18वें एशियाई खेल : जकार्ता-2018 : भारतीय खिलाड़ियों से अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद

गोल्ड कोस्ट (ऑस्ट्रेलिया) में हुए राष्ट्रकुल खेलों में अच्छा प्रदर्शन करने के बाद अब हर किसी को यही आशा है कि जकार्ता (इंडोनेशिया) में 18 अगस्त से शुरू हो चुके व 2 सितम्बर तक होने वाले 18वें एशियाई खेलों में भी भारत का प्रदर्शन बेहतर रहेगा। यह संभव है, लेकिन आसान नहीं है। राष्ट्रकुल की तुलना में एशियाई खेलों में मुकाबला अधिक कठिन होता है। फिर गोल्ड कोस्ट में रिकॉर्ड तोड़ परफॉरमेंस देने वाले अनेक भारतीय खिलाड़ी जकार्ता नहीं जा रहे हैं। मसलन, ऑस्ट्रेलिया में वेट लिफ्टर मीरा चानू ने ऐसा प्रदर्शन किया था कि अगर वह ओलंपिक में होता तो भी उन्हें निश्चित पदक मिलता। चोट के कारण मीरा जकार्ता नहीं जा रही हैं।एशियाई खेलों में भारत का प्रदर्शन उतार-चढ़ाव वाला रहा है। 1951 में जब भारत के ही प्रयासों से इन खेलों का आरंभ हुआ था तो भारत पदक तालिका में दूसरे स्थान पर रहा था, अब भारत 5वें से 8वें स्थान के लिए संघर्ष करता हुआ नजर आता है। इन खेलों में चीन का जबरदस्त दबदबा रहता है और फिर दक्षिण कोरिया व जापान छाये रहते हैं। एशियाई खेलों में पूर्व सोवियत संघ के देशों जैसे कजाकिस्तान, उज्बेकिस्तान व किर्गिजस्तान के शामिल होने से भारत के लिए स्थिति अधिक कठिन है। भारत एक बार जकार्ता 1962 में तीसरे स्थान पर, पांच बार (मनीला 1954, बैंकाक 1966, बैंकॉक 1970, दिल्ली 1982 व सिओल 1986) पांचवें स्थान पर, दो बार छठे (बैंकाक 1978 व गुआंग्झाऊ 2010) स्थान पर, तीन बार सातवें (टोक्यो 1958, तेहरान 1974 व बुसान 2002) स्थान पर, तीन बार आठवें (हिरोशिमा 1994, दोहा 2006 व इंचेओन 2014) स्थान पर और एक-एक बार नौवें (बैंकॉक 1998) व ग्यारहवें (बीजिंग 1990) स्थान पर रहा है। भारत ने अधिकतम 65 पदक गुआंग्झाऊ 2010 में जीते (65 पदक- 14 स्वर्ण, 17 रजत व 34 कांस्य), और 57 पदक दो बार जीते हैं- दिल्ली 1982 (57 पदक- 13 स्वर्ण, 19 रजत व 25 कांस्य) और इंचेओन 2014 (57 पदक- 11 स्वर्ण, 9 रजत व 37 कांस्य)। इसके अलावा उसने तीन अन्य अवसरों पर 50 का आंकड़ा पार किया है- 1951 दिल्ली (51 पदक- 15 स्वर्ण, 16 रजत व 20 कांस्य), 1962 जकार्ता (52 पदक- 12 स्वर्ण, 13 रजत व 27 कांस्य) और 2006 दोहा (53 पदक- 10 स्वर्ण, 17 रजत व 26 कांस्य)। अधिकतम स्वर्ण पदक (15) उसने दिल्ली 1951 में जीते थे, अधिकतम रजत पदक (19) दिल्ली 1982 में और अधिकतम कांस्य पदक (37) इंचेओन 2014 में। पदक के हिसाब से भारत का सबसे खराब प्रदर्शन टोक्यो 1958 में रहा जब वह सिर्फ  11 पदक ही जीत सका था (11 पदक- 5 स्वर्ण, 3 रजत व 3 कांस्य)। इन खेलों में अब तक चीन ने सबसे ज्यादा 2895 पदक (1342 स्वर्ण, 900 रजत व 653 कांस्य) जीते हैं। इसके बाद स्थान जापान (2850 पदक- 957 स्वर्ण, 980 रजत व 913 कांस्य), दक्षिण कोरिया (2053 पदक- 696  स्वर्ण, 606 रजत व 761 कांस्य), भारत (616 पदक- 139 स्वर्ण, 178 रजत व 299 कांस्य), ईरान (495 पदक- 159 स्वर्ण, 161 रजत व 175 कांस्य), और कजाकिस्तान (481 पदक- 140 स्वर्ण, 141 रजत व 200 कांस्य) का रहा है। यहां यह बताना जरूरी है कि अधिकारिक रूप से चीन, उत्तर कोरिया व मंगोलिया 1974 के तेहरान (ईरान) खेलों से ही एशियाई खेलों में हिस्सा ले रहे हैं, जबकि पूर्व सोवियत संघ देशों का प्रवेश हिरोशिमा (जापान) 1994 से ही शुरू हुआ। दिल्ली 1951 में केवल 11 देशों ने हिस्सा लिया था, 12 खेल थे, जिनमें कुल 489 खिलाड़ियों ने मुकाबला किया था। अब जकार्ता में 51 स्पोर्ट्स के अलग-अलग 39 डिसिप्लिंस और लगभग 400 इवेंट्स होंगे जिनमें 45 देशों के 9500 से अधिक खिलाड़ी हिस्सा लेंगे। इस बार भी अनुमान यह है कि चीन सबसे ज्यादा पदक ले जायेगा और काफी अंतर के साथ दक्षिण कोरिया दूसरे स्थान पर रहेगा। इसका अर्थ यह है कि बाकी टॉप सिक्स के स्थानों के लिए जापान, ईरान, कजाकिस्तान, भारत व थाईलैंड संघर्ष करते नजर आयेंगे। 2018 का सत्र यह संकेत देगा कि भारत ने अपने टारगेट ओलंपिक पोडियम योजना में कितनी प्रगति की है। टोक्यो ओलंपिक में अभी दो वर्ष हैं, इसलिए गोल्ड कोस्ट राष्ट्रकुल खेलों में जो सफलता मिली थी उसके बाद इंडोनेशिया में तैयारी का अनुमान लगाया जा सकेगा। गोल्ड कोस्ट में इस साल भारत तीसरे स्थान पर रहा था, 66 पदकों के साथ जिनमें 26 स्वर्ण पदक थे। भारत का प्रदर्शन बैडमिंटन, टेबल टेनिस, वेट लिफ्टिंग, कुश्ती व बॉक्सिंग में बेहतर रहा था। इन खेलों में राष्ट्रकुल देशों से अलग जो एशिया के देश हैं, वह बहुत मजबूत हैं। इसलिए जकार्ता में भारत के लिए मुकाबला आसान नहीं है। लेकिन यह भी दिलचस्प है कि एशियाई खेलों में जो भारत का अब तक सबसे अच्छा प्रदर्शन रहा है, वह 2010 में उस समय आया था जब उसने 2010 के दिल्ली राष्ट्रकुल खेलों में शानदार प्रदर्शन करते हुए दूसरा स्थान व 101 पदक हासिल किये थे। इसलिए गोल्ड कोस्ट का अच्छा प्रदर्शन जकार्ता में जारी रहने की संभावना है। बहरहाल, एशियाई खेल महत्वपूर्ण होने के बावजूद अब आर्थिक बोझ बनते जा रहे हैं। वह ओलंपिक की तरह नहीं हैं कि आयोजक देश को मुनाफा हो। इसलिए 18वें देश के मूल मेजबान हनोई ने मेजबानी से अपना हाथ खींच लिया जब वियतनाम सरकार को एहसास हुआ कि आर्थिक बोझ इतना अधिक होगा कि वह स्पांसरशिप व पर्यटकों से पूरा नहीं हो पायेगा। इसलिए जकार्ता व पलेमबंग को ओलंपिक काऊंसिल ऑफ  एशिया ने मेजबानी के अधिकार दिए। यह खेल 2019 में होने थे, लेकिन इंडोनेशिया के आम चुनावों को देखते हुए, जो अगले वर्ष होने हैं, इन खेलों को 2018 के लिए निर्धारित कर दिया गया। ध्यान रहे कि 1949 में स्थापित एशियन गेम्स फैडरेशन ने एशियन गेम्स का आयोजन 1982 तक किया और इसके बाद से यह काम ओलंपिक काऊंसिल ऑफ  एशिया कर रही है।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर