राहुल गांधी के रायबरेली से चुनाव लड़ने का प्रभाव

लोकसभा के तीसरे चरण के चुनाव 7 मई को होने जा रहे हैं। चुनावों के पक्ष से प्रतिदिन अलग-अलग मुद्दों पर चर्चा होती है। अलग-अलग पार्टियों के नेताओं द्वारा अपने-अपने हिसाब से भाषण देकर वृत्तांत बनाए या बिगाड़े जाते हैं। अब सबसे अधिक चर्चा राहुल गांधी की ओर से उत्तर प्रदेश के रायबरेली से अपना नामांकन दाखिल करवाने की हो रही है। राहुल गांधी ने दूसरे चरण के हुये चुनावों में दक्षिण भारत में केरल की वायनाड सीट से भी चुनाव लड़ा है, उसके बाद राजनीतिक गलियारों में यह अनुमान भी लगाये जाते रहे थे कि राहुल उत्तर प्रदेश की अमेठी लोकसभा सीट से भी चुनाव लड़ सकते हैं, क्योंकि इस सीट पर उनके पारिवारिक सदस्य लम्बी अवधि से चुनाव लड़ते आ रहे हैं तथा यह भी चर्चा थी कि उनकी बहन प्रियंका गांधी वाड्रा रायबरेली से चुनाव मैदान में उतर सकती हैं। इन क्षेत्रों के चौथे चरण के चुनाव 20 मई को होने जा रहे हैं। जैसे-जैसे समय व्यतीत होता जा रहा था, वैसे-वैसे ही इस संबंध में जिज्ञासा बढ़ती रही थी परन्तु अंत तक भी कांग्रेस ने इस संबंध में अपने पत्ते नहीं खोले थे। कांग्रेस की ओर से नामांकन दाखिल करने के अंतिम दिन रायबरेली से राहुल गांधी के उम्मीदवार होने की घोषणा कर दी गई। इसके साथ ही अमेठी से उनके बेहद करीबी रहे तथा परिवार के वफादार के.एल. शर्मा, जो लगातार वहां सक्रिय रहे थे, को कांग्रेस की ओर से अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया गया। इस संबंध में भाजपा की ओर से प्रतिक्रिया आना स्वाभाविक था, क्योंकि वर्ष 2019 के पिछले लोकसभा चुनावों में भाजपा नेता स्मृति ईरानी ने 50,000 के भारी अन्तर से राहुल गांधी को अमेठी से हरा दिया था। भाजपा ने अमेठी से चुनाव न लड़ने के कारण राहुल पर तन्ज़ कसा है।
जहां तक रायबरेली का संबंध है यह कांग्रेस की स्थायी सीट मानी जाती रही है, क्योंकि ज्यादातर समय यहां नेहरू-गांधी परिवार के सदस्यों का या उनके नज़दीकी साथियों का कब्ज़ा रहा है। राहुल गांधी के दादा फिरोज़ गांधी ने वर्ष 1952 में लोकसभा के हुए पहले चुनावों के समय यहां से जीत हासिल की थी। उनके बाद श्रीमती इन्दिरा गांधी ने समय-समय पर चार बार इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया था तथा उनके बाद वर्ष 2004 से लेकर 2019 तक पांच बार राहुल की मां सोनिया गांधी यहां से जीत प्राप्त कर रही हैं। राहुल गांधी ने क्या सोच कर रायबरेली को चुना है यह तो उनका या पार्टी का मामला हो सकता है परन्तु इससे उत्तर प्रदेश के चुनावों में और भी दिलचस्पी बन जाएगी। उत्तर प्रदेश देश भर के सभी राज्यों में लोकसभा की सबसे अधिक 80 सीटों वाला प्रदेश है। इसका देश की राजनीति पर बड़ा प्रभाव देखा जाता है। पिछली दो पारियों से भाजपा ने इस प्रदेश में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में अपना भारी दबदबा बनाये रखा है। आज भी इस प्रदेश में श्री मोदी के प्रभाव को बड़ी सीमा तक स्वीकार किया जाता रहा है। इसीलिए कांग्रेस ने ‘इंडिया’ गठबंधन में शामिल होकर भाजपा को चुनौती दी है। इसी के तहत ही कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी के साथ मिल कर चुनाव लड़ने के लिए सीटों का विभाजन किया है। चाहे इस विभाजन में कांग्रेस को कम सीटें मिली हैं परन्तु इसके बावजूद उसने पार्टी की वास्तविक स्थितियों को देखते हुए यहां पर समझौता करने को ही बेहतर समझा है।
नि:संदेह ‘इंडिया’ गठबंधन में चाहे दरार आती रही है परन्तु इसके बावजूद किसी न किसी तरह कांग्रेस ने यत्न करके इस गठबंधन को बनाये रखने का प्रयास किया है। राहुल गांधी ने इन चुनावों से पहले तथा अब तक कड़ी मेहनत की है। चाहे चुनावी गतिविधि में भाजपा ने अभी तक भी अपनी बढ़त बनाये रखी है परन्तु इसके बावजूद कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दल भी इन चुनावों को पूरे जी-जान के साथ लड़ रहे हैं। इसके पड़ने वाले प्रभावों को दृष्टिविगत नहीं किया जा सकता, चाहे यह आगामी समय ही बताएगा कि राहुल गांधी का रायबरेली से चुनाव लड़ना इंडिया गठबंधन तथा कांग्रेस के लिए कितना लाभदायक सिद्ध होगा।

-बरजिन्दर सिंह हमदर्द