भारत में और भी हैं मोम से बनीं प्रतिमाओं के संग्रहालय

सुनील कण्डलूर के अतिरिक्त श्रीजी भास्करन भी एक उत्साही सिक्थ प्रतिमा कलाकार हैं। उन्होंने वर्ष 2002 में मोम द्वारा निर्मित अपनी पहली मूर्ति तैयार की थी और वो मूर्ति थी ए.पी.जे. अब्दुल कलाम साहिब की। वो मोम से निर्मित कलाकृतियों के चार संग्राहलय अब तक स्थापित कर चुके हैं जो बहुत महत्त्वपूर्ण है। श्रीजी भास्करन ने सबसे पहले तमिलनाडु के ऊटी नामक सुरम्य पर्वतीय स्थल पर मार्च 2007 में वेक्स वर्ल्ड म्यूजियम स्थापित किया। इसमें चालीस से अधिक सैलीब्रिटीज व स्वतंत्रता सेनानियों की मोम की मूर्तियां प्रदर्शित हैं। श्रीजी भास्करन ने जुलाई 2008 में पुराने गोवा में धार्मिक महत्त्व की मूर्तियों का एक संग्रहालय भी प्रारम्भ किया था। इसके बाद अक्तूबर 2010 में श्रीजी भास्करन ने कर्नाटक के मैसूर में मेलडी वर्ल्ड वेक्स म्यूज़ियम की स्थापना की। जैसा कि नाम से ही विदित होता है मेलाडी वर्ल्ड वेक्स म्यूजियम में 470 संगीत वाद्यों व संगीतज्ञों की मोम से निर्मित प्रतिमाएं रखी गई है। वर्ष 2012 में श्रीजी भास्करन ने कोडईकनाल नामक स्थान पर मोम से बनी चालीस धार्मिक प्रतिमाओं का संग्रहालय भी बनाया। श्रीजी भास्करन भारतीय कला और संस्कृति के संरक्षण के लिए विशेष रूप से प्रयासरत रहे और उसी के अंतर्गत उन्होंने कनार्टक के मैसूर में ही वर्ष 2016 में मैसूर नृत्य संग्रहालय की स्थापना की। भारतीय शास्त्रीय व लोक नृत्यों पर आधारित मोम की चौंसठ प्रतिमाएं यहां पर देखी जा सकती हैं। हर लिहाज़ से सिक्थ प्रतिमाओं के विकास में श्रीजी भास्करन का योगदान बहुत ही महत्त्वपूर्ण कहा जा सकता है। यह योगदान इसलिए भी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि सुनील कण्डलूर की तरह ही श्रीजी भास्करन ने भी व्यक्तिगत स्तर ही ये सब कुछ सम्भव किया। सुशांत रे बंगाल के ऐसे सिक्थ प्रतिमा कलाकार हैं आसनसोल में जिनका मोम की प्रतिमाओं का अपना एक निजी संग्रहालय है। इन्हीं सुशांत रे के प्रयासों से ही पश्चिमी बंगाल के कोलकाता में मदर्स वेक्स म्यूजियम की स्थापना सम्भव हो पाई है। मदर टेरेसा के नाम पर बने इस मोम की प्रतिमाओं के संग्रहालय की स्थापना कोलकाता के पास न्यू टाऊन स्थित फाइनांस सैंटर बिल्डिंग के छठे मामले पर की गई है। 10 नवम्बर, 2014 को प्रारम्भ हुए 5000 वर्गफुट में फैले इस संग्राहलय में प्रारम्भ में रविन्द्रनाथ टैगोर, किशोर कुमार, लता मंगेश्कर, मिथुन चक्रवर्ती आदि प्रसिद्ध कलाकारों की डेढ़ दर्जन के लगभग प्रतिमाएं स्थापित की गई हैं और इसका विस्तार जारी है। 12 मई, 2016 को शिमला के विलो बैक्स एस्टेट में भी जानीज़ वेक्स म्यूजियम नामक एक संग्रहालय का उद्घाटन किया गया। इसमें भी डेढ़ दर्जन के लगभग मोम की प्रतिमाएं स्थापित की गई हैं। लेकिन इन मूर्तियों को लंदन से बनवाकर मंगवाया गया है। बाहर से मोम की मूर्तियां बनवाकर संग्राहलय स्थापित करने का तो कोई औचित्य नहीं दिखलाई पड़ता। शिमला के अतिरिक्त मसूरी में भी देवभूमि वेक्स म्यूजियम नाम से एक संग्रहालय है। पिछले दिनों राजस्थान के उदयपुर में भी मोम से बनी प्रतिमाओं के एक संग्रहालय का प्रारम्भ हुआ है। जयपुर में भी सिक्थ प्रतिमा संग्रहालय बनने का समाचार सुनने में आया है। इन संग्रहालयों की विशेषता ये है कि अधिकांश संग्रहालयों में अन्य महत्त्वपूर्ण लोगों के मुकाबले में फिल्मी दुनिया के लोगों को बहुत ज्यादा स्थान दिया गया है। देखना यह है कि तेजी से खुलते जा रहे मोम की प्रतिमाओं के संग्रहालय तुसाद संग्रहालय का कहां तक मुकाबला कर पाते हैं। कला का काम चाहे कम मात्रा में किया जाए लेकिन उच्च कोटि का काम होना चाहिए।