जीवन को दहला देने वाली हत्या!

यह 5 सितम्बर, 2017 का दिन था जब गौरी लंकेश की उनके घर के सामने अज्ञात लोगों द्वारा हत्या कर दी गई। इससे पहले एम.एम. कलवर्गी, नरेन्द्र दाभोलकर और गोविन्द पनसारे की हत्या हुई है, जिनके हत्यारे भी अभी तक अज्ञात हैं।हम लोग आधुनिक समाज व्यवस्था में रह रहे हैं। विचारधारात्मक स्वतंत्रता का आदर करना हमारा फर्ज है। आप किसी के विचार को सही नहीं मानते, आप उस विचार के विरोध में अपना विचार प्रस्तुत कर सकते हैं। आप दूसरे की विचारधारा को रद्द कर सकते हैं। उसकी उपेक्षा कर सकते हैं। अपनी तर्क शक्ति के आधार पर उसकी आवाज़ नहीं सुनने का आग्रह कर सकते हैं। कोई भी स्वस्थ दिमाग का आदमी वैचारिक विरोध के कारण हिंसा के रास्ते पर उतरना पसंद नहीं करेगा, न ही करना चाहिए। सभ्य समाज इस अमानवीय कार्यवाही को कभी सहन नहीं कर सकता। यह एक घोर अराजक स्थिति है कि कोई अपनी विचारधारा के अनुसार एक बात कहे और उसका विरोधी उसे गोली से उड़ा दे। लम्बे अर्से से आस्तिक और नास्तिक धाराओं का विरोध चलता रहा है, परन्तु आस्तिक और नास्तिक दोनों वर्गों के लोग जीने और अपने विश्वास अनुसार आचरण करने के लिए स्वतंत्र रहे हैं। भारत जब विभिन्न आस्थाओं का मुल्क है तो कोई भी अपनी आस्था अनुसार आचरण के लिए स्वतंत्र क्यों नहीं रह सकता। व्यवस्था में भष्टाचार की आंधी। धार्मिक पाखंड और कठमुल्लयापन अपना विरोध सह नहीं पाता। सैद्धांतिक मतभेद पर हिंसा का मार्ग अपनाया जाना हर तरह से निंदनीय है। सलमान रूश्दी ने एक बार कहा था कि ‘किसी पुस्तक से पीड़ित न होने का बड़ा ही आसान रास्ता है, आप बस उसे पढ़ना बंद कर दीजिये।’सभी जानते हैं कि गौरी लंकेश वैचारिक लेखन के प्रति प्रतिबद्ध थीं। छद्दम राष्ट्रवाद को लेकर उनकी जद्दोजहद समझौता विहीन रही है। कर्मकांडों के खिलाफ सदा खुलकर बोलती थीं। एक ईमानदार पत्रकार ही नहीं। एक सक्रिय सामाजिक कार्यकर्ता भी थीं। मानवीय मूल्यों की स्थापना के लिए लगातार संघर्ष किया। अपने लेखों में वह साम्प्रदायिकता और पितृसत्तात्मकता के विरुद्ध आवाज़ उठा रही थीं और फर्जी समाचारों के वाहक लोगों की पोल खोल रही थी। उनकी हत्या का देश भर में प्रतिरोध हुआ। और विरोध में शामिल अधिकांश लोगों के पास गुमनाम इलैक्ट्रोनिक सन्देश भेजा गया कि ‘लंकेश की हत्या सही थी।’ पंजाबी में एक कहावत है कि ‘दुश्मन मरे तां खुशी न करिये, सज्जनां वी मर जाणा।’ निखिल दधीज नामक युवक ने मृत्यु (हत्या) पर खुशी ज़ाहिर की और सोशल मीडिया पर मंतव्य किया—एक कुत्तिया कुत्ते की मौत क्या मरी कि पिल्ले एक सुर में बिलबिला रहे...।’ चर्चा का मुख्य कारण यह कि प्रधानमंत्री ट्वीटर पर उन्हें अनुसरण करते हैं। तथ्य सामने आने पर प्रधानमंत्री ने पत्र लिखा—प्रिय मित्र दधीज, यह कहते हुए मुझे शर्म आ रही है कि मैं तुम्हारा ‘फॉलोवर’ हूं। आंग सान सू की ने कल जब मुझसे कहा कि ‘मोदी जी आप ऐसे लोगों को फॉलो करते हैं, तो मैं शर्म के मारे ज़मीन में गड़ गया। मुझे ज़िंदगी में पहली बार विदेश में होने का पछतावा हुआ। मैं सू की से नज़रें नहीं मिला पाया, सिर्फ तुम्हारी वजह से। मैंने तो तुम्हारे ट्विटर खातों में ‘हिन्दू नेशनलिस्ट’ और ‘मोदी प्रशंसक लिखा देखा और देखते ही फॉलो करने लगा।’... मैं तुम्हें चेतावनी देता हूं, अगर तुमने ऐसे ही चार और ट्वीट कर दिये तो मैं किसी भव्य कार्यक्रम में मंच पर बुलाकर व्यक्तिगत रूप से मिलकर तुम्हें डांटूगा। समझ गये? ... समझ लो दधीच, इशारा ही काफी है।मत विरोध के कारण दुनिया में हत्याएं तो हुई हैं, परन्तु इन्सानी ज़नीन पर ऐसी हत्याओं की भरपूर निंदा भी हुई है। वैचारिक विरोध के कारण हिंसा के पक्ष में कोई भी संवेदनशील व्यक्ति नहीं खड़ा होना चाहेगा। देश के संविधान की मूल भावना के विपरीत किसी भी काम को अपराध माना जाना चाहिए। मूल भावना धर्म-निरपेक्षता की है, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की है। धर्म-निरपेक्षता, पाखंड, दुराचार, पापाचार के विरुद्ध है। मानवतावाद के प्रति लगाव, मानवता की चिंता, मानवता के हक में बुलंद आवाज़ सदा प्रशंसनीय  होनी चाहिए। निकोलाई अस्त्रोम्की ने कहा था—आदमी की सबसे बड़ी दौलत उसकी ज़िंदगी होती है और जीने के लिए आदमी को बस एक ज़िंदगी मिलती है। उसे इस तरह अपनी ज़िंदगी जीनी चाहिए ताकि उसे मन ही मन दु:ख की पीड़ा को न सहना पड़े कि उसे अपनी ज़िंदगी के साल यूं ही गुजार दिये हैं। गौरी लंकेश का जीवन ऐसा ही जीवन था और काल ने उस जीवन को गहरा किया है।