगा और क्या कर पायेगा? सभी जानते हैं कि पाकिस्तान में नाममात्र का लोकतंत्र है वहां की सरकार का एक हाथ सेना और आईएसआई के कब्जे में तो दूसरा आतंकियों ने दबोच रखा है। कहा जाय तो बनावटी लोकतंत्र और कमजोर निर्णय वाली सरकार इस्लामाबाद में गुजर-बसर करती है। फि लहाल बदली स्थिति को देखते हुए भारत सरकार की इसलिए तारीफ  की जा सकती है कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान को झुकाने में कुछ हद तक कामयाब तो हुई है। 
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