हर मुद्दे पर राजनीति नहीं होनी चाहिए

राहुल गांधी ने अपनी अमरीका यात्रा के दौरान जो बयान दिए, उन पर भारत में जबरदस्त राजनीति हुई है। जहां उनके बयान काफी विवादास्पद हैं, वहीं दूसरी ओर इसके विरोध में दिए गए कुछ नेताओं के बयान भी विवादस्पद हैं। राहुल गांधी विपक्ष के नेता हैं, इसलिये सत्ताधारी भाजपा के नेता उनके बयानों पर नज़र रखते हैं और उन्हें राजनीति का मुद्दा भी बनाते हैं। ऐसा दोनों तरफ से होता है और इसमें कुछ गलत नहीं है। यह राजनीति का एक हिस्सा है, लेकिन हर मुद्दे पर राजनीति नहीं होनी चाहिए। आज देश में ऐसे सामाजिक, धार्मिक और आर्थिक मुद्दों पर भी राजनीति होने लगी है, जिस पर पहले राजनीतिक दल राजनीति करने से बचते थे। विदेश नीति पर राजनीति से हमेशा राजनीतिक दल बचते रहे हैं, लेकिन अब राजनीति का स्तर इतना गिर गया है कि सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ही विदेश नीति पर भी राजनीति करने लगे हैं। जहां सत्ता पक्ष विदेश नीति का राजनीतिक फायदा उठाना चाहता है, वहीं दूसरी तरफ विपक्ष उसे यह फायदा उठाने से रोकना चाहता है। इन दोनों की कोशिश से देश का नुकसान हो रहा है । 
वास्तव में सत्ता पक्ष को ऐसी कोशिश से बचना चाहिए क्योंकि अगर विदेश नीति बढ़िया है और देश को फायदा हो रहा है तो उसके बिना कहे ही उसका राजनीतिक लाभ मिलेगा। जहां तक विपक्ष की बात है, वह सरकार की नीतियों का विरोध करते-करते देश विरोध तक पहुंच जाता है। अगर विपक्ष के कारण देश का नुकसान होता है तो विपक्ष को ही नुकसान उठाना पड़ेगा और उसकी छवि देश विरोधी बनेगी। विपक्ष को तो ऐसी कोशिश करनी चाहिए कि अगर सरकार अच्छी नीतियां बना रही है तो उसे सहयोग करे। नकारात्मक राजनीति के दौर में ऐसा सोचना भी व्यर्थ है।
राहुल गांधी के अमरीका में दिए गए बयानों पर भाजपा राजनीति कर रही है तो इसमें कोई नई बात नहीं है लेकिन भाजपा अगर राजनीति न करे तो क्या यह मुद्दा खत्म हो जाता है। राहुल गांधी ने विदेशी धरती पर जो बयान दिए हैं, उनके बारे में कहा जा रहा है कि आज डिजिटल दुनिया में कहीं भी कुछ भी कहा जाए, वह सब जगह पहुंच जाता है, इसलिये राहुल समर्थक कहते हैं कि राहुल देश में बोले या विदेश में इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है। उनका यह तर्क सही है कि आज की दुनिया में कहीं भी कुछ बोला जाए तो वह कुछ ही मिनटों में पूरी दुनिया में फैल जाता है। यह सही है कि दुनिया के एक कोने में बोली गई बात बहुत जल्दी दूसरे कोने में चली जाती है, लेकिन मुख्य मुद्दा यह है कि किस व्यक्ति ने, क्या बोला है और कहां बोला है, यह बहुत महत्वपूर्ण है। राहुल गांधी देश की बड़ी व सबसे पुरानी पार्टी के सबसे बड़ नेता हैं, उनकी आवाज़ पार्टी की आवाज़ है। वह जो भी बोलते हैं, उसे दुनिया ध्यान से सुनती है, बेशक उस पर वह चर्चा करे या न करे। आज वह विपक्ष के नेता हैं और एक लोकतांत्रिक देश में विपक्ष के नेता का पद प्रधानमंत्री के बाद दूसरे नेता का पद माना जाता है। राहुल गांधी जब देश में बोलते हैं तो वह कांग्रेस के नेता के रूप में बोल रहे होते हैं, लेकिन जब वह विदेशी धरती पर चले जाते हैं तो वह भारत की तरफ  से बोल रहे होते हैं। भारत की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी का नेता विदेश में एक तरह से भारत का प्रतिनिधि समझा जाता है। जब राहुल गांधी विपक्ष के नेता नहीं थे, तब भी वह अनौपचारिक रूप से विपक्ष के ही नेता थे। कांग्रेस को यह बात समझनी होगी कि देश में राहुल बिना सोचे समझे जो बोलते हैं, वह देश तक तो फिर भी ठीक है, लेकिन विदेश में इस तरह से बोलना देश के लिए घातक साबित हो सकता है।।
राहुल अपनी ज़िम्मेदारियों को समझ नहीं रहे हैं या जानबूझकर ऐसा कर रहे हैं। वह जो बोलते हैं उसके लिए कोई तथ्य और तर्क नहीं रखते। उनकी आदत है कि वह कुछ भी बोलकर निकल जाते हैं । वह अपने दिए गए बयानों पर कभी स्पष्टीकरण नहीं देते। उनका यह रवैया विदेश में भी जारी रहता है। 
कुछ मुस्लिम देशों को अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर विपक्ष के मुस्लिम उत्पीड़न के शोर के कारण भारत को घेरने का मौका मिलता है। पाकिस्तान ने संयुत्च राष्ट्र में भारत के खिलाफ  भेजे गए अपने एक डोजियर में राहुल के बयानों का ज़िक्र किया था। इसलिए राहुल गांधी को अपने पद के अनुरूप सोच समझ कर बोलने की ज़रूरत है। अगर उनके बयानों से देश को नुकसान होता है तो उन्हें भी उसका राजनीतिक नुकसान उठाना पड़ सकता है। विदेशी धरती पर उन्हें बयान देते सयम विशेष ध्यान रखने की ज़रूरत है क्योंकि वह वहां देश के प्रतिनिधि होते हैं। (युवराज)