बजट की कमी से प्रभावित हो सकती हैं सैन्य तैयारियां

रक्षा बजट की कमी को लेकर वाईस चीफ ऑफ दि आर्मी स्टाफ लैफ्टिनेंट जनरल सरथ चंद ने पार्लियामैंट स्टैंडिंग कमेटी ऑन डिफैंस (कमेटी) के रू-ब-रू होकर स्पष्ट शब्दों में कहा है कि ‘बजट ने हमारी उम्मीदों पर पानी फेरा है’ और हो सकता है कि 25 ‘मेक इन इंडिया’ प्रोजैक्ट बंद करने पड़ें। जनरल ने कमेटी को यह भी बताया कि आर्मी कैम्पों की सुरक्षा के लिए कोई अलग फंड मुहैया नहीं करवाए गए। वाईस चीफ ने पार्लियामैंट कमेटी का नेतृत्व करने वाले सेवानिवृत्त मेजर जनरल बी.सी. खंडूरी को प्रभावशाली ढंग से कहा कि बजट की कमी युद्ध तैयारी तथा सेना के आधुनिकीकरण को प्रभावित करेगी, क्योंकि 68 प्रतिशत हथियार, उपकरण, साजो-सामान पहले ही पुराने हो चुके हैं। तथ्यों के आधार पर अपना केस पेश करते हुए जनरल ने बताया कि सेना के आधुनिकीकरण के लिए 21,338 करोड़ रखे गए हैं। जबकि सिर्फ चालू 125 योजनाओं के लिए 29,033 करोड़ रुपए की राशि की ज़रूरत होगी। कमेटी ने संसद में 13 मार्च, 2019 को जो रिपोर्ट रखी उसमें यह भी दर्ज किया गया कि सेना ने इस बजट में 1,96,387.36 पूंजीगत (रेवेन्यू और कैपिटल) खाते के लिए मांग रखी थी, जबकि 1,53,875.22 करोड़ ही मुहैया करवाये जाने हैं। इसका तात्पर्य है कि 42,512.14 करोड़ रुपए के बजट की कमी है। जोकि 23 प्रतिशत बनती है। कमेटी द्वारा इस बात का भी उल्लेख किया गया है कि जल सेना की बढ़ रही नई टैक्नालॉजी और आपरेशन की तैयारी पर असर डालने वाली ज़रूरतों के लिए जो बजट है, वह भी निराशाजनक है। सवाल पैदा होता है कि क्या रक्षा बजट की कमी देश की सुरक्षा को प्रभावित नहीं करेगी? क्या सेना के आधुनिकीकरण को नज़रअंदाज़ करना उचित होगा? स्मरण रहे कि चीन भी भारत को घेरने की ताक में है। वास्तविकता तो यह है कि जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान की ओर से शुरू किया हुआ छद्म युद्ध हर रोज़ तेज़ होता जा रहा है। इसके साथ ही लगभग 740 किलोमीटर लम्बी नियंत्रण रेखा पर गोलाबारी का उल्लंघन और घुसपैठ जैसी घटनाओं में वृद्धि हो रही है, जिसका असर अन्तर्राष्ट्रीय सीमा पर भी पड़ रहा है। सीमांत क्षेत्र के स्कूल बंद पड़े हैं। हज़ारों की संख्या में क्षेत्रवासी सुरक्षित स्थलों की ओर पलायन करके जा रहे हैं। कुछ कैम्पों में शरण लिए बैठे हैं, क्योंकि उनके गांवों पर भी पाकिस्तान की ओर से गोले दागे जा रहे हैं। कश्मीर घाटी और साथ लगते जम्मू के सीमांत क्षेत्र में वर्ष 2014 से 2017 तक की हुई घटनाओं में 251 सैनिक शहीद हुए हैं और कुछ घायल भी हुए हैं। 77 आम नागरिक भी मारे गए और कई घायल भी हैं। सर्जिकल स्ट्राईक के बाद यह उम्मीद की जा रही थी कि पाकिस्तान अपनी घिनौनी चालों से बाज़ आयेगा परन्तु ऐसा तो दिखाई नहीं दे रहा। सवाल पैदा होता है कि कब तक हमारे बहादुर जवान शहीद होते रहेंगे? देश की सुरक्षा में दरार और कमज़ोरी क्यों? क्या हमारी सरकार ने पठानकोट तथा अन्य सैन्य शिविरों पर हुए हमलों के बाद कोई सबक नहीं सीखा? जब 2 जनवरी, 2016 को पाकिस्तान के पोषित आतंकवादियों ने पठानकोट के सैन्य हवाई अड्डे पर फिदायीन हमला किया था, जिसमें सात सुरक्षा कर्मी शहीद हो गए थे, तो केन्द्र सरकार ने सैन्य शिविर की सुरक्षा पर ठोस प्रबंध करवाने के उद्देश्य से वाईस चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ लैफ्टिनेंट जनरल फिलिप कम्पोज कमेटी का गठन किया था, जिसकी रिपोर्ट तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर पार्रिकर को 2016 को 6 कांडों में सौंपी गई थी।  रिपोर्ट में पुरज़ोर सिफारिश की गई थी कि इन सैन्य ठिकानों को सुरक्षित बनाने के लिए आधुनिक हथियारों और रात को दिखाई देने वाले यंत्रों, सी.सी.टी.वी. कैमरों तथा बाड़ के विद्युतीकरण का प्रबंध किया जायेगा। इसके साथ ही फिर गत वर्ष थल सेना, जल सेना और वायु सेना ने संयुक्त तौर पर 8,000 के लगभग सैन्य ठिकानों की पहचान की थी, जिनमें से लगभग 600 अति संवेदनशील होने के कारण सरकार को अवगत करवाया था और बड़े बजट की मांग भी की गई थी। सैन्य शिविरों पर लगातार जारी आतंकवादी हमलों के बाद विशेष तौर पर सुजवां शिविर के हमले के बारे में रक्षा मंत्री निर्मला सीता रमन ने जम्मू पहुंच कर जब हमले के बारे में जांच पड़ताल की तो 14,097 करोड़ रुपए के बजट की स्वीकृति इन कार्यों के लिए दी गई। परन्तु अलग से बजट मुहैया नहीं करवाया गया। जनरल चांद के अनुसार यदि सैन्य शिविरों की सुरक्षा के लिए फंडों की व्यवस्था निर्धारित बजट से ही करनी है तो फिर आधुनिकीकरण पर गाज गिरेगी। ज़रूरतें अधिक और बजट कम
केन्द्र सरकार ने वर्ष 2018-19 के लिए 2,95,511.41 करोड़ की राशि रक्षा बजट के तौर पर निर्धारित की। जो वित्तीय वर्ष 2017-18 में रखी गई 2,74114.12 की राशि के मुकाबले 7.81 प्रतिशत की मामूली वृद्धि है, जो कुल घरेलू उत्पादन (जी.डी.पी.) का लगभग 1.58 प्रतिशत हिस्सा ही बनता है, जोकि वर्ष 1962 से सबसे कम है और यह वृद्धि भी महंगाई में खपत जायेगी? यहां यह भी बताना उचित होगा कि 36 राफेल विमान 145 अल्ट्रा लाईट होवित्ज़र तोपें, 83 तेज लाईट कामबैट विमान, 6 पनडुब्बियां, हैलीकाप्टर तथा कुछ अन्य हथियारों की चाहे बेहद ज़रूरत है, परन्तु उनके लिए भुगतान चाहे किश्तों में ही क्यों न हो निर्धारित बजट से करना मुश्किल होगा। इसके अलावा सीमांत तनाव और आतंकवादी हमलों के मद्देनज़र सेना की दशकों पुरानी असाल्ट राइफलों की मांग अंतत: सरकार ने स्वीकार कर ली है और 12,280 करोड़ की 7.40 लाख असाल्ट राइफलें खरीदी जायेंगी। परन्तु कब और बजट कहां से आयेगा? इसके अलावा 1819 करोड़ की राशि से हल्की मशीनगनें तथा 982 करोड़ की लागत से 5719 सनाइपर राइफलें खरीदने के लिए रक्षा मंत्री की अध्यक्षता में हुई डी.ए.सी. की बैठक के दौरान फैसला लिया गया है। अब जब सरकार को थोड़ा एहसास होना शुरू हुआ है, तो थोड़ा सा जागी है। उल्लेखनीय है कि आतंकवादियों से बरामद किए गए हथियार यह साबित करते हैं कि पाकिस्तान के पास अधिक आधुनिक हथियार हैं, चाहे उनको अमरीका दे, चीन या कोई अन्य देश? समीक्षा और सुझाव यहां यह बताना उचित होगा कि 4 फरवरी को राजौरी सीमा क्षेत्र में कैप्टन कपिल कुण्डु सहित चार सैनिक शहीद हो गए थे, क्योंकि पाकिस्तान की ओर से उनके दशकों पुराने बंकर पर मिसाइल दागने के कारण बंकर तहस-नहस हो गया था। यदि कहीं दुश्मन की तोपें, गोले इस किस्म के बंकरों पर गिरने लगें तो फिर भगवान ही रखवाला? हकीकत तो यह है कि हमारी सरकारें आमतौर पर सेना की ज़रूरतें, सैनिकों का सम्मान, दर्जा और मान-सम्मान की ओर कम ध्यान देती हैं। यदि हमारे शासकों को सेना के साथ थोड़ी सी भी सहानुभूति होती तो पूर्व सैनिक गत 1,000 दिनों से जंतर-मंतर पर बैठे न रहते? यहां यह बताना उचित होगा कि रक्षा मामलों से संबंधित कमेटी ने कुछ समय पूर्व सेना को कुल बजट का 2.25 प्रतिशत से 3 प्रतिशत के बीच जी.डी.पी. का हिस्सा मुहैया करवाने के लिए सिफारिश की थी, जिससे दुश्मन का भारी नुक्सान होगा और अपनी बहुमूल्य जानें बचाई जा सकती हैं। अफसोस कि बजट तो जी.डी.पी. का मात्र 1.58 प्रतिशत ही दिया गया है, जोकि उपरोक्त बयान की गई ज़रूरतों पर पूरा नहीं उतरता। अब देखना यह होगा कि श्रीमती निर्मला सीता रमन किस ढंग से इन मुश्किलों को हल करती हैं। विचारणीय बात यह भी है कि पठानकोट कमेटी की रिपोर्ट पर और दो वर्षों तक कोई कार्रवाई क्यों नहीं की गई? क्या रक्षा मंत्री दोषी लालफीताशाही के खिलाफ कोई कार्रवाई करेंगी? सांसदों को चाहिए कि चालू बजट सत्र के दौरान पार्टी स्तर से ऊपर उठकर संसदीय कमेटी की सिफारिशों को लागू करवाने के लिए आवाज़ उठायें, इसमें देश और सेना का भला होगा।

—लेखक : रक्षा विश्लेषक 
फोन : 0172-2740991