बुद्धिजीवियों की आयु और योगदान पर एक नज़र


मेरे सामने अमरजीत सिंह हेयर की नई पुस्तक मेरे पसंदीदा लेखक की पड़ी है। पंजाबी की इस पुस्तक में पंजाबी के लेखक पांच हैं - बुल्ले शाह, वारिस, बटालवी, पातर तथा कुलवंत सिंह विर्क। उर्दू के आठ -इकबाल, फैज़ और साहिर सहित सात कवि और अ़फसानानवीस मंटो। दो रूसी नावलकार टालस्टाय तथा दोस्तोवसकी। दो अंग्रेज़ी लेखक बरटरंड रुस्सल (दार्शनिक) और डी.एच. लारैंस (उपन्यासकार)। अमरजीत सिंह हेयर कृषि यूनिवर्सिटी लुधियाना में मेरे कुलीग और मित्र रहे हैं। उनकी नई पुस्तक से पता चला कि वह कितना पढ़ते हैं। दार्शनिक रुस्सल के बारे में लिखा है कि : जिसने उनको नहीं पढ़ा वह अनपढ़ है। मैं स्वयं अनपढ़ श्रेणी में आता हूं। फिर भी पाठकों को बताना चाहता हूं कि अमरजीत का चयन विश्वसनीय है और लेखनशैली संक्षिप्त। लगभग 100 पृष्ठों में इतने लेखकों की जान-पहचान मैंने और कहीं नहीं पढ़ी।
इस पुस्तक में कुलवंत सिंह विर्क लारैंस का समकालीन है। उनकी रचना ‘खबल’ बारे अमरजीत उतनी ही श्रद्धा के साथ लिखते हैं जितना लारैंस की रचना ‘लेडी चैटरलेज़ लवर’ के बारे। वैसे वह मंटो की अ़फसानिगारी के इतने प्रशंसक हैं कि अमृतसर में जो देश विभाजन की यादगार बनाई गई है, उसमें मंटो पर पूरा सैक्शन मांगते हैं। इसलिए कि वह अपनी उम्र के पहले 23 वर्ष अमृतसर में रहे।
अमरजीत शायरी की श्रेष्ठता को कितना पहचानते हैं इसका पता मनपसंद कवियों के चुने हुए शे’अरों से चलता है।
मुहब्बत में नहीं है ़फर्क
जीने और मरने का 
उसी को देख कर जीते हैं
जिस क़ाफर पे दम निकले
-मिज़र्ा ़गालिब
खुदी को कर बुलंद इतना
कि हर तकदीर से पहले
खुदा बंदे से खुद पूछे
बता तेरी रज़ा क्या है।
-अलामा इकबाल
कई बार इसका दामन
भर दीया हुसने दो आलम से
मगर दिल है कि इसकी
खाना वीरानी नहीं जाती।
-फैज़ अहमद फैज़
तआऱफ रोग हो जाए तो उसको भूलना बेहतर
तयल्लक बोझ बन जाये तो उसको तोड़ना अच्छा
वोह अफसाना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन
उसे एक खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्छा।
-साहिर लुधियानवी
बहुत मैंने सुनी है
आपकी तकरीर मौलाना
मगर बदली नहीं अब तक
मेरी तकवीर मौलाना।
-हबीब जालिब
जोबन रुत्ते जो वी मरदा
फुल्ल बने या तारा
जोबन रुत्ते आशिक मरदे
जां कोई करमां वाला
-शिव कुमार
अमरजीत हेयर की पुस्तक पढ़ कर यह भी पता चलता है कि जोबन रुत्ते (37) मरने वाले अकेले शिव कुमार ही नहीं थे परवीन शाकिर (42) मंटो (43) और डी.एच. लारैंस (45) भी थे। सबसे अधिक उम्र भोगने वाले बरटरंड रुस्सल (98) थे, परन्तु टोलस्टाये (82) और बाबा बुल्ले शाह (78) भी ज्यादा पीछे नहीं रहे।
मैं अमरजीत की पसंद बुल्ले शाह के शब्दों से ़खत्म करना चाहूंगा।
धर्मसाला धड़वाई वसदे
ठाकर दुआरे ठग्ग
विच मसीते रहिण कसाई
आसक रहिण अलग
अगर अमरजीत सिंह हेयर ने अपनी पसंद के बुद्धिजीवियों का मूल्य पाया है तो पंजाब कला परिषद्, चंडीगढ़ के चेयरमैन और मेरे मित्र सुरजीत पातर ने जसवंत सिंह कंवल के 100वें जन्मदिन पर 27 जून, 2018 को ढुडीके जाकर बधाई दी जहां साहित्य जगत की 250 प्रसिद्ध शख्सियतों ने भारत सरकार द्वारा कंवल के लिए पद्म विभूषण अवार्ड की मांग की। इस अवसर पर यह भी स्मरण किया गया कि उम्र और गतिविधियों के पक्ष से कंवल खुशवंत सिंह और भाई जोध सिंह को मात दे गए हैं। भाई साहिब 100 वर्ष से 5 महीने 27 दिन कम  जीये। मृत्यु के एक माह पूर्व संत सिंह सेखों मुझे साथ लेकर उनकी रिहायश पर उनको मिलने गए तो ‘भाई साहिब पहचाना?’ का जो उत्तर सेखों को मिला वह मुझे कभी नहीं भूलेगा, ‘दाड़ी कम रंग कर आवाज़ तो नहीं बदल जाती।’ मैं ढुडीके नहीं जा सका। हो सका तो अगले वर्ष जाकर बड़े भाई को सेखों वाला प्रश्न करके प्रतिक्रिया का इंतज़ार करूंगा। कंवल बाबा ज़िंदाबाद। उनके योगदान का जवाब नहीं।