मोदी की अमरीका यात्रा : अपनी बात स्पष्ट कहने का अवसर

21से 23 सितम्बर, 2024 तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमरीका की यात्रा पर रहेंगे। इस यात्रा के दौरान मोदी विलमिंग्टन, डेलावेयर में चौथे क्वाड सम्मेलन में भाग लेंगे, ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथनी अलबनीज़, जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा तथा अमरीका के राष्ट्रपति जो बाइडन से द्विपक्षीय मुलाकात करेंगे। न्यूयार्क में 23 सितम्बर  को संयक्त रार्ष्ट महासभा के विशेष सत्र भविष्य का शिखर सम्मेलन को संबोधित करेंगे और उसके पहले 22 सितम्बर को भारतीय समुदाय को भी संबोधित करेंगे। कुल मिलाकर प्रधानमंत्री मोदी का यह बेहद व्यस्त दौरा होगा, लेकिन व्यस्तता के साथ ही कई वजहों से यह बेहद महत्वपूर्ण दौरा भी होगा। 
प्रधानमंत्री मोदी अपने इस दौरे में अमरीका के राष्ट्रपति जो बाइडन और जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा से एक तरह से विदाई मुलाकात करेंगे, क्योंकि अमरीका में जल्द ही चुनाव होंगे और डेमोक्रेट भले ही दोबारा सत्ता में आ जाएं, लेकिन बाइडन नहीं आएंगे, क्योंकि वह चुनाव नहीं लड़ रहे। ठीक यही हाल जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा है, उन्होंने पिछले महीने एक आश्चर्यजनक कदम उठाते हुए घोषणा की, कि वह सितम्बर में होने वाले पार्टी नेतृत्व के चुनाव में हिस्सा नहीं लेंगे, जिससे कि जापान में नये प्रधानमंत्री का मार्ग प्रशस्त हो गया है। किशिदा का तीन वर्षीय कार्यकाल इसी महीने समाप्त हो रहा है। सवाल है जब एक शिखर सम्मेलन में दो-दो विदाई शासनाध्यक्षों से बातचीत करनी हो तो उसे कितनी महत्वपूर्ण माना जाए? पुरानी कूटनीति तो यह कहती है कि जाने वालों से क्या मतलब की बातें की जाएं? 
लेकिन नया कूटनीतिक मनोविज्ञान कहता है, यही मौका है, जो कहना है साफ -साफ  कह दिया जाए, जिससे जाने वाला बहुत आक्रामकता से विरोध नहीं करेगा, क्योंकि वह जानता है, उसे क्या फर्क पड़ता है, वह तो जाने वाला है, लेकिन आने वाले पर यह मनोवैज्ञानिक दबाव बना रहेगा कि जाने वाले से क्या-क्या बातें कही गई थीं, क्या-क्या मांगे रखी गई थीं? भारत के प्रधानमंत्री के लिए ऐसा करना इसलिए भी ज़रूरी रणनीति का हिस्सा होना चाहिए, क्योंकि अगर इस समय वैश्विक कूटनीति के किसी प्रहसन के तौर पर भी दुनिया के नक्शे में भारत को एक उभरती हुई ताकत और मजबूत आवाज़ समझा जा रहा है, तो हम क्यों न इस वक्त का फायदा उठाते हुए वे बातें साफ -साफ  कहें, जिन बातों के लिए लम्बे अर्से से सही समय का इंतजार कर रहे हों। यह चौंकाने वाला तथ्य नहीं है कि प्रधानमंत्री मोदी की ऐन अमरीका यात्रा के पहले पतवंत सिंह पन्नु मामले में भारत के सुरक्षा सलाहकार को समन किया गया है। यह धोखे में नहीं हुआ। यह अमरीका की रणनीति है, वह द्विपक्षीय मुलाकातों के दौरान भले हमारे साथ अपनी दोस्ती की डींगें हांके, लेकिन मौका मिलते ही किसी ऐसी जगह चोट करने से नहीं चूकता, जो उसकी नज़र में हमारी कमज़ोर नस हो। 
जब भी भारत किसी बड़े मंच पर, किसी बड़े लक्ष्य की तरफ  बढ़ रहा होता है तो अमरीका कुछ न कुछ करके हमारे इस महत्वाकांक्षा के फूले गुब्बारे में सुई चुभोने का कार्य करना कभी नहीं छोड़ता। महीनों पहले से तय था कि सितम्बर के तीसरे सप्ताह में प्रधानमंत्री मोदी अमरीका की यात्रा पर होंगे और इस मौके पर मोदी सिर्फ अमरीकी राजनेताओं से नहीं बल्कि विश्व राजनेताओं से भी अपने बड़े कद के मुताबिक मुलाकात करेंगे। ठीक उसी समय अमरीकी प्रशासन ने भारतीय एनएसए को समन जारी करके दुनिया को यह संदेश देने की कोशिश की है कि वह भारत को बहुत महत्वपूर्ण देश नहीं मानता। इसलिए भारतीय प्रधानमंत्री की अमरीका यात्रा के दौरान उनके प्रोटोकॉल की परवाह नहीं करता। दरअसल अमरीका भले अपनी वैश्विक रणनीति का समीकरण मजबूत बनाने के लिए हमारे साथ अपनी दोस्ती दर्शाता हो और बड़े-बड़े शब्दों में यह कहना भी न भूलता हो कि भारत दुनिया की महत्वपूर्ण ताकत है, लेकिन अगर ताकत है तो फिर खुद अमरीका इस ताकत को क्यों नहीं मानता? खैर, इस सबसे हमें परेशान होने की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि कूटनीति का यही बुनियादी धर्म है। अगर कोई बड़ा और ताकतवर देश कूटनीति के सबसे संवेदनशील हथियार का इस्तेमाल करने से बाज न आ रहा हो तो ऐसे में ‘जैसे को तैसा’ वाला व्यवहार तो करना ही चाहिए। 
भारत के पास मौका है कि वह अमरीका के साथ अपने रिश्तों में दोटूकपना को मज़बूत करे। प्रधानमंत्री मोदी को बाइडन से साफ  साफ  कहना होगा कि ऐसा नहीं हो सकता कि एक तरफ  अमरीका भारत को दुनिया की महत्वपूर्ण ताकत भी माने और दूसरी तरफ  संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता को लेकर पर्दे के पीछे हमारे दावे को कमजोर भी करे। प्रधानमंत्री मोदी को इस बार बाइडन के साथ संयुक्त राष्ट्र को संबोधित करते हुए भी दोटूक कहना चाहिए कि जिस सुरक्षा परिषद में दुनिया की फिलहाल पांचवीं और जल्द ही तीसरी अर्थव्यवस्था बनने वाले देश को कुछ बड़े देशों के बराबर का महत्व नहीं दिया जाता, ऐसे संगठन का कोई अर्थ नहीं है। भारत को अब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अपनी स्थायी सदस्यता की जोर-शोर से मांग करनी चाहिए और वैश्विक मंचों से दुनिया के बड़े और महत्वपूर्ण देशों को हमारे समर्थन के लिए मजबूर करना चाहिए।
अमरीका में मोदी की इस यात्रा के दौरान क्वाड का बेहद महत्वपूर्ण सम्मेलन होगा, इसलिए नहीं कि क्वाड है ही महत्वपूर्ण, बल्कि इसलिए कि यह ऐसा मौका है जब पूरी दुनिया की राजनीति अगले दो तीन दशकों के लिए ठोस और मजबूत शक्ल इतिख्यार करने जा रही है। ऐसे में चाहे ऑस्ट्रेलिया हो या अमरीका, साफ -साफ  शब्दों में कहा जाना चाहिए कि क्वाड का मकसद अगर चीन को वैश्विक परिदृश्य में संतुलित करना है, तो भारत को ठोस रूप से मजबूत बनाना होगा।
एक तरफ  तो दुनिया, जिसकी अगुवाई अमरीका ही कर रहा है, ज्यादा से ज्यादा भूमंडलीकरण की मांग कर रहा है, दूसरी तरफ  अमरीकी नेता मौजूदा चुनाव के दौरान खुद को ‘ज्यादा अमरीकन’ साबित करने की कोशिश कर रहे हैं। आखिर इस दोहरे बर्ताव का संदेश क्या है? अमरीका से भारत को साफ -साफ  कहना चाहिए कि चाहे इंडोपैसिफिक सहयोग योजनाएं हों या वैश्विक कूटनीतिक समीकरण, भारत को अब हर हाल में अपना ज़रूरी हिस्सा चाहिए। हम अमरीका या किसी और के अच्छे मूड या मौके का इंतजार नहीं कर सकते। जाते हुए कमज़ोर नेताओं से भारतीय प्रधानमंत्री को अपने ये मजबूत इरादे, मजबूत अंदाज़ में बताने ही होंगे। 
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर