फेसबुक का जन्मदाता मार्क जुकरबर्ग


आज की सामाजिक ज़िंदगी में सम्पर्कता के लिहाज़ से अपनी सीमा को छू रही है। इसमें ‘फेसबुक’ का जितना बड़ा योगदान है, उतना शायद किसी और गतिविधि का नहीं है। इसके माध्यम से लोग आपस में जुड़े रहते हैं, अपनी यादों को सांझा करते हैं, अपनी भावनाओं को प्रसारित करते हैं। इसके बाद पसंद और टिप्पणियों का दौर शुरू होता है। यह सब कुछ बड़ा ही दिलचस्प और रोमांचक है। इसके बहुत सारे सकारात्मक पक्ष हैं। लेकिन कल्पना करो कि एक नौजवान मार्क जुकरबर्ग (14 मई, 1984) ने इस बात का सपना न देखा होता तो आज पूरी दुनिया इससे वंचित रह जाती। मार्क ने अपने सपने फेसबुक को साकार करने के लिए बहुत संघर्ष किया। जिस अनुपात में मार्क जुकरबर्ग की लोकप्रियता बढ़ी थी, उसी अनुपात में उसके विरुद्ध और विवाद भी खड़े होते जा रहे हैं। कई तरह के कानूनी मुकद्दमे फेसबुक के खिलाफ अदालतों में विचाराधीन थे। इनमें से सबसे पहले पहला मुकद्दमा तो तब ही लगाया गया था जब फेसबुक की उम्र सिर्फ 6 दिन की थी। यह आरोप फेसबुक की योजना पर मार्क के साथ आए पुराने साथियों की ओर से लगाये गये थे। विंकलवास बंधू और दिव्य नरेन्द्र जो एक समय पहले हार्बर्ड कुनैक्शन की योजना में मार्क का साथ दे रहे थे और विचारों के मतभेद होने के कारण अलग-अलग हो गए थे, ने मार्क जुकरबर्ग पर यह दोष लगाया कि उसने फेसबुक की योजना को हार्बर्ड कुनैक्शन की योजना से चुराया था। फेसबुक में जिस तकनीक और सॉफ्टवेयर का प्रयोग हुआ है, वह एक सांझी योजना थी। शुरू में मार्क जुकरबर्ग ने इस दोष के प्रति कोई ध्यान नहीं दिया। बेशक यह विवाद चर्चा का विषय बन गया कि फेसबुक का असली निर्माता कौन है। कुछ लोगों ने इस सॉफ्टवेयर का असली प्रड्यूसर भारतीय मूल के दिव्य नरेन्द्र को ही माना। खुद दिव्य नरेन्द्र ने हाबर्ड क्रिमिशन अखबार में यह दावा किया था। विंकल वास बंधु भी दिव्य नरेन्द्र के साथ आ गया। उन्होंने यह स्पष्ट कहा कि उन्होंने ही सबसे पहले हार्बर्ड कुनैक्शन के नाम से इस साइट का विचार बनाया था, लेकिन बाद में मार्क जुकरबर्ग की तकनीकी योग्यताओं से प्रभावित होकर उनको सहयोगी के रूप में इस प्रोजैक्ट में शामिल किया गया था। यह मुकद्दमा मीडिया में खूब छाया रहा, लेकिन मार्क  अपने काम की ओर ध्यान देता रहा और सफलता की सीढ़ियां चढ़ता रहा। उसने ऐसे विवादों से बचने के लिए समझौते का रास्ता चुना और नाराज़ साथियों को साढ़े छ: करोड़ डॉलर की भारी रकम देकर इस विवाद को खत्म किया। दिव्य नरेन्द्र इस रकम से संतुष्ट नहीं थे, क्योंकि आज फेसबुक आई.टी. क्षेत्र में सोने की खान है और अकेले जुकरबर्ग को उसका मालिक माना जाता है, जोकि उसको मंजूर नहीं था, लेकिन समझौता हो गया था। कुछ लोगों के उकसाने पर दिव्य नरेन्द्र ने फिर से अदालत का दरवाज़ा खटखटाया, लेकिन अदालत ने पिछले फैसले को ही बरकरार रखा। ऐसे कई  छोटे-मोटे विवाद मार्क जुकरबर्ग ने समझौते के आधार पर दूर किए। उसका विचार था कि कोर्ट में समय गंवाने की जगह कुछ पैसे देकर विवाद से बचे रहना अच्छा है। मार्क अपनी सारी शक्ति और समय का हमेशा अपने ड्रीम प्रोजैक्ट पर ही खर्च करता था। अगर सिर्फ आर्थिक लाभ कमाने की ही बात होती तो ऐसे मौके तो मार्क को 17 वर्ष की उम्र में ही मिल रहे थे। आगे चलकर उसकी कम्पनी को खरीदने के लिए विश्व प्रसिद्ध कम्पनियों ने मुंह मांगी रकम देने की पेशकश भी की। यह पेशकश बहुत असाधारण थी, जिनको अस्वीकार करना आसान नहीं था। यह तो मार्क का ही नज़रिया था कि उसने तत्कालीन लाभ को दूर करके भविष्य में होने वाले बड़े लाभ की ओर नज़र गड़ाए रखी। सिर्फ 23 वर्ष की उम्र में ही मार्क दुनिया का ऐसा युवा अरबपति बन गया था, जिसकी पृष्ठभू िमें कोई मिलेनियर नहीं था। मार्क ने अपना सिंहासन बड़ी सूझबूझ और समझदारी से स्थापित किया। कहा जाता है कि सारी नदियां समुद्र में जाकर गिरती है, लेकिन सूचना और टैक्नालॉजी के क्षेत्र में फेसबुक की शुरुआत एक साधारण नदी के रूप में हुई और फिर बहते-बहते एक समुद्र का रूप धारण कर गई, जिसमें कई छोटी-बड़ी कम्पनियां नदी बनकर समाई। जैसे गूगल, याहू और माइक्रोसॉफ्ट तो बड़ी-बड़ी नदियां मानी जाती थी, लेकिन आखिर में इन्होंने भी अपनी छोटी-छोटी निवेश धारा के रूप में फेसबुक की प्रतिभा को स्वीकार किया। फेसबुक की महत्वता उस समय और ज्यादा बढ़ गई जब ए.ओ.एल. जैसी बड़ी कम्पनी को भी मार्क जुकरबर्ग से इस क्षेत्र में खतरा प्रतीत होने लगा। वर्ष 2008 तक फेसबुक ने जिस रफ्तार से सफलता को छूआ था, वह अपने आप में एक आश्चर्यजनक सफलता थी। भौतिक रूप में फेसबुक ने इसी वर्ष अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपना विस्तार किया और अपना पहला अंतर्राष्ट्रीय मुख्य कार्यालय आयरलैंड के डबलिन शहर में स्थापित किया। 23 जुलाई को मार्क ने फेसबुक प्लेटफार्म का संशोधित हुआ संस्करण ‘फेसबुक कनेक्ट’ अपने उपभोक्ताओं को समर्पित किया। अब तक जो फेसबुक घाटे में चल रही थी, जबकि इसकी लोकप्रियता आई.टी. क्षेत्र में लगातार बढ़ रही थी। जनवरी, 2009 के शुरू में एक सर्वेक्षण से पता लगा कि फेसबुक दुनिया की सबसे अधिक प्रयोग करने वाली सोशल नेटवर्किंग साइट है। इस सर्वेक्षण से ही फेसबुक की आर्थिक प्रगति भी शुरू हो गई। जिससे कम्पनी को सितम्बर, 2009 में वित्तीय आंकड़ों के लिहाज़ से फेसबुक बड़ा लाभ कमाने वाली कम्पनी बन गई और छोटी कम्पनियों को खरीदना शुरू कर दिया। लोगों में मार्क जुकरबर्ग चर्चा का विषय बन गए। उनके जीवन से संबंधित बातों को जानने की लोगों में रुचि बढ़ गई। वह क्या खाते हैं, क्या सोचते हैं और निजी जीवन में उसका व्यवहार कैसा है। यह सब कुछ जानने की लोगों में उत्सुकता है। मार्क जुकरबर्ग बहुत ही विलक्षण बुद्धि का मालिक है। इस बात में कोई भी संदेह नहीं है। एक सुपर कम्प्यूटर जैसी विकसित कार्यप्रणाली ही उसकी कार्यशैली है, फिर भी निजी तौर पर मार्क एक शर्मीला युवक है। उसकी ज़िंदगी में आई प्रिसिला चान पहली और आखिरी लड़की है, जिससे उसने 2010 में शादी की। उससे जब पूछा जाता है कि उसकी रुचि क्या है, तो वह सिर्फ सॉफ्टवेयर प्रोग्रामर के रूप में ही खुद को पेश करता है। कम्प्यूटर टैक्नालॉजी से जुड़े किसी भी प्रश्न का उत्तर देते समय मार्क सहज रहता है, लेकिन किसी निजी सवाल पर वह असहज हो जाता है। मार्क एक जिज्ञासु प्रवृत्ति का मालिक है। उसमें हर समय कुछ न कुछ जानने और सीखने की इच्छा रहती है। जुकरबर्ग विज्ञान, अंतरिक्ष विज्ञान और साहित्य जैसे विषयों पर अधिक से अधिक ज्ञान प्राप्त करने की इच्छा रखता है। प्रश्न पूछने की उसकी आदत बचपन से ही है। वह अपने माता-पिता से भी लगातार सवाल पूछता रहता था और कॉलेज के दिनों में भी अपने प्रोफेसरों से उसका यही सिलसिला जारी रहता। जुकरबर्ग में अपनी गलतियां मानने की अद्भुत शक्ति है, जो आज के समय में एक दुर्लभ गुण है। अपने काम की धुन में उससे अगर कोई गलती भी हो जाती थी, तो वह तुरंत ही उसको सुधारने की कोशिश करने लगता है। फेसबुक को निरन्तर विकास के मार्ग पर ले जाने के लिए उसने कई काम किए और कई विवादों से भी उलझता रहा और आज उसने अपने नरम स्वभाव की वजह से फेसबुक को ऊंचाइयों पर लाया है। इतनी बड़ी समर्था के निर्माता का यह व्यवहार ही यह बताने के लिए काफी है कि उसमें अहंकार नाम की कोई चीज़ नहीं है। उसका दैनिक रहन-सहन साधारण और मस्तमौला किस्म का है। उसका पहरावा या रहन-सहन जैसा भी हो, लेकिन अपने क्षेत्र में वह ‘मिस्टर परफेक्ट है’। 

मो. 941756-92015