देश की राजनीति में अहम स्थान था वाजपेयी का : विरोधी भी देते थे सम्मान

देश के पूर्व प्रधानमंत्री और प्रसिद्ध भाजपा नेता श्री अटल बिहारी वाजपेयी हमारे बीच नहीं रहे। वरिष्ठ  पत्रकार किंशुक नाग ने अपनी किताब ‘अटल बिहारी वाजपेयी- ए मैन फॉर ऑल सीज़न’ में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के लिए बिल्कुल सही शब्द इस्तेमाल किया है। ‘ए मैन फ ॉर आल सीजन’ वाजपेयी इस असहमति के दौर में भी आखिरी ऐसे नेता थे, जिनका उनकी वैचारिक विरोध वाली राजनीतिक पार्टियों में भी एक में एक न्यूनतम सम्मान था। खुद वाजपेयी जिस राजनेता की सबसे ज्यादा आलोचना करते थे, संसद की अपनी खूबसूरत तकरीरों में जिस राजनेता पर सबसे ज्यादा हमले करते थे, वह शख्स तक उन्हें प्यार और इज्जत करता था। यह शख्स कोई और नहीं पंडित जवाहरलाल नेहरू थे। जवाहरलाल नेहरू वाजपेयी को कितना प्यार और आदर करते थे, इसका खुलासा वे किस्से करते हैं जिन्हें तमाम पुराने दिग्गज राजनेता पत्रकारों को सुनाते रहे हैं और ये कई किताबों में भी दर्ज हैं।  मसलन कहते हैं कि नेहरू अक्सर दिग्गज विदेशी राजनेताओं से अटल बिहारी वाजपेयी का परिचय ज़रूर कराते थे और बड़े विशिष्ट अंदाज में परिचय कहते थे, ‘इनसे मिलिए— ये विपक्ष के उभरते हुए युवा नेता हैं’। मेरी खूब आलोचना करते हैं लेकिन इनमें मैं भविष्य की बहुत संभावनाएं देखता हूं। अटल जी का मौजूदा भाजपा के साथ सक्रिय सफर 1951 से शुरू होता है जब वह भारतीय जनसंघ के संस्थापक सदस्य बने। अपनी बेजोड़ वाणी और उसके उपयोग की कला में महारत हासिल रखने के कारण वह सिर्फ  संसद के अन्दर ही नहीं, बाहर भी खूब रंग जमाते थे। इमरजेंसी के बाद हुए आम चुनावों में उनकी जनसभाओं में लाखों लाख लोग जुटा करते थे। हालांकि बेजोड़ वक्ता होने के बावजूद अटल जी अपना पहला चुनाव जोकि लखनऊ की एक लोकसभा सीट का उप-चुनाव था, वह  हार गए थे। शायद इसीलिये दूसरे लोकसभा चुनाव 1957 में जनसंघ ने उन्हें एक-दो नहीं बल्कि तीन-तीन लोकसभा सीटों, लखनऊ, मथुरा और बलरामपुर से चुनाव लड़ाया था। लखनऊ में वो चुनाव हार गए, मथुरा में उनकी ज़मानत ज़ब्त हो गई लेकिन बलरामपुर से वह चुनाव जीत गए। इस तरह दूसरी लोकसभा के साथ अटल बिहारी वाजपेयी का संसदीय सफर शुरू हुआ जो अगले साढ़े पांच दशकों से भी ज्यादा समय तक किसी न किसी रूप में जारी रहा। 20वीं सदी के तीसरे दशक में 25 दिसम्बर 1924 को ग्वालियर के एक निम्न मध्यमवर्ग परिवार में जन्मे अटल जी की प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा ग्वालियर के ही विक्टोरिया कॉलेज में हुई, जिसे अब महारानी लक्ष्मीबाई कॉलेज के नाम से जाना जाता है। इसके बाद वे कानपुर के डीएवी कॉलेज में पढ़े। उन्होंने राजनीतिक विज्ञान में एम. किया और पत्रकारिता को अपना शुरुआती करियर चुना। अटल जी ने एक पत्रकार के तौर पर राष्ट्र धर्म, पांचजन्य और वीर अर्जुन जैसे हिंदी के अखबारों में काम किया।  साल 1968 से 1973 तक वो भारतीय जन संघ के अध्यक्ष रहे। आपातकाल में तमाम दूसरे विपक्षी पार्टियों के नेताओं की तरह उन्हें भी जेल जाना पड़ा। इसके बाद बनी देश की पहली गैर कांग्रेसी सरकार में वह विदेश मंत्री बने और विदेश मंत्री रहते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ गए तो उन्होंने हिंदी में भाषण दिया जो तब तक किसी अंतर्राष्ट्रीय संस्था में भारत के किसी मंत्री या प्रधानमंत्री के रूप में हिंदी में किया गया पहला संबोधन था। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी सिर्फ  फायरब्रांड वक्ता भर नहीं थे, वह विजनरी विकास पुरुष भी थे। इस मामले में भी  वह पंडित जवाहरलाल नेहरू के काफी नजदीक थे। वह देश के विकास के संबंध में बड़ा और समग्रता में सोचते थे। देश के बड़े मेट्रो शहरों को ही नहीं, बल्कि दूर-दराज के गांवों को भी सड़कों से जोड़ने के लिए विस्तृत योजना उन्हीं की देन है। जिसमें स्वर्णिंम चतुर्भुज योजना और प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना प्रमुख हैं। स्वर्णिम चतुर्भुज योजना के जरिये ही देश के पहले चार महानगर चेन्नई, कोलकाता, दिल्ली और मुंबई को हाइवेज नेटवर्क के जरिये जोड़ा गया, जबकि प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना ने देश के दूर-दराज इलाकों में बसे गांवों तक सड़क पहुंचाने का काम किया। उन्होंने देश की अर्थव्यवस्था में भी उदारवाद के दूसरे चरण को अमली जामा पहनाया। साल 1991 में प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव ने भारतीय अर्थव्यवस्था के जिस उदारवादी दौर की शुरुआत की थी, अटल जी उसे अपने दो कार्यकालों में अगले दौर तक ले गए। ये अटल बिहारी वाजपेयी ही थे जो  वित्तीय उत्तरदायित्व अधिनियम लेकर आये थे। इसी अधिनियम के जरिये पहली बार देश का राजकोषीय घाटा कम करने का लक्ष्य रखा गया। वाजपेयी  सरकार के इस कदम ने पब्लिक सेक्टर सेविंग्स को बढ़ावा दिया। इसके फ लस्वरूप साल 2000 में जो सेविंग्स जीडीपी का 0.8 फीसदी थी, वह 2005 में बढ़कर 2.3 फीसदी हो गई थी। देश में संचार क्रांति लाने में भी अटल जी की अहम भूमिका रही है।   वाजपेयी सरकार ने ही पहली बार टेलीकॉम फर्म्स के लिए फिक्सड लाइसेंस फीस को हटा कर रेवेन्यू-शेयरिंग व्यवस्था के बारे में सोचा था। टेलीकॉम डिस्प्यूट सेटलमेंट अपीलेट ट्रिब्यूनल का गठन भी वाजपेयी सरकार ने ही पहली बार किया था। उन्होंने प्रधानमंत्री रहते हुए तमाम किस्म के कारोबार से सरकार का दखल कम से कम करने की कोशिश की ताकि निजीकरण को बढ़ावा मिले। उनकी सरकार ने पहली बार एक अलग से विनिवेश मंत्रालय का गठन किया। वाजपेयी सरकार में रहते हुए स्टेट के वेल्फेयर चरित्र को भी मजबूत किया। उनकी सरकार द्वारा शुरू किया गया सर्व शिक्षा अभियान सबसे लोकप्रिय सामाजिक अभियान था, जिसमें पहली बार 6 से 14 साल की उम्र के सभी बच्चों को मुफ्त प्राथमिक शिक्षा देने का प्रावधान किया गया था। 
अटल जी के व्यक्तित्व की कई  खूबिया थीं। भारतीय राजनीति में वह पहले गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री थे, जिन्होंने अपना कार्यकाल पूरा किया था। हालांकि 1996 में पहली बार वह महज 13 दिनों के लिए प्रधानमंत्री बने थे। वह  एक-दो या तीन नहीं बल्कि  9 बार सांसद के रूप में लोकसभा पहुंचे, साथ ही दो बार राज्यसभा के सदस्य भी रहे। अटल जी को 1992 में पद्मविभूषण और 1994 में बेस्ट् पार्लियामेंटेरियन अवॉर्ड मिला।  साल 2014 में उन्हें मदनमोहन मालवीय जी के साथ भारत रत्न से सम्मानित किया गया। अपने स्वास्थ्य कारणों से साल 2005 के बाद वह सार्वजनिक जीवन से दूर होते चले गए थे, लेकिन जब तक राय मशविरा करने की हालत में थे तब तक भाजपा का हर बड़ा नेता किसी भी कार्यक्रम के पहले उनसे ज़रूर मिलता था उनकी राय और आशीर्वाद हासिल करने के लिए। वाजपेयी के साथ निश्चित ही भारतीय राजनीति का एक महायुग खत्म हो गया। 

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