ट्रंप और किम जोंग की दूसरी मुलाकात- क्या किम जोंग अपने परमाणु हथियार नष्ट करेंगे ?


उत्तर कोरिया का रणनीतिक खतरा अब लग रहा है कि कूटनीतिक चाबी से हल हो जायेगा। आगामी 27 और 28 फरवरी 2019 को उत्तर कोरिया के किम जोंग उन और अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप दोबारा मिलेंगे। भले अब तक के तमाम अमरीकी राष्ट्रपतियों ने ट्रंप को सबसे कम कूटनीतिक समझा जाता हो, लेकिन अगर उन्होंने उत्तर कोरिया का परमाणु कार्यक्रम और उसके तमाम परमाणु हथियारों को निरस्त्र और निस्तेज करा लिया तो यह हाल के तमाम अमरीकी राष्ट्रपतियों के मुकाबले एक बड़ी कामयाबी होगी। सवाल है क्या बिना कुछ ठोस हासिल किये किम जोंग उन ऐसा करेंगे और अमरीका अगर उन्हें कुछ ठोस देगा तो वह क्या होगा?, ट्रंप शासन ने उत्तर कोरिया में कूटनीतिक कार्यालय खोलना तय कर लिया है। इसे सांकेतिक रूप से यह समझाने की चेष्टा हो रही है कि अमरीका यहां दूतावास खोलने की प्रक्रिया में है। कहने को यह लायजन कार्यालय होगा, मगर भविष्य में यह पूर्णकालिक दूतावास में रूपांतरित हो सकता है। यह दिलचस्प है कि प्योंगयांग में लायजन आफिस खोलने पर सहमति 1992 में बनी थी। मगर, बाद में परिस्थितियां इतनी उलट हो गईं कि बुश के समय उत्तर कोरिया दुश्मन नंबर वन बन चुका था। उत्तर कोरिया जैसे देश से संबंध दुरुस्त करने में 28 साल लग गये, यह भी कूटनीति का अजीबो-गरीब कालखंड माना जाएगा।
ट्रंप और किम जोंग उन 27 से 28 फरवरी 2019 को वियतनाम के हनोई में दूसरी दफा मिलेंगे। प्योंगयांग में अमरीका के विशेष दूत स्टीफन बिगन ने एक ट्वीट के जरिये जानकारी दी कि आने वाले दिनों में उत्तर कोरिया एक बहुत बड़ा आर्थिक पावर हाउस बनने जा रहा है। दोनों देशों की लीडरशिप इस दिशा में आगे बढ़ेगी। अमरीका के विशेष दूत का यह संदेश एक बड़ी योजना का खाका भी बता रहा है कि प्रेसिडेंट ट्रंप इस दूसरी मुलाकात को बिजनेस में बदलना चाहते हैं।
भारत के हक में अच्छा है कि वह अब सहज होकर उत्तर कोरिया से संबंध आगे बढ़ा सकता है। 15 मई 2018 को विदेश राज्य मंत्री जनरल वी.के.सिंह उत्तर कोरिया गये थे। पिछले 20 वर्षों में पहली बार किसी भारतीय मंत्री ने उत्तर कोरिया का रुख किया था। हालांकि, 23 अप्रैल 2015 को उत्तर कोरिया के विदेश मंत्री री सो याेंग नई दिल्ली आ चुके हैं। नौ माह पहले, ट्रंप और किम जोंग उन 12 जून 2018 को सिंगापुर में पहली बार मिले, तो कोई इसकी भविष्यवाणी करने में समर्थ नहीं था कि इनका कूटनीतिक सफर लंबा भी चलेगा। दोनों नेता दो अलग-अलग जेनरेशन के जरूर हैं, पर दोनों में एक समानता यह है कि इनके स्वभाव का कोई पूर्वानुमान नहीं लगा सकता। 
सिंगापुर में मुलाकात की वजह परमाणु निरस्त्रीकरण के माड्यूल को समझना था। तब यह सवाल उठा था कि क्या उत्तर कोरिया इतनी आसानी से अपने परमाणु कार्यक्रम और हथियारों को निरस्त कर देगा? यह ध्यान में रखने की बात है कि 30 मई 2017 को उत्तर कोरिया ने एक तस्वीर जारी की थी, जिसमें उसने ‘प्रिसेसन कंट्रोल्ड गाइड सिस्टम’ से लैस बैलेस्टिक राकेट के परीक्षण को दिखाया था। इस प्रणाली के जरिये जानकारी दी गई थी कि उत्तर कोरिया ने लक्ष्य को सटीक रूप से भेदने की तकनीक हासिल कर ली है। ट्रंप की भृकुटि उत्तर कोरिया के छठे आईसीबीएम टेस्ट को लेकर तनी हुई थी। 4 अप्रैल 2017 को जापान की जल सीमा में परीक्षण के दूसरे दिन उत्तर कोरिया के शासक किम जोंग उन ने जो कुछ कहा है, उससे अमरीका के कान जरूर खड़े हो चुके थे।
किम जोंग उन ने कहा था कि हम जो छठा ‘आईसीबीएम’ टेस्ट करेंगे, हमारे उस अंतरमहाद्वीपीय बैलेस्टिक मिसाइल की मार अमरीका तक होगी और यह महज धमकी नहीं थी, उत्तर कोरिया ने इसके प्रकारांतर 16 अप्रैल, 29 अप्रैल, 14 मई, 8 जून को कई मिसाइलों के परीक्षण किये। उसने 4 जुलाई 2017 को अंतर महाद्वीपीय बैलेस्टिक मिसाइल ‘ह्वासोंग-14’ का सफल परीक्षण किया, जो 6 हजार 700 किलोमीटर तक मार कर सकती है। मतलब, इसकी जद में अमरीका का अलास्का आ चुका था। 28 जुलाई 2017 को एक और मिसाइल टेस्ट उत्तर कोरिया ने छागांग प्रांत में किया, जिसके बूते उत्तर कोरिया ने दावा किया है कि शिकागो तक हम मार कर सकते हैं। स्वाभाविक है कि यह सारा कुछ ट्रंप प्रशासन की नींद हराम करने के लिए हो रहा था।
यह सवाल उठता रहा है कि उत्तर कोरिया के मिसाइल कार्यक्रम को किसकी शह मिली है? प्योंगयांग में 2012 की परेड में दो बैलेस्टिक मिसाइलें दिखी थीं, उनमें एक थी ‘केएन-14’, जिसकी मारक क्षमता दस हज़ार किलोमीटर तक बताई गई थी। दूसरी थी, ‘केएन-08’। यह मिसाइल 11 हज़ार 500 किलोमीटर तक प्रहार कर सकती है। उस समय सूचना दी गई थी कि इनके इंजन के परीक्षण चल रहे हैं और इनके फ्लाइट टेस्ट भी होंगे। यह स्मरण में रखने की बात है कि ट्रंप के शपथ के एक माह भी पूरे नहीं हुए थे कि 14 फरवरी को ‘पुख्गुक्सोंग-2’ मिसाइल उत्तर कोरिया ने दाग दी। अमरीकी नौसेना के ‘पैसिपिक कमांड’ की निगाहें उत्तर कोरिया की गतिविधियों पर निरंतर बनी हुई हैं।
इसमें कोई शक नहीं कि उत्तर कोरिया चीन के बल पर उछलता रहा है। ट्रंप की कोशिश रही है कि चीन को किसी तरह घेरकर उसे उत्तर कोरिया को निपटाने में आगे किया जाए। संयुक्त राष्ट्र के जरिये तब जिस तरह के प्रतिबंध लगाने का आदेश हुआ था, उसमें पेट्रोलियम और गैस सप्लाई शामिल था। मगर, चीन ने इस वास्ते पूर्ण सहयोग नहीं दिया, यह सबको मालूम है। पर अकेला चीन क्यों? रूस इस खेल में कितना शामिल है, उस पर कम लोगों का ध्यान जाता है।
प्रशांत महासागर वाले इलाके में अमरीका और उसके मित्रों के विरुद्ध बैलेस्टिक मिसाइलों से लैस एक आत्मघाती देश खड़ा हो, उसमें सबसे अधिक किसकी दिलचस्पी हो सकती है? उत्तर कोरिया के मिसाइल कार्यक्रम में जो सबसे बड़ा सहयोगी रहा है, उस पर ध्यान दें, तो सारी बातें समझ में आ जाती हैं। यह सारी रणनीति शीतयुद्ध के दौर में बनी थी। उत्तर कोरिया के मिसाइल कार्यक्रमों को सबसे अधिक ताकत रूस से मिली है। किम और ट्रंप की दूसरी मुलाकात से रूस का प्रभामंडल निस्तेज होगा, इसका अनुमान तो लगाया ही जा सकता है।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर