वायदा तेरा वायदा

हरियाणा में विधानसभा चुनाव आगामी 5 अक्तूबर को होने जा रहे हैं, अभिप्राय इनके लिए मात्र 14 दिन ही शेष बचे हैं। इस बार मुख्य मुकाबला भाजपा एवं कांग्रेस के मध्य ही दिखाई दे रहा है। पिछले 10 वर्ष से भाजपा निरन्तर प्रदेश का प्रशासन चला रही है। इतनी अवधि में अक्सर लोगों के गिले-शिकवों की सूचियां लम्बी हो जाती हैं। चाहे इस समय में पंजाब की तत्कालीन सरकारों की अपेक्षा हरियाणा सरकार की कारगुज़ारी कहीं बेहतर दिखाई दे रही है। इस अवधि में प्रदेश में विकास की गति भी तेज़ रही है। अन्य कई प्रदेशों की भांति बड़े भ्रष्टाचार के मामले भी सामने नहीं आये।
इसी अवधि में हरियाणा अपने पड़ोसी प्रदेशों के मुकाबले तेज़ गति के साथ आगे बढ़ता दिखाई दिया है परन्तु इसके साथ ही इस बार प्रदेश के लोगों की कांग्रेस पर भी उम्मीदें केन्द्रित दिखाई देती हैं। जहां पड़ोस के राज्य हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस सत्तारूढ़ हुई है, वहीं पिछले अढ़ाई वर्ष में पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार की बेहद विफल कारगुज़ारी के कारण लोगों में निराशा देखने को मिल रही है, जिसका प्रभाव हरियाणा चुनावों में देखने को मिल सकता है। अभी जेल से ज़मानत पर रिहा होकर आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविन्द केजरीवाल ने हरियाणा में पार्टी के चुनाव प्रचार हेतु कमान सम्भाल ली है, परन्तु पंजाब सरकार की बेहद बुरी स्थिति के दृष्टिगत हरियाणा के चुनावों में इस पार्टी की कारगुज़ारी कमज़ोर रहने की ही सम्भावनाएं बनी दिखाई देती हैं।
दूसरी तरफ चुनाव मैदान में उतरीं बड़ी-छोटी पार्टियों की ओर से जिस तरह तारे तोड़ कर लाने के वायदे किए जा रहे हैं, वह मतदाताओं को भ्रमित करने वाले प्रतीत होते हैं। शायद ये पार्टियां लोगों को धरातल पर समझते हुए स्वयं को अधिक चतुर समझने लगी हैं, परन्तु यह बात सुनिश्चित है कि लोगों को मूर्ख बनाने वाले ऐसे वायदे करते समय ये पार्टियां प्रदेश के आर्थिक स्रोतों का अध्ययन नहीं करतीं, अपितु उनका उद्देश्य सिर्फ कुर्सी तक पहुंचने का होता है। प्रदेश के आगामी चुनावों के लिए भाजपा एवं कांग्रेस दोनों ने अपने घोषणा-पत्र जारी किए हैं। भाजपा ने जहां अपने घोषणा-पत्र में 20 संकल्पों की घोषणा की है, वहीं कांग्रेस ने मतदाताओं से 7 वायदे किए हैं, इन पर दृष्टिपात करते हुए यह प्रभाव मिलता है कि ये दोनों ही पार्टियां लोक लुभावन वायदे करके जनता को भ्रमित करने के यत्न में हैं, जबकि इनकी ज़िम्मेदारी प्रदेश के वित्तीय स्रोतों का संतुलित एवं समुचित इस्तेमाल करके लोगों का विकास करने की होनी चाहिए। 
इन लुभावन वायदों की कड़ी में जहां कांग्रेस ने महिलाओं को 2000 रुपए प्रति मास देने की घोषणा की है, वहीं भाजपा ने और आगे बढ़ते हुए यह राशि 2100 रुपए प्रति मास कर दी है। भाजपा ने जहां सरकार बनने पर युवाओं को 2 लाख सरकारी नौकरियां देने का वायदा किया है, वहीं कांग्रेस ने पहले ही 2 लाख रिक्त सरकारी पदों को भरने की बात की है। यदि भाजपा ने 10 लाख तक के मुफ्त उपचार का वायदा किया है तो कांग्रेस ने इससे कहीं बड़ी छलांग लगाते हुए 25 लाख रुपए तक के मुफ्त उपचार  की घोषणा की है। जहां भाजपा ने 5 लाख घरों को मुफ्त बिजली देने की घोषणा की है, वहीं कांग्रेस ने सभी को 300 यूनिट तक बिजली मुफ्त देने की घोषणा कर दी है। दोनों पार्टियों ने गैस सिलेण्डर की कीमत 500 रुपए तक करने की घोषणा भी की है। हम इन पार्टियों को प्रदेश की आर्थिकता के वास्तविक हालात देखते हुए, उनके अनुसार ही चलने की सलाह देते हैं। क्योंकि ऐसी मुफ्तखोरी की दौड़ में राजनीतिज्ञ प्रदेश के सिर पर ऋण की भारी गठरी रख देते हैं, जिसका भार अंत में आम लोगों को ही उठाना पड़ता है और वे इस ऋण के भंवर में ही फंस कर रह जाते हैं। इसी कारण जन-पक्षीय विकास की योजनाएं भी आधी-अधूरी ही रह जाती हैं।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द