क्या आप जानते हैं ? ग्लूकोज

जब कभी हमारे शरीर में पानी की कमी हो जाती है या गला बार-बार सूखने लगता है, तो ऐसी स्थिति में अधिकांश डॉक्टर ग्लूकोज पीने की सलाह देते हैं। ग्लूकोज के इस्तेमाल से शरीर में सचमुच स्फूर्ति व ताकत का संचार होता है। आज के युग में दुनिया भर में ग्लूकोज बनाने वाली कई कंपनियां फैली हुई हैं। कुछ देशों में ग्लूकोज अनानास, सेब, नींबू, नारंगी, मौसमी आदि से भी बनाया जाता है। चिकित्सा के क्षेत्र में ग्लूकोज का एक अलग ही महत्व है। कभी-कभी यह व्यक्ति के लिए अमृत का काम भी कर रहा है। अंगूर से बना ग्लूकोज काफी महंगा होता है। कई खोजों की तरह ग्लूकोज की खोज भी अनायास ही हुई है। बनाया क्या था और बन क्या गया और जो बना वह भी ग्लूकोज नाम से दुनिया में पहचाना गया। आज से करीबन 180 साल पूर्व फ्रांस केनीस शहर में किरीचीफ नेफर्स नामक एक वैज्ञानिक रहा करता था। एक दिन वह अपनी प्रयोगशाला में बैठा था कि अचानक उसे ध्यान आया कि उसे अपनी मंगेतर को प्रेमपत्र लिखना है। पत्र लिखकर उसने लिफाफे में रख लिया, लेकिन लिफाफा एवं टिकट चिपकाने के लिए गोंद की जरूरत पड़ी। आसपास जब गोंद न मिला तो उसने स्टार्च को शुष्क अवस्था में सल्फयूरिक अम्ल के साथ तेज आंच पर उबाला। जब वह पूर्ण रूप से उबल गया तो डिश में जो विलयन बचा था, उसमें गोंद का गुण तो था परंतु वह शर्करा के साथ विलयन की तरह मीठा अवश्य था। आयोडीन परीक्षण से विदित हुआ कि विलयन का सारा स्टार्च शर्कता में परिणति हो गया था। हां, फिर वैज्ञानिकों के दिमाग में एक बात घर कर बैठी कि शर्करा का सही तरह से परीक्षण किया जाए तो एक नई चीज दुनिया के सामने आ सकती है। रात-दिन मेहनत कर स्टार्च से शर्करा प्राप्त कर उसने उसे ग्लूकोज नाम दिया। इस वैज्ञानिक की विधि के आधार पर एक कंपनी ने नीस शहर में ग्लूकोज बनाने का पहला कारखाना सन 1882 में खोला। जिसे अपने उद्योग में बहुत बड़ी सफलता मिली। मेडिकल क्षेत्र में ग्लूकोज की खोज से रोगियों को भी आराम मिलने लगा। इसके बाद तो दुनिया के कोने-कोने से स्टार्च से ग्लूकोज बनाने के कई कारखाने खुल गए।