आधुनिक दौड़ में लुप्त हो रहा संधारा देने का रिवाज़

फुल्लांवाल, 12 अगस्त (मनजीत सिंह दुगरी): पुरातन विरसों में विवाहित बेटियों को संधारा देने की रीत सदियों पुरानी है। इस सम्बन्धित वैदिक काल और महाभारत में भी जिक्र मिलता है। पंजाब में हर दिन कोई न कोई त्यौहार होता है। आज के समय में नौजवान पीढ़ी मशीनी दौड़ में अपने गौरवमई विरसे से दूर होती जा रही है। अब यह रिवाज केवल प्रदेश तक सिमट गए हैं। यह शब्द शहीद भगत सिंह नगर की रहने वाली गुरमीत कौर ने तीज का संधारा देने जाते हुए बातचीत करते कहा। उन्होंने बताया कि आज कोई विरला ही जो नानी के सिर पर पीपा ऊठाई आती का इंतजार करता होगा। परन्तु कभी किसी समय गाँव में घुसती नानी की धूम सारे गाँव में फैल जाती और घर-घर चर्चा होती। उन्होंने कहा कि मां-बाप द्वारा विवाहीत बेटियों को दिया जाने वाला संधारा केवल बिसकुट ही नहीं बल्कि इस में माँ-बाप का मोह प्यार और अपनत्व भी है। विवाहीत बेटियां अपने माँ-बाप का इन्तजार करती हैं। मशीनी युग में वह भी इस से दूर होती जा रही हैं। बिसकुट बनाने वाली भट्ठियों पर कभी मेले जैसी रौणकें होती थीं परन्तु अब इन भट्ठियों पर रौणक नहीं रही। भट्टी के बने देसी घी के बिसकुट बनाने के लिए ग्रहणियों को भट्ठियों पर घंटों इंतज़ार करना पड़ता था। रिश्तों के मोहत की तारों में भी ज़िंदगी की भाग-दौड़ ने रुकावट ला दी है। जल्दी की ज़िंदगी ने यह मोह प्यार और पुरातन सांझ छीन ली है।