बढ़ती तपिश के कारण तेज़ी से  पिघल रहे ग्लेशियर

जलवायु परिवर्तन के संकेत अब स्पष्ट दिखने लगे हैं। नए शोध बताते हैं कि अंटार्कटिका से हिमखंड तो टूट ही रहे हैं, वायुमंडल का तापमान बढ़ने के कारण बर्फ भी तेज़ी से पिघल रही है। जलवायु बदलाव का बड़ा संकेत संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) में भी देखने को मिला है। गत 75 वर्षों में वहां सबसे अधिक बारिश रिकॉर्ड की गई है। 24 घंटे में 10 इंच से ज्यादा हुई इस बारिश ने रेगिस्तान के बड़े भू-भाग को दरिया में बदल दिया।
उधर 1986 में अंटार्कटिका से टूट कर अलग हुआ हिमखंड जो स्थिर बना हुआ था, अब 37 साल बाद समुद्री सतह पर बहने लगा है। उपग्रह से लिए चित्रों से पता चला है कि करीब एक लाख करोड़ टन वज़नी यह हिमखंड अब तेज़ हवाओं और जल धाराओं के कारण अंटार्कटिका के प्रायद्वीप के उत्तरी सिरे की ओर तेज़ी से बढ़ रहा है। यह हिमखंड करीब 4000 वर्ग कि.मी. में फैला हुआ है। आकार में यह मुम्बई के क्षेत्रफल 603 वर्ग कि.मी. से लगभग छह गुना बड़ा है। इसकी ऊंचाई 400 मीटर है। इसे ए-23/ए नाम दिया गया है। यह जिस महानगर की सीमा से टकराएगा, वहां बहुत हानि पहुंचा सकता है।   
उत्तरी धु्रव अर्थात आर्कटिक पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव में आने के अध्ययन लगातार आ रहे हैं। ये अध्ययन विशाल आकार के हिमखंडों के पिघलने, टूटने, दरारें पड़ने, पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र के खिसकने, धु्रवीय भालुओं के मानव आबादियों में धुसने और सील मछलियों में कमी, ऐसे प्राकृतिक संकेत हैं, जो पृथ्वी के बढ़ते तापमान का आर्कटिक पर प्रभाव दिखाते हैं। पर्यावरण विज्ञानी इस बदलाव को समुद्री जीवों, जहाज़ो, पेंगुइन और छोटे द्वीपों एवं महानगरों में रहती बड़ी आबादी के लिए एक बड़े खतरे के रूप में देख रहे हैं। विषेश तौर से उत्तरी धु्रव की स्थिति की जानकारी देने के लिए सजग प्रहरी के रूप में अनेक उपग्रहों की तैनाती दुनिया के देशों ने की हुई है। अमरीका के ‘नैशनल स्नो एंड साइंस डाटा सेंटर’ के अध्ययन को सत्य मानें तो वर्ष 2014 में ही उत्तरी धु्रव के 32.90 लाख वर्ग कि.मी. क्षेत्र में बर्फ की परत पिघली है। यह क्षेत्रफल लगभग भारत की भूमि के बराबर है। इस संस्थान के अनुसार 1979 में उत्तरी धु्रव पर बर्फ जितनी कठोर थी, अब नहीं रही। इसके ठोस हिमतल में 40 प्रतिशत की कमी आई है। हिमतल में एक साल में इतनी बड़ी मात्रा में आई तरलता इस बात की द्योतक है कि भविष्य में इसके पिघलने की गति और तेज़ हो सकती है। 
क्षेत्रफल के हिसाब से आंकलन करें तो अंटार्कटिका पांचवां सबसे बड़ा महाद्वीप है। यह दक्षिणी गोलार्थ में करीब 20 प्रतिशत हिस्से को अपनी बर्फीली चादर से ढके हुए है। इसमें दक्षिणी धु्रव भी समाहित है। पृथ्वी के दो धु्रव माने जाते हैं। इन्हें उत्तरी और दक्षिणी धु्रवों के नामों से जाना जाता है। उत्तरी धु्रव का कुल क्षेत्रफल 2.1 करोड वर्ग कि.मी. है। इसमें से 1.30 करोड़ वर्ग कि.मी. क्षेत्र की सतह बर्फ  की मोटी परत से ढकी हुई है। बर्फ से आच्छादित होने के कारण यहां का औसत तापमान माइनस 10 डिग्री सेल्सियस है। जाड़ों में यह माइनस 68 डिग्री तक हो जाता है। बर्फ से ढके इसी क्षेत्र को आर्कटिक महासागर कहा जाता है। यह पांच महासागरों में से एक है, लेकिन सबसे छोटा समुद्र है। आर्कटिक का भू-क्षेत्र रूस के साइबेरिया के किनारों, आइसलैंड, ग्रीनलैंड, उत्तरी डेनमार्क, नार्वे, फिनलैंड, स्वीडन, अमरीका, अलास्का, कनाडा का अधिकांश उत्तरी महाद्वीपीय भाग और आर्कटिक टापुओं के समुदाय तथा अन्य अनेक द्वीपों तक फैला है। औद्योगिक विकास के लिए खनिज सम्पदा की लूट हेतु यहां व्यापारिक गतिविधियां तेज़ हुई हैं। तेल, प्राकृतिक गैस और कोयला के इस क्षेत्र में अकूत भंडार हैं। इस कारण यहां पारिस्थितिकि तंत्र गड़बड़ाने लगा है। नतीजतन यहां पाए जाने वाले जलीय व थलीय जीव जैसे धु्रवीय भालू, सील, बैल्गा व्हेल, नर व्हेल, नीली व्हेल और वेलर्स के लिए अस्तित्व बचाए रखने का संकट पैदा हो गया है। 
दुनिया की 90 प्रतिशत बर्फ  अंटार्कटिका में जमी हुई है। यहां की बर्फीली परतों में धरती को मिलने वाला सबसे ज्यादा मात्रा में पानी संग्रहित है। लेकिन अब बढ़ते तापमान और बढ़ती मानवीय गतिविधियों के चलते आर्कटिक और ग्रीनलैंड में बर्फ निरन्तर पिघल रही है। अध्ययन बताते हैं कि इस प्रायद्वीप में चारों ओर तैरने वाली बर्फ में 10 प्रतिशत की कमी आई है। अब एक विडम्बना यह भी देखने में आ रही है कि बर्फीली बारिश होने के बाद भी बर्फ  न्यूनतम मात्रा में जम रही है। अतएव 2022 की तुलना में 2023 में बर्फ  बहुत कम जमी है। 
जलवायु परिवर्तन के अनेक दुष्परिणाम देखने में आ रहे हैं। इनमें से एक उत्तरी व दक्षिणी धु्रव क्षेत्रों में पृथ्वी पर बढ़ते तापमान के कारण बर्फ का पिघलना भी है। अत्याधिक गर्मी अथवा सर्दी का पड़ना भी इसी के कारक माने जा रहे हैं। वैज्ञानिकों की यह चिंता तब और ज्यादा बढ़ गई जब अंटार्कटिका में तैर रहे फ्रांस से भी बड़े आकार के हिमनद (ग्लेशियर) टॉटेन के पिघलने की जानकारी अनुमानों से कहीं ज्यादा निकली। इससे समुद्र का जलस्तर बढ़ने की भी आशंका प्रकट की जा रही है। सेंट्रल वाशिंगटन वि.वि. के पॉल बिनबेरी द्वारा किए गए एक अध्ययन के मुताबिक पहले लगता था कि टॉटेन हिमखंड की बर्फ स्थिर है लेकिन जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के कारण इसकी स्थिरता में बदलाव आ रहा है और यह तेज़ी से पिघल रहा है। यह सबसे तेज़ गति से चलायमान हिमखंड है। गोया, इसके पिघलने के खतरे ज्यादा हैं, क्योंकि यह यदि अधिक तापमान वाले क्षेत्र में पहुंच गया तो और ज्यादा तेज़ी से पिघलेगा। 
यदि अंटार्कटिका की बर्फ इसी तरह से पिघलती रही तो दक्षिणी महासागर के चारों ओर समुद्री जल स्तर बढ़ेगा, इस कारण अन्य समुद्रों पर भी इसका प्रभाव पड़ सकता है। इन समुद्रों का जल स्तर बढ़ा तो पृथ्वी के उत्तरी गोलार्थ पर भी इसका असर दिखाई देगा। 
धरती पर उत्सर्जित होने वाले कार्बनडाइ ऑक्साइड की सबसे बड़ी मात्रा को सोखने का काम यही महासागर करता है। वर्ष भर में जितना कॉर्बन उत्सर्जित होता है, उसका लगभग 12 प्रतिशत यह सागर सोख लेता है। लेकिन ऐसा तभी संभव हो पाता हैए जब अंटार्कटिका की बर्फ बनी रहे। गोया, अब वह समय आ गया है कि धरती के बढ़ते तापमान को नियंत्रित करने के प्रयास युद्ध स्तर पर किये जाने चाहिएं।

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