कैप्टन साहिब करतारपुर गलियारे में बाधा न डालो

पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह ने अब एक बार फिर यह बयान दिया है कि करतारपुर गलियारा के मामले में पाकिस्तान की सेना ने बड़ी साज़िश रची है और यह भी कि करतारपुर गलियारा खोलना निश्चित तौर पर आई.एस.आई. (पाकिस्तान की खुफिया एजैंसी) की योजना का हिस्सा है और यह भी कि पाकिस्तान की सेना ने भारत के खिल़ाफ एक बड़ी साज़िश रची है। ऐसा बयान देकर कैप्टन साहिब ने अपनी तैयार तयशुदा नीति के तहत करतारपुर गलियारा खोलने संबंधी अपनी नकारात्मक सोच को और आगे बढ़ाया है। उनकी ऐसी नाकारात्मक नीयत व नीति उस समय भी स्पष्ट हो गई थी जब भारत सरकार की करतारपुर साहिब के गलियारे संबंधी विनय को स्वीकार करते हुए पाकिस्तान की हुकूमत ने तुरंत सकारात्मक प्रत्युत्तर दिया था। यहीं बस नहीं, पाकिस्तान के नए चुने गए प्रधानमंत्री ने उस समय यह भी घोषणा की थी कि वह 28 नवम्बर को अपने क्षेत्र से इस गलियारे के लिए बनने वाली सड़क का शिलान्यास करेंगे। इस अवसर पर उन्होंने भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के अलावा मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह व क्रिकेट के अपने समय के अपने मित्र नवजोत सिंह सिद्धू को भी निमंत्रण भेजा था। कैप्टन साहिब ने यह बयान देकर यह निमंत्रण पत्र स्वीकार करने से इन्कार कर दिया था कि आतंकवादी कार्रवाइयों के चलते व भारतीय जवानों को पाकिस्तानी सैनिकों द्वारा मारे जाने की घटनाएं होने के कारण वह यह निमंत्रण स्वीकार नहीं करेंगे। दूसरी ओर इसी अवसर पर भारतीय सेना के प्रमुख जनरल रावत ने ये बयान दिए थे कि करतारपुर के गलियारा खोलने को भारत-पाकिस्तान संबंधों के किसी और पहलू के साथ नहीं जोड़ा जाना चाहिए। इमरान खान ने गलियारे का शिलान्यास करते हुए इन भावनाओं का इज़हार किया था कि वह भारत के साथ अमन व दोस्ती के साथ रहने को प्राथमिकता देते हैं और भविष्य में वह इस दिशा में और कदम उठाते रहेंगे। उन्होंने इस गलियारा को दोनों देशाें में बनने वाली सांझ भी करार दिया था। विश्वभर में करोड़ोें श्रद्धालुओं ने यह गलियारा खोले जाने की उम्मीद में वाहेगुरु का शुकराना भी किया था। अपने बिछुड़े इस प्यारे गुरुधाम के दर्शन-दीदार करने के लिए वे पिछले 70 वर्ष से उम्मीद लगाए बैठे थे और तड़प रहे थे। अपने बिछुड़े गुरुधामों के खुले दर्शन-दीदार संबंधी अरदास में पहले पातशाह श्री गुरु नानक देव जी से संबंधित पवित्र स्थान विशेष तौर पर शामिल थे। इसलिए यह गलियारा खोलने हेतु सहमति देने के लिए वह पाकिस्तान की नई चुनी गई सरकार के कोटि-कोटि धन्यवादी थे परंतु शायद भारत मेें कुछ तत्वों को अपने निजी स्वार्थों के दृष्टिगत यह बात रास नहीं थी आ रही थी। इसी लिए जिस दिन से इस गलियारा का शिलान्यास हुआ, उसी दिन से ही वे किसी न किसी तरह इसे न खुलने देने या इसमें बाधा डालने के प्रयास करते रहे हैं। इसलिए ऊपर से लेकर नीचे तक साज़िशें रची गई प्रतीत होती हैं, क्योंकि इसके बाद ही कई केन्द्रीय नेताआें, सेना के प्रमुखों व पंजाब के उच्च व कुछ अन्य राजनीतिज्ञाें के ऐसे बयान आने शुरू हो गए थे, जिनमें से ऊपर से लेकर नीचे तक अपनाई गई इस सोच की स्पष्ट झलक दिखाई देती है। शायद कैप्टन अमरेन्द्र सिंह को यह बात भूल गई है कि पाकिस्तान द्वारा भारत में ट्रेनिंग व हथियार देकर आतंकवादियों को प्रवेश करने की नीति सीधे रूप में जनरल ज़िया-उल-हक के पाकिस्तान के सेना प्रमुख बनने के समय वर्ष 1978 में शुरू हुई थी। उसी समय से ही दोनाें देशाें की सेनाओं में सीमा पर टकराव चलते आ रहे हैं, जिनमें दोनाें देशाें के सैनिक व नागरिक मारे जाते रहे हैं। हम कैप्टन साहिब को इस बात की भी याद दिलाना चाहते हैं कि भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 18 फरवरी, 1999 को लाहौर की ऐतिहासिक बस यात्रा की थी परंतु उसके बाद उसी वर्ष मई महीने में पाकिस्तानी सेना के प्रमुख परवेज़ मुशर्रफ ने कारगिल युद्ध की शुरुआत की थी जिसके दौरान भारत के 530 के करीब बहादुर जवान शहीद हुए थे और 1300 के लगभग गम्भीर रूप में घायल हुए थे। उसके बाद इस पूरे रक्तिम घटनाक्रम व सीमाओं पर बने रहे तनाव के बाद कैप्टन अमरेन्द्र सिंह 2002 में पहली बार पंजाब के मुख्यमंत्री बने थे। अपने पांच वर्षों के कार्यकाल के दौरान उनके पाकिस्तान में अनेक दोस्त बने थे, जिनमें उस समय के पश्चिम पंजाब के मुख्यमंत्री परवेज़ इलाही  भी शामिल थे। उस समय वह कारगिल युद्ध के रचयिता व पाकिस्तान के तानाशाह परवेज़ मुशर्रफ को भी मिल कर आए थे।  क्या उस समय उन्हें सीमाओं पर शहादतें प्राप्त कर रहे सैनिकों की याद नहीं आई थी? क्या उस समय उन्हें कारगिल में बलिदान हुए अपने सैकड़ों जवान भूल गए थे? यदि ऐसा नहीं था तो पाकिस्तान की धरती पर जा कर उन्होंने वहां के प्रमुख लोगों के साथ अपनी दोस्ती को और गहरा क्यों किया? वहां वह बढ़िया नसल के घोड़े व अन्य स़ौगातें लेकर क्यों आए? भारत व पाकिस्तान की सरकारों में पिछले लम्बे अरसे के दौरान अनेक बार सरकारी स्तर पर मुलाकातें होती रही हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बिन बुलाए पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ को एक पारिवारिक समारोह में बधाई देने के लिए लाहौर चले गए थे। इससे पहले दिल्ली में अपने शपथ ग्रहण समारोह पर उन्होंने नवाज़ शरीफ को भी बुलाया था और उनका यहां भव्य स्वागत भी किया गया था। शायद देश के सत्ताधारियों द्वारा समय के साथ ऐसी बातों को भूल जाने में ही बेहतरी समझी जाती है। शायद कैप्टन साहिब की पाकिस्तान की दोस्तियां अब सीमाओं  पर हालात के कारण दुश्मनी में बदल गई हों, परंतु हमारा उनकी ऐसी बातों के साथ कोई वास्ता नहीं है। हम तो उन्हें यही अपील कर सकते हैं कि वह  करतारपुर गलियारा के संबंध में अपनाई गई अपनी इस नकारात्मक सोच को बयानों में न बदलें। शायद उनके द्वारा चुप रहना ही करतारपुर गलियारा का सबब बन जाए। हम यहां उन्हें यह भी स्पष्ट करना चाहते हैं कि समूह पंजाबियों व विशेषकर सिख भाईचारे ने देश के लिए हर संकट समय आगे होकर कुर्बानियां दी हैं। करतारपुर गलियारा मिलने में बाधा डालकर उनकी देशभक्ति पर सवाल नहीं उठाने चाहिएं। यदि उनके द्वारा भविष्य में इस बेहद महत्वपूर्ण मसले पर ऐसी नीति जारी रखी गई तो लोग उन्हें इस बात के लिए कभी माफ नहीं करेंगे।

-बरजिन्दर सिंह हमदर्द