अब ब्रिटिश यूनिवर्सिटियां भारतीय विद्यार्थियों को बड़ी संख्या में दे सकती हैं दाखिला

लैस्टर (इंग्लैंड), 7 जनवरी (सुखजिंदर सिंह ढड्डे) : इंग्लैंड में पढ़ाई करने के लिए आने वाले भारतीय विद्यार्थियों के लिए वर्ष 2019 एक नई आशा की किरन लेकर आया है, इंग्लैंड में पढ़ने की इच्छा रखने वाले भारतीय विद्यार्थियों के लिए यह एक बहुत ही अच्छी खबर है, कि ब्रिटेन में ब्रैगज़िट के बाद फंड की कमी को लेकर भयभीत कुछ प्रमुख यूनिवर्सिटियां अब बड़ी संख्या में विदेशी विद्यार्थियों को दाखिले दे सकती हैं। ऐसे में सबसे ज्यादातर भारतीय व चीन के विद्यार्थियों को दाखिला मिलने की आशा है। ब्रैगज़िट का अर्थ ब्रिटेन का यूरोपीय यूनियन से बाहर निकलना है। विदेशों से आने वाले विद्यार्थी स्थानीय विद्यार्थियों के मुकाबले बहुत ज्यादा फीस देते हैं। यूनिवर्सिटी प्रमुखों को उम्मीद है कि भारत और चीन के विद्यार्थी ब्रिटिश विद्यार्थियों के मुकाबले बड़ी संख्या में दाखिला ले सकते हैं। इस संबंधी ग्लासगो यूनिवर्सिटी के कुलपति और रसेल ग्रुप के प्रधान एंटोन मैस्केला द्वारा एक मीडिया रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रमुख यूनिवर्सिटियां अब अन्य विदेसी विद्यार्थियों को दाखिला देने की कोशिश कर सकती है। वह ब्रैगज़िट के बाद सामने आने वाले वित्तीय चुनौतियों से निपटने के लिए कर सकती हैं। मैस्केला यू.के,. के 24 प्रमुख संस्थानों का प्रतिनिधित्व करते हैं। वह ग्लासगो यूनिवर्सिटी में यूरोपीय यूनियन और विदेशी विद्यार्थियों के अनुपात को बढ़ा कर कुल आधा करने में विचार कर रहे हैं। रिपोर्ट के अनुसार ब्रिटेन यदि बिना किसी समझौते के यूरोपीय यूनियन से बाहर हो जाता है तो ब्रिटेन का उच्च शिक्षा क्षेत्र गंभीर समस्याओं का सामना करेगा। यूनिवर्सिटी के प्रमुखों का कहना है कि यह खतरनाक होगा। यूरोपीय यूनियन द्वारा खोज के लिए दिए जाने वाले 1.3 अरब पौंड का वित्तपोषण बंद हो जाएगा और साथ ही यूरोपीय यूनियन के विद्यार्थियों की संख्या में गिरावट आएगी। इसके अतिरिक्त उम्मीद है कि फीस कम करने के लिए यूनिवर्सिटी ब्रिटिश में ग्रैजुएटों से वार्षिक 6500 पौंड से कम फीस लेगी। वर्णनीय है कि प्रमुख यूनिवर्सिटियों में विदेशी विद्यार्थी 5 वर्ष की मैडीकल डिग्री के लिए हर वर्ष 30,000 पौंड से अधिक की अदायगी करते हैं जबकि स्थानीय विद्यार्थियों के मुकाबले में 4 गुणा अधिक है।