बिहार की राजनीति पर कमज़ोर हो रही नितीश की पकड़

बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार की साख उनके राजनीतिक जीवन में इतनी कम कभी नहीं हुई, जितनी हाल के महीनों में होती दिख रही है। मुख्यमंत्री होने के नाते लोग उनके पास आते हैं, उनके सामने झुकते हैं, लेकिन कुछ महीने पहले तक जो सम्मान उन्हें मिलता था, वह पूरी तरह से गायब हो गया है। लोगों को उन पर तरस आता प्रतीत होता है।  उनकी साख खत्म होने का मुख्य कारण राजनीति में उनका बार-बार पलटना है। राजनीतिक हलकों में यह आम धारणा है कि सत्ता में बने रहने के लिए वह किसी भी हद तक जा सकते हैं। नरेंद्र मोदी और अमित शाह जिस तरह से उन्हें दृष्टिविगत कर रहे हैं, वह इसका सुबूत है। 
तीसरी बार प्रधानमंत्री बनते समय नरेंद्र मोदी ने उनसे बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने और विशेष वित्तीय आर्थिक पैकेज देने की उनकी मांग को स्वीकार करने का वायदा किया था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। ललन सिंह को छोड़कर उनकी पार्टी के किसी अन्य सांसद को मंत्री पद नहीं दिया गया। तकनीकी तौर पर नितीश का दावा है कि ललन को उनकी पहल पर मंत्री बनाया गया, लेकिन सच्चाई यह है कि यह जेडी(यू) में समानांतर सत्ता केंद्र बनाने की अमित शाह की साज़िश का हिस्सा था, जिसके तहत ललन को मंत्रिपरिषद में शामिल किया गया। एक महीने पहले नितीश एक बार फिर नयी छलांग लगाने के करीब पहुंच रहे थे, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। जेडी(यू) के 12 में से बड़ी संख्या में सांसदों ने मोदी-शाह को अपना समर्थन देने का वायदा किया। यह नितीश के लिए बड़ा झटका था। उन्हें पीछे हटना पड़ा। बेशक मोदी से समर्थन वापिस लेने से नितीश के लिए भी समस्या खड़ी हो सकती थी। सबसे बड़ा नुकसान नितीश को होता।
अपनी योजना को मूर्त रूप देने के लिए उन्होंने तेजस्वी यादव और राजद प्रमुख लालू यादव से भी मुलाकात की थी, लेकिन राजनीतिक हालात की कमज़ोरी ने उन्हें संयम बरतने पर मजबूर कर दिया। नितीश की इस संवेदनशीलता ने तेजस्वी को नितीश कुमार की प्रतिबद्धताओं की विश्वसनीयता पर सवाल उठाने के लिए प्रेरित किया और उन्होंने कहा कि उनके वायदों का कोई मूल्य नहीं है और उन्होंने लोगों का विश्वास खो दिया है। उन्होंने उस घटना को याद किया, जिसमें कुमार ने अपने विधायकों की मौजूदगी में हाथ जोड़कर भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के साथ गठबंधन करने के लिए माफी मांगी थी। हालांकि, तेजस्वी ने राजद और नितीश की जेडी(यू) के बीच भविष्य में किसी भी तरह के गठबंधन की संभावना को मजबूती से खारिज कर दिया। तेजस्वी, जो कल तक नितीश को चाचा कह कर संबोधित करते थे, की ओर से की टिप्पणी उनकी विश्वसनीयता के खत्म होने का संकेत देती है।
तेजस्वी ने कहा नितीश की असंगति और राजनीतिक निष्ठाओं को बदलने की प्रवृत्ति ने उनकी प्रतिबद्धताओं को अविश्वसनीय बना दिया है। उन्होंने कहा कि राजद ने बिहार के मुख्यमंत्री को पहले भी कई मौके दिये थे, लेकिन हर बार कुमार ने अपना असली स्वरूप दिखाया। स्थिति ऐसी हो गई है कि लोग अब उनकी बातों को गंभीरता से लेने को तैयार नहीं हैं।  6 सितम्बर, 2024 को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जे.पी. नड्डा के साथ एक सार्वजनिक कार्यक्रम में भाग लेने के दौरान नितीश ने राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के साथ फिर से जुड़ने की अटकलों को खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि उन्होंने उनके साथ गठबंधन करके दो बार गलती की और इसे दोहरायेंगे नहीं, लेकिन विशेषज्ञ और राजनीतिक विश्लेषक उनकी बातों को मानने को तैयार नहीं हैं। उनमें से एक ने एक रहस्यमय टिप्पणी की, ‘यह भविष्य में उनकी कलाबाजी के लिए कदम हो सकता है।’ वास्तव में जब वह कोई तथ्य बोलते हैं, तो उस पर भरोसा नहीं किया जाता है। नितीश ने राज्य की नौकरशाही और पुलिस पर अपना नियंत्रण लगभग खो दिया है। राज्य की राजधानी पटना में भी हिंसा की अभूतपूर्व घटनाएं हो रही हैं। 9 सितम्बर को ही तेजस्वी ने नितीश पर कटाक्ष करते हुए कहा था कि राज्य में कानून-व्यवस्था खत्म हो गयी है और अपराधियों ने राज्य पर कब्ज़ा कर लिया है। अपराधी पुलिस से बेखौफ  होकर काम कर रहे हैं और हत्या, बैंक डकैती और अपहरण की घटनाएं आम हो गयी हैं।
मोदी-शाह की जोड़ी इस स्थिति का तत्काल लाभ उठाने के मूड में नहीं है। वजह यह है कि उनके पास ऐसा कोई नेता नहीं है जिसे पार्टी का चेहरा बनाया जा सके। भाजपा भी पीछे हटने के मूड में नहीं है। वे उन्हें कुछ और समय तथा जगह देना चाहते हैं क्योंकि उनके सत्ता में बने रहने से उनका ईबीसी और महादलित समर्थन आधार और कम हो जायेगा।  हालिया जाति सर्वेक्षण के अनुसार 130 छोटे जाति समूहों वाली ईबीसी श्रेणी बिहार के मतदाताओं का 36 प्रतिशत हिस्सा बनाती है। इस समूह के साथ, नितीश को उनके कुरमी-कोइरी (कुशवाहा) समुदाय का समर्थन प्राप्त था। बिहार के मतदाताओं में कुरमी 2.9 प्रतिशत और कोइरी4.2 प्रतिशत हैं। मुख्यमंत्री को 21 जातियों वाली महादलित श्रेणी से भी फायदा हुआ, जिसे बनाने में उन्होंने मदद की थी। राज्य में महादलित लगभग 10 प्रतिशत हैं।
एक और बात यह है कि पार्टी के पास कोई ऐसी महिला नेता नहीं है जो मतदाताओं को लुभा सके। नितीश ने न केवल नौकरियों में बल्कि राजनीति में भी महिलाओं को आरक्षण देकर उनके बीच अपना समर्थन आधार तैयार किया है। पिछले कुछ समय से महिलाएं चुनावों में अहम कारक बन गयी हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव और इस साल के विधानसभा चुनाव में बड़ी संख्या में महिलाएं वोट देने के लिए बाहर निकलीं। इस बार बिहार विधानसभा चुनाव में महिला मतदाताओं की संख्या पुरुषों से अधिक रही। हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव में सभी पांच चरणों में महिलाओं ने पुरुषों से अधिक मतदान किया। (संवाद)