विकलांग होने के बावजूद क्रिकेट के मैदान का सितारा है पंकज कुमार शुक्ला

पंकज कुमार शुक्ला 10 महीनों के थे जब उनको तेज बुखार हो गया तो डाक्टर की लापरवाही कह लें या पंकज कुमार की बदकिस्मती, डाक्टर ने तेज़ बुखार में ही टीका लगा दिया और उनको हुए तेज़ बुखार ने उनकी ज़िन्दगी ही बदल कर रख दी और पंकज की दोनों टांगों ने चलने से जवाब दे दिया और वह सारी ज़िन्दगी व्हीलचेयर पर चलने के लिए मजबूर हो गया। पंकज कुमार का जन्म उत्तर प्रदेश के ज़िला प्रयागराज के एक गांव बख्तैयारा में पिता शिव नारायण के घर माता सरला देवी की कोख में 22 अगस्त, 1995 को हुआ। छोटी उम्र विकलांग होने के बावजूद भी पंकज कुमार ने हार नहीं मानी और न ही पंकज कुमार के  माता-पिता ने। पंकज कुमार की ज़िन्दगी व्हीलचेयर पर दौड़ने लगी और बड़ा भाई पवन शुक्ला उसको साइकिल पर बैठा कर स्कूल छोड़ने आता और छुट्टी हो जाने पर लेकर आता। इसी तरह पंकज ने बी.ए. तक की पढ़ाई कानपुर यूनिवर्सिटी से कर ली और एम.ए. (इतिहास) लखनऊ में और आज कल वह अन्य उच्च विद्या मुम्बई से ले रहे हैं। पंकज को ज़िन्दगी ने विकलांग तो बना दिया लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी और बचपन से ही खेलने का जुनून उनके अंदर एक बार फिर जागा और उन्होंने व्हीलचेयर पर ही बैडमिंटन खेलने की तैयारी करनी शुरू कर दी और परिणामस्वरूप यह हुआ कि फरवरी, 2017 में हैदराबाद के शहर तेलंगाना में आयोजित नैशनल पैरा बैडमिंटन में हिस्सा लिया, जहां उन्होंने सिंगल और डबल खेलते दो कांस्य पदक जीतकर पढ़ाई के साथ-साथ खेलों में भी अपने आप को स्थापित कर लिया और अब तक वह व्हीलचेयर बैडमिंटन के कई टूर्नामैंट खेल कर चार कांस्य पदक जीतकर अपने प्रांत उत्तर प्रदेश और अपने ज़िले प्रयागराज का नाम रौशन कर चुके हैं और अब वह महाराष्ट्र मुम्बई की व्हीलचेयर क्रिकेट टीम का एक बड़ा हिस्सा हैं और साथ ही उनकी तैराकी यानी स्वीमिंग की तैयारी भी चल रही है। पंकज कुमार शुक्ला का निशाना है कि एक दिन वह ओलम्पिक में खेलें और भारत का नाम रौशन करें। वह कहते हैं कि परमात्मा ने तो उनको बचपन से ही दोनों टांगों से विकलांग कर दिया, लेकिन इसके बावजूद भी वह स्वाभिमान की ज़िन्दगी व्यतीत कर रहा है।

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