मस्ती का पर्व है होली

प्रकृति जब अपना आवरण बदलने लगे, मौसम में बासंती बयार बहने लगे और लोगों में मस्ती का भाव जगने लगे तो समझो फाल्गुन आ गया और होली लोगों के दिलों पर दस्तक देकर उन्हें अपने रंग में रंगने लगती है। प्रकृति का यही उल्लास लोगाें के मन में एक नई उमंग, एक नई खुशी,एक नई स्फूर्ति को जन्म देकर उनके मन को आह्लादित करता है। 
प्रकृति की इस अनूठी छटा व मादकता के उत्सव को होलिकोत्सव के रूप में मनाए जाने की परम्परा सदियों से चली आ रही है जिस पर हम सब रंगों से सराबोर हो जाते हैं। होली के इस पर्व को यौवनोत्सव, मदनोत्सव, बसंतोत्सव, दोलयात्र व शिमागा के रूप में मनाये जाने की परम्परा है। फाल्गुन मास के अन्तिम दिन मनाए जाने वाले रंगों के इस पर्व होलिकोत्सव को लेकर विभिन्न कथाएं प्रचलित हैं। 
इन कथाओं के अनुसार नारद पुराण में यह पर्व हिरण्यकश्यप की बहन होलिका के अन्त व भक्त प्रहलाद की ईश्वर के प्रति आस्था के प्रति विजय का प्रतीक है। प्रचलित कथा के अनुसार हिरण्य कश्यप को जब उनके पुत्र प्रहलाद ने भगवान मानने से इन्कार कर दिया तो अहंकारी शासक हिरण्य कश्यप ने अपने पुत्र प्रहलाद की हत्या के लिए उसे आग में न जलने का वरदान प्राप्त होलिका की गोद में जलती चिता में बैठा दिया किन्तु होलिका का आग में न जलने का वरदान काम नहीं आया और वह आग में जलकर भस्म हो गई जबकि प्रहलाद सकुशल बच गया। तभी से होलिकोत्सव पर होली दहन की परम्परा की शुरूआत हुई। 
होली के पर्व को मुगल शासक भी शान से मनाया करते थे। मुगल बादशाह अकबर अपनी महारानी जोधाबाई के साथ जमकर होली खेलते थे। बादशाह जहांगीर ने भी अपनी पत्नी नूरजहां के साथ रंगों की होली खेली। इसी तरह बादशाह औरंगजेब, उनके पुत्र शाह आलम और पौत्र जहांदर शाह ने भी होली का त्योहार रंगाें के साथ मस्ती के आलम में मनाया जिसका उल्लेख इतिहास में पढ़ने को मिलता है जिससे स्पष्ट है कि हिन्दू ही नहीं, मुसलमान भी होली का पर्व मनाते रहे हैं।  
रेगिस्तान की पहचान राजस्थान में सांभर की होली का अपना महत्त्व है। सांभर की होली मनाने के लिए आदिवासी समाज की लड़कियां वस्त्रों की जगह अपने शरीर को टेसू की फूल मालाओं से ढककर अपने प्रेमियों के साथ नदी किनारे जाकर सर्प नृत्य करती हैं। 
इस सर्प नृत्य के बाद इन लड़कियों की शादी उनके प्रेमियों के साथ कर दी जाती है। राजस्थान में ही हाड़ोती की कोडामार होली जिसमें देवर भाभी व जीजा साली एक दूसरे को कोड़े मार कर होली के रंग में रंग जाते हैं। इसी राजस्थान में होली पर अकबर बीरबल की शोभा यात्रा निकालकर होली का रगं व गुलाल खेला 
जाता है।