ज्ञान की पुंज पुस्तकें

यदि आप अपने किसी मित्र, विद्यार्थी अथवा मिलने वाले से यह बात पूछें कि सबसे महत्वपूर्ण अविष्कार कौन सा है, तो वह शायद यही उत्तर देगा, अन्तर्दहन इंजन, कुछ बीमारियों को पूरी तरह खत्म करने वाली दवाई, हवाई जहाज, टेलीविज़न, कम्प्यूटर इत्यादि। परन्तु वे यह भूल जाते हैं कि इन सब महत्वपूर्ण वस्तुओं का अविष्कार सबसे महत्वपूर्ण वस्तु की खोज के बिना नामुमकिन था और महत्वपूर्ण खोज थी पुस्तकें। क्या आप अन्दाज़ा लगा सकते हैं कि छपे हुए शब्दों अथवा पुस्तक का क्या महत्व है? कहानी, कविता अथवा नाटक के रूप में वे आप का केवल मनोरंजन ही नहीं करती, बल्कि शिक्षा के साथ आपको नई प्रेरणा भी देती हैं। इतना ही नहीं, इनसे आप को अनेक प्रकार के कार्यों के बारे में भी ज्ञान प्राप्त होता है। संसार का ऐसा कौन सा ज्ञान है जो आपको किताबों से न मिले। पुस्तकें आदमी का सबसे भरोसेमंद अर्थात् अच्छा साथी भी हैं। जब आप चारों तरफ से निराश हो जाते हैं तो आपको सबसे अच्छी सांत्वना देने का सबसे अच्छी सहायक पुस्तक ही होती हैं। यूं तो पुस्तकों की शुरुआत का इतिहास बहुत पुराना है परन्तु साढ़े चार हज़ार वर्ष पूर्व से पुस्तकों का निर्माण का इतिहास मिलता है। पहले पहल ये मिस्र में तैयार की गई। शुरू में पुस्तकें वृक्षों की छाल और भोज पत्रत्रों पर लिखी लिखी गई। भारत में आज भी ऐसी अनेक हस्तलिखित किताबें भोज पत्रों पर लिखी हुई संग्रहालयों में महफूज हैं। वस्तुत: लकड़ी की लुगदी से कागज़ निर्माण का ज्ञान हुआ। इन्हीं पर पुस्तकें छप कर तैयार होती हैं। छपाई का विकास इससे पहले ही हो चुका था। वस्तुत: पुस्तकों का प्रकाशन 17वीं शताब्दी में काफी जोर से शुरू हुआ। 18वीं सदी में कई तरह की किताबें प्रकाशित होने लगी, परन्तु बच्चों की किताबों की ओर 19वीं सदी में खास ध्यान दिया गया। बच्चों के लिए ‘राबिन्सन कूसो, ‘गुलीवर्स ट्रेवल्स’ आदि अनेक पुस्तकें प्रकाशित हुईं। रेडियो और टेलीविज़न के विकास से पहले उपन्यासों का काफी जोर था। अब मनोरंजन ज्ञान और शिक्षण के अनेक साधनों का विकास हो चुका है। इसलिए प्रकाशन पर इसका प्रभाव पड़ने की सम्भावना थी। परन्तु दिनों-दिन शिक्षा के प्रसार के कारण ऐसा लगता है  कि यह प्रभाव नहीं पड़ेगा। पुस्तकालयों द्वारा लोगों को सभी विषयों पर पुस्तकें पढ़ने का सुअवसर प्राप्त होता है। पुस्तकों के साथ-साथ अन्य पाठ्य सामग्री यथा समाचार-पत्रों तथा पत्रिकाओं आदि का भी दिनों-दिन विकास हो रहा है।

—राम प्रकाश शर्मा
अर्जुन नगर, लोडोवाली रोड, जालन्धर