हिमाचल में रिवाज़ बदलना आसान नहीं 

हिमाचल प्रदेश में हर पांच साल में सत्ता बदलने का रिवाज़ है और भाजपा इस रिवाज़ को बदलने के लिए जी-जान से भिड़ी हुई है। राज्य में उसकी मौजूदा सरकार के खिलाफ जबरदस्त एंटी-इन्कम्बैंसी है, जिसे कम करने के लिए भाजपा ने कई कवायदें की हैं। पहली बार ऐसा हुआ है कि उम्मीदवारों के नाम तय करने के लिए पार्टी में गुप्त वोटिंग कराई गई और पार्टी में बगावत रोकने के लिए दिग्गज नेता लगे हैं। 12 नवम्बर को होने वाले मतदान से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और पार्टी अध्यक्ष जे.पी. नड्डा की 50 जनसभाएं होनी हैं। दूसरी ओर वीरभद्र सिंह के निधन के बाद कांग्रेस के पास भी कोई बड़ा चेहरा नहीं हैं, फिर भी मुकाबला कांटे का है। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि जयराम ठाकुर की सरकार के खिलाफ  जनता में ही नहीं बल्कि पार्टी कार्यकर्ताओं में भी असंतोष है। उनकी सरकार का हाल इस एक तथ्य से ज़ाहिर होता है कि राज्य में पांच साल में छह मुख्य सचिव नियुक्त हुए। इसके अलावा पार्टी में असंतुष्टों की संख्या बहुत बढ़ गई है। टिकट बंटवारे के बाद मुख्यमंत्री के अपने ज़िले मंडी में बगावत हो गई है। धर्मशाला में भी कई नेताओं ने बागी होकर पर्चा दाखिल किया है। पार्टी ने एंटी-इन्कम्बैंसी कम करने के लिए कई जगह पार्टी विधायकों के टिकट काट कर उनके परिजनों को दे दिए। इससे भी पार्टी कार्यकर्ताओं में नाराज़गी बढ़ी है। 
गुजरात में यह क्या हो रहा है?
गुजरात में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं और उससे पहले सरकार ने एक हफ्ते के लिए राज्य के नागरिकों को ट्रैफिक अपराध करने की छूट दी। राज्य के गृह मंत्री ने ऐलान किया कि 21 से 27 अक्तूबर के बीच ट्रैफिक के नियमों का उल्लंघन करने वालों के चालान नहीं काटे जाएंगे। जब चालान नहीं बनेंगे तो ज़ाहिर है कि मुकद्दमा भी नहीं होगा। लाइसेंस और गाड़ी ज़ब्त करने तथा जेल भेजने का तो सवाल ही नहीं उठता है। सवाल है कि कोई भी सरकार नागरिकों को इस तरह से अपराध करने की छूट कैसे दे सकती है? ध्यान रहे, ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन सिर्फ  मोटर व्हीकल एक्ट के तहत ही नहीं, बल्कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत भी अपराध है। आईपीसी की धारा 279 के तहत गैर ज़िम्मेदार तरीके से या खतरनाक तरीके से गाड़ी चलाना अपराध है, जिसमें छह महीने तक की सज़ा का प्रावधान है। 
सुप्रीम कोर्ट के दो जजों जस्टिस इंदु मल्होत्रा और जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ ने अपने एक आदेश में कहा भी है कि ट्रैफिक नियमों के उल्लंघन का मामला आईपीसी के तहत भी चलाया जा सकता है। इसके बावजूद राज्य सरकार ने नागरिकों को एक हफ्ते तक अपराध करने की छूट दे दी। इस चलन के आधार पर तो सरकार भविष्य में बड़े अपराध करने की भी छूट देने लगेगी। किसी दिन यह घोषणा भी हो सकती है कि अमुक दिन चोरी करने पर किसी को नहीं पकड़ा जाएगा या अमुक दिन हत्या या दुष्कर्म करने पर कोई सज़ा नहीं होगी। 
गुजरात के साथ होंगे दिल्ली के चुनाव! 
केन्द्र सरकार ने दिल्ली में नगर निगम की सीटों के परिसीमन को मंजूरी दे दी है और जल्दी ही इसकी अधिसूचना जारी होगी। आम आदमी पार्टी को अंदेशा है कि गुजरात में होने वाले चुनाव की तारीखों के आसपास ही दिल्ली में भी चुनाव कराए जा सकते हैं। गुजरात विधानसभा के चुनाव 30 अक्तूबर के बाद कभी भी घोषित हो सकते हैं। खबर है कि भाजपा ने दिल्ली के अपने उन तमाम नेताओं को गुजरात और हिमाचल प्रदेश से दिल्ली लौट आने को कहा है, जो वहां प्रचार के लिए गए थे। भाजपा के जानकार सूत्रों का कहना है कि अगर अभी दिल्ली में नगर निगम के चुनाव हुए तो उससे पार्टी को तीन फायदे हैं। पहला यह कि आम आदमी पार्टी के सुप्रीमो और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल गुजरात छोड़ कर दिल्ली में ही उलझ जाएंगे। पंजाब के मुख्यमंत्री और दूसरे बड़े नेताओं का फोकस भी दिल्ली पर ही रहेगा। दूसरा फायदा यह होगा कि आम आदमी पार्टी अभी दिल्ली में चुनाव के लिए तैयार नहीं है, जबकि भाजपा की तैयारी हो गई है। इसलिए अचानक चुनाव की घोषणा से आप को तैयारी का वक्त नहीं मिलेगा। तीसरा फायदा यह हो सकता है कि गुजरात के चुनाव से जो हवा बन रही है, उसका लाभ दिल्ली मेें मिलेगा। भाजपा गुजरात और हिमाचल का चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर लड़ रही है और दिल्ली नगर निगम का चुनाव भी पार्टी मोदी के नाम पर ही लड़ेगी। 
पात्रा और लालपुरा का इस्तीफा होना चाहिए!
कोई व्यक्ति किसी संवैधानिक या सरकारी पद पर रहते हुए किसी राजनीतिक पार्टी के लिए आधिकारिक तौर पर कैसे काम कर सकता है? आम आदमी पार्टी ने भाजपा के कुछ नेताओं को लेकर यह मुद्दा उठाया है। असल में यह मुद्दा पहले भाजपा ने उठाया कि जास्मिन शाह दिल्ली डायलॉग एंड डिवेल्पमेंट कमीशन यानि डीडीसी के उपाध्यक्ष हैं और साथ ही आम आदमी पार्टी के लिए भी काम करते हैं। इसके जवाब में आम आदमी पार्टी ने संबित पात्रा और इकबाल सिंह लालपुरा का मुद्दा उठाया। ये दोनों नेता सरकारी पदों पर हैं और इसके बावजूद आधिकारिक रूप से भाजपा के लिए काम करते हैं। सवाल है कि क्या भाजपा इन दोनों को सरकारी पद या पार्टी का पद छोड़ने के लिए कहेगी? आम आदमी पार्टी की ओर से कहा गया है कि जास्मिन शाह पार्टी में किसी भी आधिकारिक पद पर नही हैं। सो, उनके इस्तीफे का सवाल ही नहीं उठता। दूसरी ओर संबित पात्रा भारतीय पर्यटन विकास निगम (आईटीडीसी) के चेयरमैन और भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता भी हैं। इसी तरह पूर्व आईपीएस अधिकारी इकबाल सिंह लालपुरा राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष हैं और पिछले दिनों उनको भाजपा के संसदीय बोर्ड का सदस्य बनाया गया। आईटीडीसी के चेयरमैन और अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष के पद पर राजनेताओं की नियुक्ति होती रही है लेकिन यह पद अराजनीतिक होता है। इन पदों पर रहते हुए कोई व्यक्ति राजनीतिक दल के लिए काम नहीं कर सकता।