सर्वोच्च् न्यायालय का एक अच्छा फैसला

सर्वोच्च न्यायालय के फैसलों को भविष्य में अंग्रेज़ी मूल से हिन्दी में अनुवाद कराये जाने का फैसला नि:संदेह न्यायिक  इतिहास-पथ पर एक आयाम स्थापित होने जैसा है। देश की अदालतों में आज़ादी के बाद से अब तक अंग्रेज़ी में ही सारा कामकाज सम्पन्न होता आया है। किस्सा यह भी कि अंग्रेज़ी फैसलों की घोषणा करते समय भी उनमें अरबी-फारसी के अनेक ऐसे शब्द होते हैं जिनके अर्थ कई बार बड़े-बड़े विद्वानों के सर के ऊपर से भी गुज़र जाते हैं। इस कारण ग्रामीण परिवेश और शहरी क्षेत्रों के कम पढ़े-लिखे लोगों के लिए ये फैसले उसी सीमा तक रह जाते हैं जितना कि उनके वकील उन्हें समझाते हैं, और वकीलों के पास अपने गरीब एवं साधारण मुवक्किलों के लिए कितना समय और कैसा व्यवहार होता है, इसे लेकर किसी को कुछ बताने की कोई आवश्यकता नहीं है। इस स्थिति के सर्व-व्यापक होने के कारण प्राय: पूरे राष्ट्र में आम, गरीब और खास कर कम पढ़े-लिखे अथवा अनपढ़ लोगों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ता था। इस के दृष्टिगत प्राय: देश के अधिकतर प्रांतों के सामान्य नागरिक संगठनों एवं निजी स्तर पर लोगों की ओर से यह मांग की जाती रही है कि अदालती फैसलों की प्रतियां अंग्रेज़ी के साथ हिन्दी में और खास तौर पर प्रांतीय/क्षेत्रीय भाषाओं में भी अनुवाद की जानी चाहिएं। इस एक मामले को लेकर कई बार भिन्न-भिन्न पक्षों की ओर से अनुरोध भी किये गये तथा न्यायपालिका क्षेत्रों और भिन्न-भिन्न वर्गों की ओर से ज्ञापन-अभियान भी चलाये गये, परन्तु सभी कुछ निष्फल और निष्प्रभावी रहा। पंजाब में अदालती कामकाज में पंजाबी भाषा का इस्तेमाल किए जाने की मांग कई बार उठाई जाती रही है, परन्तु परिणाम यहां भी कुछ नहीं निकला। विगत सत्तर वर्षों से जारी इस प्रथा का सर्वाधिक नुक्सान और आर्थिक शोषण गरीब किसान-मज़दूर वर्ग का होता रहा है। अब सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई ने एकाएक यह फैसला करके जन-साधारण में न्यायपालिका की छवि एवं प्रतिष्ठा को और बढ़ाया है। जस्टिस गोगोई ने अभी एक मास पूर्व ही, तीन अक्तूबर को अपने पद की शपथ ली थी और  इस बीच उनका यह अहम फैसला देश और समाज के सभी वर्गों की आशाओं, आकांक्षाओं को छू गया है। बेशक अभी यह फैसला हिन्दी अनुवाद तक ही सीमित है, परन्तु क्षेत्रीय अथवा राज्यों की प्रांतीय और मातृ-भाषाओं तक इसकी पहुंच शीघ्र हो जाने की उम्मीद बंधती है। इसी कारण अधिकतर इस फैसले का देश और समाज के सभी वर्गों द्वारा स्वागत ही किया जा रहा है। सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले में यह भी कहा गया है कि थोड़े-थोड़े समय अन्तराल के भीतर भिन्न-भिन्न राज्यों के लोगों की मातृ भाषा अथवा क्षेत्रों की क्षेत्रीय भाषाओं में अनुवाद की धीरे-धीरे व्यवस्था की जाएगी। अदालत ने इसे न्याय को अधिकाधिक लोगों तक इसकी मूल भावना के साथ पहुंचाये जाने का एक प्रयास करार दिया है। इसके हेतु एक थिंक टैंक बनाने का भी प्रस्ताव है जो अदालतों के अहम फैसलों के अनुवाद और उनके संक्षिप्तीकरण पर नज़र रखेगा। सर्वोच्च अदालत ने यह भी तर्क दिया है कि प्राय: बड़े-बड़े पन्नों पर लिखे गये लम्बे-लम्बे फैसले आम लोग समझ ही नहीं पाते। इसी कारण ऐसे बड़े फैसलों को दो-तीन पृष्ठ तक संक्षिप्त करने की तर्क-संगत व्यवस्था भी की जाएगी।  सर्वोच्च न्यायालय का यह फैसला कई पर्क्षों से अहम होने की कूवत रखता है। सबसे बड़ी बात यह कि अदालती न्याय को कतार के अंतिम शख्स तक पहुंचाया जा सकेगा। इसके साथ ही न्याय मिलने में देरी की सम्भावना कम होगी। हम समझते हैं कि मुख्य न्यायाधीश ने पद सम्भालने के एक मास के भीतर ही इतना महत्त्वपूर्ण फैसला करके न्यायिक इतिहास में एक उपलब्धि दर्ज की है। यह फैसला लेने वाली पीठ में मुख्य न्यायाधीश के साथ जस्टिस एस.ए. बोबडे भी शामिल थे।  यह फैसला भविष्य में कई अन्य फैसलों हेतु नज़ीर की भांति सिद्ध होगा। इसके अतिरिक्त अदालतों में तत्काल और त्वरित फैसले लेने हेतु यह एक उदाहरण भी सिद्ध होगा। इस फैसले का नि:संदेह स्वागत किया जाना चाहिए।