तपोभूमि ऋषिकेश

यह पवित्र नगरी सुप्रसिद्ध दर्शनीय  स्थल हरिद्वार से चौबीस किलोमीटर दूर उत्तर में गंगा नदी के किनारे स्थित है। इसके चारों ओर विशाल पर्वत तथा वन हैं। गंगा नदी के उस पार वाले जंगल में शेर, चीते, हाथी, भेड़िये जैसे खतरनाक जानवरों के अलावा हिरन, चीतल, नील गाय, बारहसिंघा जैसे शांत स्वभाव वाले जानवर भी हैं। कभी-कभी गंगा नदी के पार जल-क्रीड़ा करते हाथियों का झुण्ड दिखाई दे जाता है।
ऋषिकेश उत्तराखण्ड तथा चारों धाम बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री तथा यमुनोत्री की यात्रा का प्रथम चरण है। चन्द्रभागा नदी के किनारे स्थित टिहरी बस अड्डे से गढ़वाल में स्थित किसी भी स्थान के लिए बस मिल जाती है। इन बसों का किराया मैदानी भागों में चलने वाली बसों के किराये से कुछ अधिक होता है। हरे-भरे जंगलों से घिरा यह नगर किसी समय ऋषि-मुनियों का स्वर्ग हुआ करता था। पुरातन काल से ही ऋषि-मुनि इस शांत स्थान पर तप करने के लिए आते रहे हैं। भगवान श्री राम, लक्ष्मण, तथा भरत जैसे अनेक राजा भी यहीं पर तप करने के लिए आए थे। इतना ही नहीं, मध्य काल में संत भी शांति की कामना से यहां आते रहे हैं। इससे सहज ही यह अनुमान लगाया जा सकता है कि ऋषि-मुनियों के लिए यह नगरी कितना महत्व रखती है। समय के साथ-साथ विज्ञान की भी उन्नति होती गई और इसका परिणाम यह निकला कि जिन स्थानों पर जाने के लिए किसी समय सर पर कफन बांध कर चलना पड़ता था, आज वहां बिना किसी भय के आया-जाया जा रहा है। वैसे तो यहां की भाषा हिन्दी है, परन्तु पहाड़ों पर रहने वाले लोगों के यहां बस जाने के कारण एक चौथाई गढ़वाली भी बोलते हैं। कहा जाता है कि किसी समय रैभ्य नामक महर्षि अपनी इंद्रियों को वशीभूत करके यहां तपस्या करते थे। इस कारण इस स्थान को ऋषिकेश पुकारा जाता है। इस संदर्भ में यहां कथा प्रसिद्ध है कि एक बार भगवान विष्णु ने रैभ्य ऋषि को आम की शाखा पर बैठे हुए दर्शन दिए। फलस्वरूप भगवान विष्णु के भार से आम की शाखा ‘कुब्जा’ हो गई अर्थात् झुक गई। तभी से इसका दूसरा नाम ‘कुब्जावक्र’ भी है। केवल ऋषिकेश तक ही गंगा नदी प्रदूषण रहित है। इसके बाद यह प्रदूषित होना शुरू हो जाती है। हरिद्वार में बहुत अधिक संख्या में लोग गंगा में स्नान करते हैं तथा साबुन से कपड़े धोते हैं। इसके अलावा झुग्गी-झोंपड़ियों में रहने वाले लोग गंगा नदी के किनारे मल इत्यादि करते हैं जिसके कारण गंगा नदी की स्वच्छता धूमिल पड़ने लगी है। आगे जाने पर कारखानों से निकलने वाली गंदगी भी इसमें मिलने लगती है। एक तरह से यह भी माना जा सकता है कि ऋषिकेश तक ही गंगा नदी की स्वच्छता की सीमा है। ऋषिकेश में यातायात का प्रमुख साधन तीन पहियों से चलने वाला विक्रम है। इससे पहले घोड़ा-तांगा यहां की प्रमुख सवारी हुआ करता था। आधुनिक युग में समय बचाने के लिए लोग विक्रम में बैठना अधिक पसंद करते हैं। पुराने बाज़ार के मध्य गंगा नदी के किनारे प्राचीन भरत मंदिर है जिसकी बनावट बौद्ध मंदिरों के समान है। यहां पर बसंत पंचमी के अवसर पर भारी मेला लगता है। कुछ साल पहले खुदाई के दौरान यहां से प्राचीन मूर्तियां मिली थीं। गंगा, यमुना तथा सरस्वती तीनों नदियों का जल त्रिवेणी के रूप में बहता है। त्रिवेणी के किनारे प्रसिद्ध त्रिवेणी घाट है। दशहरे के अवसर पर यहीं रावण दहन किया जाता है। इस घाट के आस-पास छोटे-छोटे अनेक मंदिर हैं। ऋषिकेश से बद्रीनाथ जाने वाले मार्ग पर ऋषिकेश से चार किलोमीटर दूर लक्ष्मण झूला व राम झूला नामक प्रसिद्ध पुल हैं। इसके ठीक सामने चौदह मंजिला कैलाश आश्रम है। लक्ष्मण झूला से एक किलोमीटर वापस लौटने पर गीता भवन, स्वर्गाश्रम, परमार्थ निकेतन तथा शिवानंद आश्रम हैं। यहां देशी घी की पूरियां तथा मिठाइयां मिलती हैं। ऋषिकेश ऋषि-मुनियों के साथ-साथ मंदिरों की भी नगरी है। गर्मियों में यहां यात्रियों की भरमार रहती है। यहां आकर त्रिवेणी में स्नान करके लोग अपने आपको पवित्र महसूस करते हैं। 


— रवि कुमार वर्मा