गरीबों की पहुंच से दूर हो रहा है महंगा इलाज


देश की आज़ादी के सात दशक बाद आज भी दूर-दराज़ के गांवों और कस्बों में न तो अस्पताल है और न कोई प्राथमिक उपचार केन्द्र। बीमार होने पर मीलों चलने के बाद लोगों को इलाज मिल पाता है। गरीब और असहाय चिकित्सा तथा दवाओं के अभाव में दम तोड़ देते हैं। विडम्बना है कि देश का स्वास्थ्य ढांचा चरमराया हुआ है। बड़ी तादाद में लोगों को चिकित्सा सेवा नसीब नहीं हो पाती है, वहीं दवाओं और चिकित्सा उपकरणों के महंगे और मनमाने दाम मुसीबतें खड़ी करते हैं। जैसे कि डाक्टर की पढ़ाई महंगी हो रही है, ठीक इस तरह डाक्टरी इलाज भी महंगा हो रहा है। 
भारत में डाक्टरी इलाज बाकी देशों से कुछ ज्यादा ही महंगा है। एक मैडीकल सर्वे से यह बात सामने आई है कि बहुत से लोग डाक्टर से चैकअप कराने की बजाय खुद ही दवाई ले लेते हैं। बेशक इसका असर उल्ट ही क्यों न हो जाए। इसलिए बिना डाक्टर की सलाह से ली गई दवाई से जान से भी हाथ धोने पड़ सकते हैं। जैसे-जैसे आयु बढ़ती है, वैसे-वैसे रोग भी बढ़ते जाते हैं। शरीर में रोगों से लड़ने की क्षमता घटती जाती है। इस हालात में खुद ही डाक्टर बनकर अपनी मर्जी से दवा लेना सेहत के लिए बहुत महंगा पड़ता है।
एक बात जो सामने आई है, वह यह कि एलोपैथी में सबसे आसान दवाओं का सरलीकरण है। यह बात तो सभी जानते हैं कि बुखार होने पर डाक्टर से चैक कराया जाए तो फिर ही दवा ली जाए पर डाक्टर से चैक कराने की बजाय सीधे अपनी मर्जी से दवा लेने से जो बीमारी आप के शरीर में पनपती है, वह तो बराबर पनपती रहती है, लेकिन दवाई और किसी बीमारी की है, तो इसका असर बहुत घातक हो सकता है।
एक अध्ययन के अनुसार अगर चिकित्सक भी सहज और सामान्य दवाएं बार-बार लिखे तो मरीज़ को उनसे पूछना चाहिए कि इस दवा के कोई साईड इफेक्ट्स तो नहीं। इस रुझान के चलते मरीज़ों की संख्या में काफी बढ़ोतरी हुई है। यहां भी बताना ठीक रहेगा कि जितनी भी ज्यादा तेज़ दवाई लेते हैं, उतनी जल्दी वह किडनी पर भी असर करती है। नतीजा यह निकलता है कि किडनी हमारे शरीर में बहुत कीमती और शरीर का प्रमुख अंग है। किडनी खराब हुई तो उसका इलाज महंगा भी है और फिर आयु बढ़ने की कोई उम्मीद ही नहीं होती।
डाक्टर की सलाह के बिना खुद दवा लेने की आदत बहुत खतरनाक है और इससे अन्य बीमारियां पनपती हैं। कोशिश करें कि पेन किल्लर आदि दवाओं का कम प्रयोग करें, इनसे बचना ही चाहिए। डाक्टर से चैकअप कराने के बाद ही जो डाक्टर लिख कर देता है, वही दवाई ली जाए। अपने आप दवाई लेने का मतलब यह नहीं कि डाक्टर जो दवा पांच साल या दस साल पहले लिख कर दे रहा है, वह शरीर के लिए फायदेमंद ही हो। नतीजा यह निकलता है कि मरीज़ बार-बार बीमार रहने लगता है। और समय पाकर वह भयानक बीमारी की गिरफ्त में फंस जाता है। तब इलाज कराना मुश्किल हो जाता है। फिर स्थिति यह हो जाती है कि अच्छी से अच्छी दवाई भी असर नहीं करती और मरीज़ मौत को गले लगा लेता है। 
एक बात यह भी सामने आई है कि कुछ डाक्टर मरीज़ को बार-बार एक ही दवाई लिख कर देते रहते हैं, कारण कि उनका उस कम्पनी से पहले से ही यह तय हुआ होता है कि उनका कितना कमीशन है। इससे भी बचना चाहिए। अगर आपको लगे कि डाक्टर बार-बार एक ही दवाई लिख कर दे रहा है तो फौरन किसी अन्य डाक्टर की सलाह ले ली जाए तो ठीक रहेगा। कोशिश करें कि आप इस मामले में सोच समझ कर चलें, क्योंकि शरीर उस परमात्मा से मिली हुई वह दात है जो लाखों-हज़ारों रुपए खर्च करने से भी नहीं मिलती।