काफी सीमा तक अपनी मर्ज़ी  मनवाने में सफल रहे मुख्यमंत्री

पंजाब मंत्रिमंडल में विस्तार के बाद बेशक मंत्री बनने से वंचित रह गए आशावादी कांग्रेसी विधायकों में असंतोष है। परन्तु इस विस्तार ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह अपनी बात मनवाने में सक्षम हैं और वह अपनी ही शर्तों पर शासन कर रहे हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि मंत्रिमंडल के विस्तार में कैप्टन सौ प्रतिशत अपनी मर्ज़ी  करने में सक्षम नज़र नहीं आए परन्तु फिर भी नए बने 9 मंत्रियों में से 6 मंत्री तो निरोल उनकी अपनी पसंद के बताए जाते हैं। जबकि अन्य तीन मंत्रियों में से चाहे एक वरिष्ठ कांग्रेसी नेता अम्बिका सोनी का निकटतम माना जाता है। परन्तु उसमें भी अम्बिका सोनी के दबाव की अपेक्षा ज्यादा उनकी स्वयं कैप्टन से बनीं निकटता को ही कारण माना जा रहा है। अन्य दो नये बने मंत्रियों में से एक पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष सुनील जाखड़ तथा सांसद रवनीत सिंह बिट्टू की सांझी पसंद बताए जाते हैं, जबकि एक निरोल कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की पसंद माने जा रहे हैं। 
विरोध के स्वर
पंजाब मंत्रिमंडल में विस्तार से पंजाब के कुछ कांग्रेसी विधायकों ने इसके बारे में बोलने और पार्टी पदों से इस्तीफे देने की ‘हिम्मत’ तो दिखाई है, परन्तु ज्यादा प्रभाव यही बन रहा है कि यह चाय की प्याली में आया तूफान है, जो समय पा कर थम जायेगा। समझा जाता है कि इनमें से ज्यादातर विधायक तो विरोध के सुर इसलिए दिखा रहे हैं ताकि वह अब जबकि मंत्रिमंडल की मुख्य गाड़ी में चढ़ने से रह गए हैं, तो कम से कम चेयरमैन पद या कुछ अन्य सुविधाएं तो अपनी लिए या अपने निकटतम लोगों के लिए ले सकें।  
परन्तु इसके साथ ही एक और गम्भीर चर्चा भी सुनाई दे रही है कि मुख्यमंत्री की अपनी मर्ज़ी  चलाने की नीति से कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी परेशान हैं और वह अब इस स्थिति को बदलने के लिए पंजाब के कांग्रेसी विधायकों के साथ सीधा सम्पर्क बढ़ायेंगे, जिससे कि समय पाकर कांग्रेस विधायक दल में हाईकमान की स्थिति मज़बूत हो सके, जिसका तत्काल तौर पर चाहे कोई असर दिखाई नहीं देगा परन्तु समय पाकर यह स्थिति कैप्टन के लिए नई मुश्किलें पैदा करने का आधार बन जायेगी। 
सबसे तीखा विरोध
मंत्रिमंडल में विस्तार का सबसे तीखा विरोध पिछड़े वर्गों के मंत्री बनने के इच्छुक विधायकों द्वारा किया जा रहा है। जबकि दलित लॉबी भी उनका साथ दे रही है। वास्तव में यह लगभग सुनिश्चित समझा जा रहा था कि पिछड़े वर्गों में से संगत सिंह गिलजियां या सुरजीत सिंह धीमान में से एक मंत्री अवश्य बनेगा। हालांकि धीमान इसी समय कैप्टन अमरेन्द्र सिंह के बहुत निकट थे परन्तु अब संगत सिंह गिलजियां के पक्ष में प्रवासी पंजाबियों द्वारा मज़बूत दबाव बनाया गया था। पता चला है कि गिलजियां के समर्थकों द्वारा अब भी उनका केस बहुत ज़ोरदार ढंग से राहुल गांधी के दरबार में उठाया जा रहा है। बताया जा रहा है कि वह आशावादी हैं कि पंजाब में पिछड़े वर्गों के बड़े मत-प्रतिशत के आधार पर वह अभी भी मंत्रिमंडल में कोई फेरबदल करवा सकते हैं परन्तु यह तो समय ही बतायेगा कि वह किस सीमा तक सफल होते हैं। दूसरा सबसे तीखा विरोध स्वर्गीय पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह के पौत्र गुरकीरत सिंह तथा साथी विधायकों द्वारा किया जा रहा है। बताया गया है कि गुरकीरत सिंह तथा पांच-छ: अन्य विधायकों का एक गुट है, जो एक दबाव गुट के तौर पर कार्य कर रहा है।  गुरकीरत सिंह की दलील है कि उनके परिवार की तीसरी पीढ़ी विधायक है और 1981 के बाद यह पहली सरकार है जिसमें उनके परिवार का कोई सदस्य शामिल नहीं किया गया। परन्तु समझा जाता है कि गुरकीरत को मंत्री बनने से रोकने के लिए ही उनके खिलाफ पुराना केस खोलने की कोशिश भी की गई थी, परन्तु उनका दावा उस समय कमज़ोर हो गया जब उनके चचेरे भाई लुधियाना से लोकसभा सदस्य रवनीत सिंह बिट्टू ने भारत भूषण आशु को मंत्री बनाने के लिए सारा जोर लगा दिया। वैसे आशु के मंत्री बनने से बिट्टू का राजनीतिक कद ऊंचा हुआ है, परन्तु मौजूदा राजनीतिक परिस्थितियों में वह दो मंत्री बनवा सकते, यह सम्भव नहीं था। इस मंत्रिमंडल विस्तार में राणा गुरमीत सिंह सोढी की भागीदारी कैप्टन के साथ उनकी निकटता, फिरोज़पुर क्षेत्र के ज़िलों को प्रतिनिधित्व देने और शहरी खत्री अरोड़ा बिरादरी को मंत्रिमंडल में शामिल करने की चाहत का परिणाम है। श्री सोढी लम्बे समय से खेलों से भी जुड़े हुए हैं। वैसे विधायक परगट सिंह ने चाहे इस मंत्रिमंडल में शामिल न किये जाने का कहीं विरोध नहीं किया परन्तु उनको मंत्रिमंडल में शामिल न किया जाना नवजोत सिंह सिद्ध  के लिए निजी धक्का अवश्य माना जा रहा है। हालांकि ऐसी चर्चाएं भी गर्म रही हैं कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी भी परगट सिंह को कोई बड़ी ज़िम्मेदारी सौंपना चाहते हैं। 
शिरोमणि कमेटी अध्यक्ष का बयान
हालांकि शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ही नहीं, अपितु श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार भी बुरी तरह सवालों के घेरे में आए हुए हैं। बेअदबी की घटनाएं, नानकशाह फकीर फिल्म का मामला, सिख साइकिलिस्ट के मामलों में तथा अन्य मामलों में अदालतों की टिप्पिणयों के अलावा कई मामलों पर शिरोमणि कमेटी तथा जत्थेदारों के बदलते स्टैंड और यू-टर्न, अकाली नेताओं द्वारा शिरोमणि कमेटी के साधनों का दुरुपयोग तथा कई अन्य मामलों ने शिरोमणि कमेटी की स्थिति बहुत खराब की हुई है, परन्तु फिर भी शिरोमणि कमेटी के अध्यक्ष भाई गोबिंद सिंह लौंगोवाल द्वारा शिरोमणि कमेटी के शिक्षा संस्थानों के कर्मचारियों का गुरसिखी में परिपक्व होना आवश्यक करार देने वाला बयान सराहनीय है।  परन्तु देखने वाली बात यह है कि क्या यह बात सिर्फ बयान देने और ईनाम देने तक ही सीमित रहती है या व्यवहारिक तौर पर इसके बारे में कुछ किया भी जाता है? पहली ज़रूरत तो यह है कि शिरोमणि कमेटी द्वारा सिर्फ शिक्षा संस्थानों की ही नहीं अपितु शिरोमणि कमेटी के सभी ‘सिख’ कर्मचारियों और शिरोमणि कमेटी सदस्यों के परिवारों की भी जांच करवाई जाए कि उनमें से कितने पतित और कितने कलीन शेवन हैं। हमें पता है कि ऐसी ‘हिम्मत’ करना शिरोमणि कमेटी अध्यक्ष के लिए कोई आसान सी बात नहीं होगी, परन्तु यदि ऐसा किया जाता है तो स्थिति हैरानीजनक सीमा तक साफ हो जायेगी कि सिखी में गिरावट कितनी और क्यों आ रही है? जब आन्तरिक बीमारी के फैल चुके प्रभाव का पूरा अनुमान होगा तब ही इसका इलाज हो सकेगा, नहीं तो बयान सिर्फ कागज़ी बनकर रह जायेगा। 
‘आप’ में फूट?
आम आदमी पार्टी की पंजाब में फूट की ज्यादा चर्चा नहीं हो रही परन्तु जिस तरह की ‘सरगोशियां’ सुनाई दे रही हैं, उनके अनुसार ‘आप’ पंजाब के मौजूदा कार्यकारी अध्यक्ष डा. बलवीर सिंह तथा ‘आप’ के विधायक दल के प्रमुख सुखपाल सिंह खैहरा में कोई ज्यादा तालमेल नहीं है। यह भी चर्चा बहुत गर्म है कि मौजूदा परिस्थितियों के मद्देनज़र खैहरा और बलवीर सिंह के बीच शाहकोट विधानसभा उप-चुनाव लड़ने के मामले में भी वैचारिक तौर पर ज़मीन आसमान का अंतर है। यह भी हैरानी की बात है कि पार्टी के विरोधी गुट के नेता सरकार के मंत्रियों के खिलाफ जो स्टैंड लेते हैं, पार्टी स्तर पर उसके लिए कुछ नहीं किया जाता। ऐसा भगवंत मान के समय भी था और अब भी है। इस तरह प्रतीत होता है कि आम आदमी पार्टी की फूट की चिंगारी चाहे आज तिनकों में दबी हुई सुलग रही है, परन्तु यदि पार्टी और विधायक दल में इसी तरह असहयोग की स्थिति जारी रही तो चिंगारी किसी समय आग भी बन सकती है। वैसे आम आदमी पार्टी में इस समय सबसे बड़ी दुविधा पार्टी हाईकमान द्वारा पंजाब के मामलों पर कोई स्पष्ट स्टैंड लेने से कन्नी-काटने के कारण भी बनी हुई नज़र आती है। 

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