चार हज़ार साल पहले भी थे ताले

आज पूरी दुनिया तालों से परिचित है और घर से बाहर जाने के पहले लोग दरवाजे पर ताला लगाना नहीं भूलते। ताले को लोग उन दराजों, अलमारियों आदि में भी लगवाते हैं जिसके अंदर रखे सामान को वह सुरक्षित करना चाहते हैं। आज तमाम कंपनियां तरह-तरह के ताले बना रही हैं व दावा करती हैं कि उनके ताले खोले जा सकते हैं तो सिर्फ  उन्हीं की चाभी से। पर शायद ताला तोड़कर चोरी करने वाले इन कंपनियों के दावों को भी झुठला देते हैं। ताला मनुष्य की सबसे पुरानी खोजों में से एक है। हर प्राचीन पुस्तक व लेख में इनका उल्लेख हुआ है व मिस्त्र में जो ताले बनते थे उन्हें प्राचीनतम ताला कहा जाता था। आश्चर्य की बात है कि यह ताले काफी विशाल होते थे और लकड़ी से बनाये जाते थे। प्राचीन मिस्त्र में 4000 वर्ष पूर्व भी तालों का प्रयोग होता था। यह प्राचीन ताले टम्बलर पर आधरित होते थे जिसमें कई टम्बलर अथवा पिनें दरवाजों के बगल में स्थिति गुटकों में लगी रहती थीं। हीबू तथा यूनानी लोग तालों को खोलने के लिए जिन चाभियों का प्रयोग करते थे वे हंसिये के आकार की होती थी। आज भी कई घरों के दरवाजों के भीतर लगे लोहे या लकड़ी के टुकड़े से दरवाजे को बंद किया जाता है व इन्हें बाहर से खोलने के लिए लकड़ी या लोहे की हंसियादार चाभी होती है जिन्हें छेद में डालकर चाभी में घुमाने से लकड़ी का टुकड़ा ऊपर की ओर उठ जाता है और दरवाजा खुल जाता है। प्राचीन काल में मिस्त्र ने ही ताला बनाने में काफी दक्षता हासिल की थी। रोमन सभ्यता में भी कई तरह के तालों और चाभियों को बनाया गया। रोमन लोगों ने मिस्त्र की पिन  पर आधरित तथा यूनान के हंसियाकार चाभी वाले तालों को मिलाकर ताले भी बनाये जिन्हें खोलना खासा मुश्किल था। उत्तर-पूर्वी इटली में बसी सभ्यता के एस्ट्रस्कन लोगों ने ऐसे तालों में लगने वाली चाभियां ताले के भीतर जाकर घूम सकने में सक्षम थीं व घूमने के कारण ताले के भीतर स्थित टम्बलर या पिनें तालें के भीतर बने खांचों में फंस जाती थीं व ताला बंद हो जाता था। पांचवीं शताब्दी में जब पश्चिमी रोमन साम्राज्य का पतन हो गया था व बाहरी आक्रमणों से लोग त्रास्त हो गये थे। सभी को अपने सामान की सुरक्षा के लिए तालों की आवश्यकता महसूस हुई। इंग्लैंड में सबसे पहले तालों का निर्माण सम्राट एल्रेड महान के शासनकाल 871-899 में शुरु हुआ। ये ताले तकनीक की दृष्टि से ज्यादा अच्छे नहीं बने होते थे। वह काफी बाद में ही यानि 18 वीं शताब्दी के अंतिम वर्षों में ही अच्छे तथा मजबूत तालों का निर्माण शुरु हुआ। 1785 में रॉबर्ट बैरन ने तीवर टम्बलर पर आधरित ताले बनाये। इसके बाद कई और लोगों ने भी तालों का निर्माण किया था पर सभी को आसानी से खोला जा सकता था इसलिए लोगों के बीच वह लोकप्रिय न हो सके। इसके बाद लायनेस येल नाम के एक चित्राकार ने ताले बनाये। येल ने इसके बाद डॉयल लॉक भी बनाये जो तिजोरियों में लगाये जाते थे। 1860-64 के बीच उन्होंने चाभी से बंद होने वाले पिन टम्बलर नाम से पुकारा जाता था। इनके लिए खोखली चाभियों की जगह चिपटी चाभियां इस्तेमाल में लायी जाती थीं। यह ताले खोलने व बंद करने में आसान तो थे ही, इनको बनाना ज्यादा मुश्किल भी न था इसलिए जल्दी ही हाथ की बजाए मशीनों से ताले बनने लगे। आज ऐसे ताले भी बन रहे हैं जो अपने मालिक की आवाज को पहचानते हैं व आवाज में निर्देश देते ही खुल जाते हैं। (सुमन सागर)

-रोमी शीराज