राजनीतिक शुचिता के बिना कैसे बनेगा भ्रष्टाचार -मुक्त देश ?

एक गैर-लाभकारी संगठन (एन.जी.ओ.) सैंटर फॉर मीडिया स्टडीज द्वारा किए गए सर्वेक्षण इंडिया करप्शन स्टडी में 13 राज्यों आंध्र प्रदेश, बिहार, दिल्ली, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, पंजाब, राजस्थान, तमिलनाडु, तेलंगाना व पश्चिम बंगाल के 200 से ज्यादा ग्रामीण एवं 2000 से ज्यादा शहरी क्षेत्र के लोगों के आधार पर जो सर्वेक्षण किया गया है उसमें ये तथ्य सामने आए हैं कि पिछले एक साल में देश भर में भ्रष्टाचार बढ़ा है। इन 13 राज्यों के 75 प्रतिशत परिवारों का मानना है कि पिछले एक साल के दौरान भ्रष्टाचार या बढ़ा है अथवा पुराने स्तर पर टिका रहा है। वहीं 27 प्रतिशत परिवारों ने पिछले एक साल के दौरान घूस देने की बात स्वीकार की है। भ्रष्टाचार पर सर्वेक्षण करने वाले संगठन ने बताया है कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली, बिजली, चिकित्सा, न्यायिक सेवाएं, भूमि, आवास, परिवहन, महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना आदि में घूस देनी पड़ती है। इन 13 राज्यों के लोगों ने इन सेवाओं के लिए पिछले एक वर्ष में 2500 से लेकर 2800 करोड़ रुपये तक की घूस दी। जांच में यह भी कहा गया कि लोगों ने पहचान पत्र बनवाने के लिए तथा साठ प्रतिशत लोगों ने मतदाता पहचान-पत्र बनवाने के लिए भी रिश्वत दी। लेकिन इस रिपोर्ट में बहुत से ऐसे क्षेत्र छोड़ दिए गए जहां रिश्वत के आंकड़े इकट्ठे किए जाएं तो करोड़ों में नहीं, अरबों में बनते हैं। कौन नहीं जानता कि पिछले दिनों जो बैंक घोटाले हुए और घोटालेबाज बड़े आराम के साथ अथवा सरकार और सरकारियों के सहयोग व संरक्षण से विदेश भाग गए उसमें तो कितनी राशि देश की लूटी गई, उसका सही आकलन तो अभी तक नहीं हो सका। धरती की छाती चीर कर और नदियों को असंतुलित करते हुए खनन का कितना काला धंधा इस देश में चल रहा है, उसके सामने तो यह सी.एम.सी. द्वारा संकलित आंकड़े बहुत छोटे पड़ जाते हैं। कर्नाटक के चुनाव में जो कुछ देखने-सुनने को मिला उससे बड़ा राजनीतिक भ्रष्टाचार क्या हो सकता है। सच यह है कि जब तक देश के जन प्रतिनिधि, राजनीतिक पार्टियों के निर्वाचित और संगठन के नेता ईमानदार नहीं हो जाते, लोकतंत्र नोटतंत्र से मुक्त नहीं हो जाता, तब तक भ्रष्टाचार बढ़ने में कोई आश्चर्य नहीं। यह घटने लगे तो अवश्य ही सोचना पड़ेगा कि यह करिश्मा कैसे हो गया। मैं नहीं जानती कि जो विधायक कर्नाटक में किसी भी पार्टी से चुने गए वे किसी भ्रष्ट काम में संलिप्त हैं या नहीं, पर जो प्रत्यक्ष घटनाएं प्रश्न पैदा करती हैं उससे तो संशय ही नहीं, अपितु विश्वास बन जाता है कि चरित्र का हृस हो रहा है। भाजपा द्वारा कांग्रेस या जे.डी.एस. के प्रत्याशियों को जो संदेश दिया गया, सोशल मीडिया में वायरल हुआ, अगर यह सच है तो भ्रष्टाचार के बढ़ने की तो संभावनाएं दिखाई देती हैं, कम होने की नहीं। दूसरी ओर कांग्रेस और जे.डी.एस. वाले अपने विधायकों को कभी पांच तारा होटलों में बंद करें, कभी बसों में बंद करके हैदराबाद ले जाएं या किसी रिसॉर्ट में बंदी बनाकर रखें उससे यही लगता है कि पार्टी नेताओं को राजनीतिक चरित्र पर विश्वास नहीं। यह ठीक है कि राजनेता इसे हॉर्स ट्रेडिंग का नाम देते हैं। न चुनाव आयोग ध्यान देता है, न न्यायपालिका इसका स्वयमेव संज्ञान लेती है, पर सत्ता के लालच में सभी सिद्धांतों, आदर्शों और भाषणी उपदेशों को एक तरफ रखते हुए चुनावों के निकट जिस तरह दल बदलू अपने-अपने स्वार्थ को देखते हुए सत्तापति बनने के लिए दल बदलते हैं, एक दिन पूर्व जिस विरोधी पार्टी को पानी पी-पी कर कोसते हैं, अगले ही दिन उनके दरवाजे पर बैठकर चापलूसी करते और चरण चापते हैं उससे बड़ा राजनीतिक बेईमानी का प्रत्यक्ष उदाहरण और देश में कहां मिलेगा? यह बेईमान हिम्मती इतने हैं कि चाहे सारा मीडिया, सारे देश के लोग उनको नकारते रहें, तिरस्कृत करते रहें, पर वे मुस्कुराते हुए नए राजनीतिक दल में मंत्री भी बनते हैं, शपथ भी लेते हैं और उसी पार्टी से आजीवन वफादारी निभाने की भारी-भरकम घोषणाएं भी कर देते हैं। मुझे तो ऐसा लगता है कि भ्रष्टाचार का आकलन करने के लिए किसी विशेष सर्वेक्षण की आवश्यकता ही नहीं। सीधा प्रश्न है कि परीक्षा से पूर्व प्रश्न-पत्र क्यों विद्यार्थियों के हाथों में और कैसे पहुंच जाते हैं। कौन है जो परीक्षा पूर्व प्रश्न-पत्र भी देते हैं और फिर नकल का धंधा भी जोरों से चलाते हैं। इसको किस भ्रष्टाचार का नाम देंगे और क्या यह संभव है कि इसे किसी प्रतिशत में बांधा जा सके। गर्मियों के दिन हैं। धान की बिजाई होनी है। खेतों को पानी चाहिए। पानी के लिए बिजली का रहना जरूरी है। कभी उस किसान से पूछिए जहां भीषण गर्मी या अधिक बिजली वितरण के बोझ के कारण ट्रांसफार्मर जल गया। वह ट्रांसफार्मर सही करवाने के लिए, समय पर खेतों को तर-ब-तर करने के लिए जो पानी चाहिए वह चांदी की चाबी लगाए बिना अथवा अधिकारी को चांदी का जूता पहनाए बिना मिलता ही कहां है। केवल बिजली विभाग ही अगर भ्रष्टाचार मुक्त हो जाए तो सभी किसान 50 प्रतिशत तो सुखी हो सकते हैं। पटवारखाने में क्या होता है। रजिस्ट्री करवाने गए लोगों के साथ क्या बीतती है? एक और जनता का खून निचोड़ने वाला सरकारी बेईमानी का उदाहरण। जो लोग ट्रक चलाते हैं, बसों में यात्रियों को देश में पर्यटन के लिए ले जाते हैं या अपने-अपने नगर में ही कोई दोपहिया, चौपहिया वाहन चलाते हैं उनसे पूछिए ट्रैफिक पुलिस का कैसा सहयोग मिलता है। किसी दूसरे राज्य से आई गाड़ी विशेषकर ट्रक और टैक्सी को देखकर तो इनके मुंह से लार टपकने लगती है। वाहन चालक की मजबूरी यह कि वह केरल, कर्नाटक, गुजरात से यहां तारीखें भुगतने आ नहीं सकता और इसी मजबूरी में उसकी जेब से धन निकलकर उनके हाथों में पहुंच जाता है जिनका काम सुरक्षित यातायात की व्यवस्था करना है। यह ठीक है कि सभी लोग भ्रष्ट नहीं, सभी बेईमानी के बादाम खाने के आदी नहीं, यद्यपि वे आटे में नमक की तरह होते हैं पर यहां उनके नमक का प्रभाव दिखाई नहीं देता। प्रश्न यह है कि क्या कोई जन नेता या शासक भ्रष्टाचार को नकेल डालना चाहता है? अगर हां, तो शिक्षा क्षेत्र की सारी रिश्वत खत्म करके पारदर्शी व्यवस्था बना दें। देश के नागरिक ईमानदार व्यवस्था से शिक्षा पाएंगे, आदर्श युक्त व्यक्तित्व उनका नेतृत्व करेंगे और धनपतियों का धन सत्ता खरीदने के योग्य नहीं रहेगा तभी देश सदाचारी हो सकता है अन्यथा भ्रष्टाचार का अंत नहीं।

(पूर्व कैबिनेट मंत्री, पंजाब)