2019/पर्यावरण कुछ करना होगा, नहीं तो मरना होगा

तमाम चेतावनियों के बावजूद दुनिया भर की सरकारें नहीं संभली और पिछली एक चौथाई सदी में धरती का करीब एक चौथाई हिस्सा बंजर हो गया। यह धरती अब इससे ज्यादा बंजर बर्दाश्त नहीं कर सकती; क्योंकि धरती का बड़ा हिस्सा कुदरती रूप में ही बंजर है और इस तरह इंसानों की बेवकूफी से भी बंजर का बढ़ते जाना किसी भयावह हादसे से भी ज्यादा खतरनाक है। शायद यही वजह है कि 25-26 फ रवरी 2019 को लंदन में होने वाली स्वायल माइक्रो बायोलॉजी, इकोलोजी एंड बायोकैमेस्ट्री में मुख्य विषय यह रखा गया है कि सरकारें टारगेट बताएं वो अगले कितने दिनों में क्या करेंगी? समस्या पर दुख न व्यक्त करें। साल 2019 में बिगड़ते मौसम और जलवायु और प्रदूषण को लेकर जितने ज्यादा विश्व स्तर पर कार्यक्रम हो रहे हैं, उतने शायद ही इतिहास में पहले कभी हुए हों। साल में कोई ऐसा महीना नहीं है जब दुनिया के किसी महत्वपूर्ण शहर में जलवायु और पर्यावरण को लेकर कोई गंभीर आयोजन न किया जा रहा हो और ये सब के सब आयोजन महज एकेडमिक विद्वानों के विद्युता बखान वाले कार्यक्रम नहीं होंगे, बल्कि इन सभी कार्यक्रमों को ठोस और नतीजापरक बनाये जाने की पूरी सजग कोशिश की गई है। मार्च 2019 में 4-5 मार्च को इंडोनेशिया के बाली द्वीप में ‘क्लाइमेट चेंज एंड मेडिकल एंटोमोलोजी’ पर 8वीं इंटरनेशनल कॉन्फ्रेस हो रही है और इस कॉन्फ्रेंस में भी ज्यादातर जोर इसी बात पर है कि क्लाइमेट चेंज के अनुमानों को न व्यक्त किया जाए, बल्कि उसे बचाने के लिए क्या कुछ संभव है उसे जितना जल्दी हो किया जाए। दरअसल ये बात नहीं है कि दुनिया को बिगड़ते पर्यावरण की समझ नहीं है। अगर पिछले 3 दशकों से लगातार पर्यावरण बिगड़ रहा है तो यह भी सही बात है कि लगातार इसकी समझ वैज्ञानिकों को भी और सरकारों को भी है। मगर हर कोई दूसरे को उपदेश दे रहा है, इस वजह से सारी समझ होने के बावजूद दिन पर दिन धरती रहने लायक नहीं बच रही। भारत में हालांकि विश्व पर्यावरण को लेकर कोई बड़ा अंतर्राष्ट्रीय कार्यक्रम होने नहीं जा रहा, लेकिन क्षेत्रीय स्तर के और अखिल भारतीय स्तर के 200 से ज्यादा पर्यावरण संबंधी कार्यक्रम इस साल हिंदुस्तान में आयोजित हो रहे हैं। इसके साथ ही भारत आधिकारिक रूप में दुनिया के ज्यादातर बड़े और सरकारी कार्यक्रमों में सरकार के स्तर पर शामिल हो रहा है, जिससे साफ  पता चलता है कि पर्यावरण को लेकर दुनिया की चिंताओं के साथ ही भारत भी बेहद चिंतित है। कुल मिलाकर यह साल बिगड़ते पर्यावरण को बचाने की होने जा रही तमाम कोशिशों के प्रति आश्वस्त करता है और संभावनाएं जगाता है कि समय रहते दुनिया जाग जायेगी जिससे धरती में कम से कम बिगड़ते पर्यावरण के कारण प्रलय नहीं आयेगी।

-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर