पंजाब की आर्थिकता और अमरेन्द्र शासन का एक वर्ष

पंजाब में अमरेन्द्र शासन का पहला वर्ष पूरा हो गया। बहुत सी आशाओं और उम्मीदों के साथ यह वर्ष शुरू हुआ था। हर घर रोज़गार, किसानों का कज़र् बोझ से छुटकारा, बेकार नौजवानों को रोज़गार, अनियमित कर्मचारियों को स्थायित्व और सामाजिक सुरक्षा के बेहतर उपायों के वायदों के साथ यह वर्ष शुरू हुआ था। साढ़े दस लाख किसानों के कज़र् माफी और पचास हज़ार बेकारों को रोज़गार देने के लिए रोज़गार मेलों की सहायता से कुछ सार्थक कदम उठाने का अभियान शुरू हूआ था। नौजवानों में स्मार्ट फोन बंटने थे, और निराश्रित वृद्धों की पैंशन पन्द्रह सौ रुपए तक बढ़नी थी। वंचित वर्ग में सस्ता आटा-दाल नहीं, चाय की पत्ती भी बंटनी थी। सरकार ने पहला बजट प्रस्तुत किया। उसमें पहले अढ़ाई और फिर पांच एकड़ तक के किसानों के अढ़ाई लाख रुपए तक के कज़र्े माफ करने की घोषणा थी और शेष सब चुनावी वायदों को पूरा करने की प्रतिबद्धता थी। लेकिन इस बीच पंजाब की आर्थिक दुरावस्था का एक श्वेत-पत्र पेश हुआ। इसने बताया कि पंजाब पर कज़र् बोझ दो लाख करोड़ रुपए से ऊपर है, किसानों पर कज़र् बोझ ही 87,000 करोड़ रुपए से बढ़ कर एक लाख करोड़ रुपए की सीमा को छू रहा है। सरकार नौ हज़ार करोड़ रुपए की कुल कज़र् माफी घोषणा में से पन्द्रह सौ करोड़ रुपए की कज़र् माफी के पहले चरण के साथ आगे बढ़ी। राज्य में बाईस लाख बेरोज़गार हैं। सरकार जिन पचास हज़ार बेकारों को पहले चरण में रोज़गार देना चाहती थी, उसका परिणाम भी इस बार सरकार द्वारा आयोजित रोज़गार मेलों और कज़र् माफी मेलों में बहुत आशाजनक नहीं निकला, पूरा वर्ष केन्द्र से विशेष आर्थिक पैकेज, कज़र् माफी अनुदान, सीमान्त इलाका राहत अथवा पराली जलाने से किसानों को रोकने के लिए आर्थिक सहयोग की मांग होती रही, लेकिन यह सहयोग मिला नहीं। अब पहला शासन वर्ष बीत गया, विकास यात्रा अवरुद्ध नज़र आती है।
पंजाब में अमरेन्द्र शासन द्वारा दूसरा बजट प्रस्तुत करने का वक्त आ गया, लेकिन सरकार द्वारा अनावश्यक खर्चों में कटौती के दावों के बावजूद उसकी आर्थिक प्रवंचना खत्म होती नज़र नहीं आती। किसान विरोध-प्रदर्शन के लिए सड़कों पर हैं, क्योंकि वायदों के बावजूद न उन्हें अपनी मेहनत का उचित प्रतिशत मिला है, और न ही रोगी वितरण नीति में कोई सुधार दिखाई दिया है। कर्मचारी वर्ग प्रसन्न है, क्योंकि उनके छठे वेतन आयोग, तीन महंगाई भत्तों की किस्तें अथवा बकाये जारी नहीं हुए, बल्कि नई नियुक्तियों को भी अभी पहले तीन वर्ष तक मूल वेतन पर काम करने के आदेश दिए जा रहे हैं, जिसका विरोध कर्मचारी संगठन करते रहे हैं। जहां तक उद्योग धंधों को राहत देने का संबंध है, सरकार ने 1500 करोड़ रुपए की सबसिडी के वहन के साथ इकाइयों को पांच रुपए प्रति यूनिट बिजली प्रदान कर दी है। लेकिन उद्यमियों को शिकायत है इसकी लागत भी उन्हें साढ़े सात रुपए प्रति यूनिट पड़ रही है। शेष शहरी और व्यवसायी बार-बार बढ़ रहीं बिजली दरों से पिस रहा है। पंजाब पावर निगम का आर्थिक ढांचा किसानों और दलितों को मुफ्त बिजली पानी बोझ से चरमरा गया। इसे सही करने के लिए अगर पावर दर नियमन आयोग के परामर्श अनुसार अप्रैल माह में शहरी और व्यवसायी क्षेत्र के लिए बिजली दर और बढ़ा दी जाती है, तो यह इस वर्ग पर गाज होगी।मौसम बदल रहा है, और इसके साथ ही राज्य की बिजली खपत की मांग बढ़ती जायेगी। पीक सीज़न में यह साढ़े बारह हज़ार मैगावाट तक जा सकती है। पंजाब का अपना उत्पादन साढ़े आठ हज़ार मैगावाट तक है, अधिक से अधिक। अब निजी ताप घरों का प्रयोग तो नई सरकार की कृपा से शुरू हो गया, लेकिन भटिंडा थर्मल प्लांट और रोपड़ थर्मल प्लांट के आंशिक रूप से बन्द होने से शक्ति उत्पादन की स्थिति वहां की वहां है। पंजाब फिर पड़ोसियों से बिजली आपूर्ति के दीर्घकालीन समझौते करने पर विवश हो रहा है। न जाने वे दिन कब आयेंगे जब नेताओं की घोषणाओं के अनुसार पंजाब बिजली आपूर्ति में सरप्लस होगा, या जनता के लिए उसकी लागत कम होगी, अपना राज्य में वैकल्पिक सौ  शक्ति उत्पादन का प्रबंध हो सकेगा? इस समय पंजाब के वित्त मंत्री की उम्मीदें केन्द्र की ओर से मिलने वाले जी.एस.टी. अंशदान से भी पूरी नहीं हो रहीं। मिलने वाली राशि उनकी उम्मीद से कम है, और इसका भुगतान भी मासिक आधार पर नहीं हो रहा। सरकार इसकी कमी पूर्ति पेट्रोलियम उत्पादों पर अपने स्थानीय कर न घटा कर अथवा अपनी नई आबकारी नीति के साथ राज्य में असरदार शराब लॉबी को तोड़ देने के साथ कर रही है। यह दोनों कदम आम आदमी के हित में नहीं, क्योंकि शराब सस्ती और दूध महंगा उन्हें असंगत लगता है।