डर भी होता है अनेक समस्याओं का कारण

रामचरितमानस की उक्ति ‘भय बिनु होइ न प्रीति’ बहुत प्रसिद्ध है। जब श्री राम और लक्ष्मण ने समुद्र से अपनी सेना को पार जाने में सहायता मांगी तो वह नहीं माना। तब राम समझ गए कि या तो समुद्र को इस बात का डर है कि हम उसका कोई अहित करेंगे या फिर उसे अपने विशाल होने का अहम होगा जिसके कारण उसने उन्हें मार्ग देने से मना कर दिया। श्री राम की विनती का उस पर कोई प्रभाव नहीं हुआ। लक्ष्मण ने कहा कि जब तक इसके मन में हमारा डर नहीं होगा यह हमारी सहायता करने वाला नहीं, क्योंकि यह बहुत अहंकारी है। तब श्रीराम ने उसमें भय उत्पन्न करने के लिए महा-अग्निपुंज-शर का संधान किया, समुद्र के अन्दर ऐसी आग लगी जिससे उसमें रहने वाले जीव-जन्तु जलने लगे। मतलब यह कि जब समुद्र को अपना अस्तित्व ही समाप्त होता नज़र आने लगा तो वह ब्राह्मण वेश में प्रकट हो याचना करने लगा और कहा वह तो जड़ बुद्धि है, इसलिए उसे क्षमा करें। इस कथा को यदि आज के संदर्भ में लें तो वर्तमान में अनेक घटनाओं के होने का रहस्य उजागर हो जाता है। यह रहस्य अपने अंदर छिपी डर की भावना होना है जिसके बहुत से प्रकार हो सकते हैं। अक्सर हम हमेशा यह सोचकर डरते रहते हैं कि आने वाले समय में क्या होगा? भविष्य में क्या होगा? जो घटना अभी हुई ही नहीं है उसके लिए हम बेवजह परेशान क्यों होने लगते हैं। यही डर कभी-कभी इतना बढ़ जाता है कि लोग कुछ ऐसा कर जाते हैं जो न उनके हित में होता है और न ही दूसरों के। डर को परिभाषित करना काफी कठिन है बस इतना ही कह सकते हैं कि हमें डर हर उस बात से लगता है जो हमारे अनुकूल नहीं होती।
आपको जिस चीज़ से डर लगता है, वास्तव में वह उतनी डरावनी नहीं होती जितना कि खुद डर होता है। कोई आपका दिल दुखाए, इससे पहले ही आप अपने आपको इतना दुख पहुंचा लेते हैं कि उसके करने के लिए ज्यादा कुछ बचता ही नहीं। बिना वास्तविकता को समझे, अहम के कारण उसे हक की लड़ाई का नाम देकर एक दूसरे को हानि पहुंचाते रहते हैं। कुछ घटनाओं के जरिए इस बात को समझते हैं। मिसाल के तौर पर एससी-एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश को लेकर एक ओर दलित समाज मोर्चा ताने खड़ा है और दूसरी ओर आरक्षण के विरोधी। इनकी अज्ञानता के कारण शातिर, राजनीतिज्ञ और गुंडा तत्त्व इस आग में अपनी रोटी सेंक रहे हैं, जबकि बात बस इतनी-सी थी कि दलित समाज के प्रति कोई अपशब्द कहने, भेदभाव करने या उन्हें हानि पहुंचाने के आरोपी को तब तक गिरफ्तार नहीं किया जाना चाहिए जब तक कि उसका दोष सिद्ध न हो जाए परन्तु इस मामूली सी बात का बतंगड़ बन गया और हत्याएं, आगजनी शुरू हो गई।
अब एक दूसरे डर का उदाहरण देते हैं। पिछले दिनों सीबीएसई 10वीं के गणित और 12वीं के अर्थशास्त्र के पेपर लीक होने के बाद पुन: परीक्षा कराने की बात से छात्रों ने जबदस्त आन्दोलन कर दिया। वह नहीं चाहते थे कि उन्हें दोबारा परीक्षा देनी पड़े जबकि उनके मन में इस बात का कोई डर नहीं था कि जिन्हें लीक हुए पेपर मिल गए हैं वे उनसे ज्यादा अंक प्राप्त कर सकेंगे। अब जिसने साल भर पढ़ाई की है उसे काहे का डर और जो सिर्फ  लीक पेपर की सहायता से पास होना चाहता है वह होगा ही नहीं, क्योंकि जब पढ़ाई ही नहीं की तो वह लिखेगा क्या? पेपर लीक का सिलसिला शुरू हुआ फेल होने के डर से। कहने का मतलब है कि छात्र को परीक्षा में फेल होने का डर न होता तो वह पेपर लीक जैसे गुनाह में शामिल कभी न होता। उसके साथ ही वह विद्यार्थी जो इसमें शामिल थे, अपराधी की कतार में आ खड़े हुए। अब सरकार का डर देखिए पुन: परीक्षा कराने का ऐलान कर दिया फिर उसमें कुछ संशोधन भी करने की ज़रूरत समझी।
आइए एक और डर से आपको मिलाते हैं और वो है पैसे की हेराफेरी और गबन से मिलने वाली सज़ा का डर जिसका जीता जागता उदाहरण है विजय माल्या और नीरव मोदी। उन्हें बेईमानी से कमाए गए पैसे खोने का इतना डर लगा कि वह देश ही छोड़कर भाग गए और अपने पीछे छोड़ गए एक और डर। आप सोच रहे होंगे वह क्या ? वह यह कि जिस पीएनबी और दूसरे बैंकों से धन लूटकर वह नौ दो ग्यारह हो गए हैं उसमें जमा आम जनता के पैसों का क्या होगा? ‘ऐसा जीना भी कोई जीना है ललू’ मतलब ऐसा काम ही क्यों किया जाए कि चन्द कागज के टुकड़ों के लिए अपनी जन्मभूमि, परिवार और कारोबार सब छोड़ना पड़े।
डर से होने वाले नुकसान
किसी इंसान को घोड़ा पालने पर सिर्फ  इसलिए मार दिया गया, क्योंकि वह दलित था और बड़े साहूकारों को इस बात का डर था कि उनकी प्रतिष्ठा कहीं मिट्टी में न मिल जाए, एक दलित उनकी बराबरी न कर ले और समाज में उनसे उनका सम्मान न छिन जाए। एक ऐसा ही उदाहरण है संजय जाटव नाम के एक युवक का है जो अपनी बारात गांव में घुमाना चाहता है लेकिन जिस रास्ते से वह जाना चाहता है वहां ऊंची जाति के लोगों के घर भी पड़ते हैं। गांव की शान्ति भंग न हो इसलिए उस पर पाबंदी लगा दी गई और विकल्प दिया गया कि लम्बी दूरी तय कर अपनी बारात ले जाए ताकि ऊंची जाति वालों की आंखों के सामने न आए। यह डर तो बहुत ही हास्यास्पद है। आप ने अक्सर सुना और पढ़ा होगा कि यूपी के मुख्यमंत्री कभी नोएडा नहीं आते, क्यों ? क्योंकि उन्हें इस बात का डर होता है कि नोएडा जाने से उनकी सत्ता ही छिन जाएगी जबकि हो सकता था कि यदि वह नोएडा आते तो इसके विकास पर ज्यादा काम हो रहा होता। जरा सोचिए यदि नोएडा आने से ही कुर्सी चरमरा जाती तो पूर्व मुख्यमंत्रियों के यहां न आने पर भी उनकी सरकारें क्यों गिर गईं? ऐसे नेता अपनी प्रतिष्ठा बनाने से भी चूक गए जो उनके राजनीतिक कैरियर के लिए घातक सिद्ध हुई है। अब वर्तमान मुख्यमंत्री धड़ल्ले से नोएडा आए और उन्होंने डर नामक चीज को पैरों तले रौंद दिया। एक डर यह भी है जब किसी व्यक्ति से अनजाने में कोई अपराध हो जाता है तो वह उसे छिपाने के लिए अपराध पर अपराध करने लगता है। उसे हमेशा फांसी, जेल और सज़ा का खौफ  डराता रहता है, जो उसे एक शातिर मुजरिम बना देता है। वहीं अगर वह बिना डरे अपने अपराध को स्वीकार कर लेता तो उसे एक अपराधी की भांति डर-डर कर जीवन न जीना पड़ता। फि ल्म थ्री इडियट में आमिर खान का एक डॉयलॉग है ‘एक डर-डर के जीता है और एक मर-मर के’ जो यहां बिल्कुल फि ट बैठता है। अब धर्म के ठेकेदारों द्वारा फैलाए जाने वाले डर की बात करते हैं। यह लोग  धर्म, भगवान, मोक्ष के नाम पर दूसरों को इतना डराते हैं कि वह विवश होकर डर से कांपने लगते हैं और उनके धार्मिक आडम्बर का खेल आसानी से चलने लगता है। उदाहरण के लिए बाबा राम रहीम और आसाराम बापू को ही ले लीजिए। उनके इतने कुकर्मों के बाद भी लोगों का डर इतना बड़ा है कि वह आज भी उनके खिलाफ  मुंह खोलने से डरते हैं जबकि सच्चाई सब के सामने है। अब प्यार-मोहब्बत की बात पर आते हैं। लड़का-लड़की प्यार तो कर लेते हैं पर उन्हें डर रहता है कि मम्मी-पापा को पता चल गया तो, शादी नहीं हुई तो, शादी के बाद हम खुश रह पाएंगे या नहीं, जैसे कई सवाल डराने लगते हैं। ऐसे में अपराध होने का प्रतिशत कहीं ज्यादा बढ़ जाता है, या तो लड़का-लड़की भाग जाते हैं या आत्महत्या कर लेते हैं या फिर परिवार वाले समाज में बदनामी होने के डर से खुद ही उन्हें मार देते हैं और यह सब न हुआ तो लड़की की शादी किसी दूसरे लड़के से करा दी जाती है। फिर शुरू होता है लड़की के डरने का दूसरा सिलसिला यानि उसे यह डर सताने लगता है कि अगर उसके पति को उसके प्रेमी के बारे में पता चला तो क्या होगा? कहने का तात्पर्य यह है कि डर का महाजाल न दिखाई देते हुए भी बहुत व्यापक है। वह इंसान को अपनी गिरफ्त में इस प्रकार भर लेता है कि सोचने समझने की शक्ति ही चली जाती है।