होली के विविध रंग


जन चेतना का जागरण पर्व होली हमें परस्पर मेल-जोल बढ़ाने और आपसी वैर भाव भुलाने की प्रेरणा देता है। रंगों के इस पर्व के प्रति युवा वर्ग व बच्चों के साथ-साथ बड़ों में भी अपार उत्साह देखा जाता है। वैसे तो यह त्यौहार देश में होलिका दहन व रंगों के त्यौहार के रूप में ही जाना जाता है लेकिन भारत के विभिन्न भागों में इस पर्व को मनाने के अलग-अलग और बड़े विचित्र तौर-तरीके देखने को मिलते हैं। डालते हैं देशभर में होली के विविध रूपों पर नजर :-
उत्तर प्रदेश में ब्रज की बरसाने की ‘लट्ठमार होली’ अपने आप में अनोखी और विश्व प्रसिद्ध है, जिसका आनंद लेने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं। यहां होली खेलने के लिए रंगों के स्थान पर लाठियों व लोहे तथा चमड़े की ढालों का प्रयोग किया जाता है। महिलाएं लाठियों से पुरुषों को पीटने का प्रयास करती हैं जबकि पुरुष ढालों की आड़ में स्वयं को लाठियों के प्रहारों से बचाते हैं। लट्ठमार होली के आयोजन ब्रज मंडल में करीब डेढ़ माह तक चलते हैं लेकिन विशेष आयोजन के रूप में खेली जाने वाली लट्ठमार होली के लिए विभिन्न दिन एवं स्थान निश्चित हैं। ब्रज मंडल में नंदगांव, बरसाना, मथुरा, गोकुल, लोहबन तथा बल्देव की लट्ठमार होली विशेष रूप से प्रसिद्ध व दर्शनीय है। लट्ठमार होली के लिए लोग कई दिन पहले ही तैयारियां शुरू कर देते हैं। बरसाने की होली में नंदगांव के पुरुष और बरसाने की महिलाएं भाग लेती हैं जबकि नंदगांव की होली में पुरुष बरसाने के होते हैं और महिलाएं नंदगांव की। होली खेलने वाले हुरियारों के हाथों में अपनी सुरक्षा के लिए चमड़े की ढाल होती है जबकि रंग-बिरंगे लहंगे और ओढ़नियों से सजी गोरियों के नाजुक हाथों में लाठियां होती हैं। हुरियारों के झुंड में 3-4 वर्ष के बच्चों से लेकर 70 साल के वृद्ध भी दिखाई देते हैं। जब हुरियारे और गोरियां आमने-सामने होते हैं तो लाठियों और ढालों का मन मचलने लगता है। गोरियां लाठियां भांजती हैं और हुरियारे नाचते-गाते ढाल द्वारा बचाव करते हैं। इस दौरान आकाश रंग-बिरंगे गुलाल के बादलों से आच्छादित हो जाता है और बड़ा ही मनोहारी दृश्य उपस्थित होता है।
रणबांकुरों की धरती राजस्थान में तो होली का अलग-अलग जगह अलग-अलग तरीके से आयोजन होता है। जयपुर के आसपास के कुछ क्षेत्रों में होलिका दहन के साथ पतंग जलाने की भी प्रथा है। गौरतलब है कि यहां पतंग उड़ाने का आयोजन मकर संक्रांति से शुरू होता है, जो होली तक पूरे शबाब पर होता है लेकिन होलिका दहन से पूर्व विभिन्न चौराहों पर होलिका को लोग अपने-अपने घरों से लाई रंग-बिरंगी पतंगों से सजाते हैं और होलिका दहन के साथ पतंगों को भी अग्नि को समर्पित कर इस दिन से पतंग उड़ाना बंद कर देते हैं। इसी प्रकार पिछले तीन सौ सालों से बीकानेर में मनाई जा रही ‘डोलचीमार होली’ भी अपनी तरह का अनोखा आयोजन है, जिसमें मुख्य रूप से हर्ष और व्यास जाति के लोग ही भाग लेते हैं लेकिन अब अन्य जातियों के लोग भी इसमें पूरे उत्साह से सम्मिलित होते हैं। 
फाल्गुन शुक्ल द्वितीय को खेली जाने वाली इस होली का आयोजन बीकानेर के हर्षों के चौक में होता है, जहां पानी के बड़े-बड़े कड़ाह भरकर रखे जाते हैं। हर्ष और व्यास जाति के लोग स्नेही प्रतिद्वंद्वी के रूप में एक-दूसरे के साथ अपना जोड़ा बनाते हैं और इन दोनों जातियों के साथ आमने-सामने के वर्ग में अन्य जातियों के लोग भी सम्मिलित होते हैं। खेल के दौरान करीब 750 मि.ली. क्षमता पानी वाली चमड़े की बनी डोलचियों का उपयोग होता है। इन डोलचियों से प्रतिद्वंद्वी एक-दूसरे पर पानी का इतना तेज़ प्रहार करते हैं कि देखकर रौंगटे खड़े हो जाएं। बिहार में कुछ स्थानों पर रात के समय होली जलाने की प्रथा है। लोग होलिका दहन के समय इसके चारों ओर एकत्रित होते हैं और गेहूं व चने की बालें भूनकर खाते हैं। प्रदेश के कुछ हिस्सों में युवक अपने-अपने गांव की सीमा के बाहर मशाल जलाकर रास्ता रोशन करते हैं। इस संबंध में मान्यता है कि ऐसा करके वे अपने गांव से दुर्भाग्य और संकटों को दूर भगा रहे हैं।
कृषि प्रधान राज्य हरियाणा में होली के इन्द्रधनुषी रंगों की छटा देखते ही बनती है। होली के दिन महिलाएं व्रत रखती हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएं पारम्परिक लोकगीत गाते हुए समूहों में होलिका दहन के लिए जाती हैं और पूजा अर्चना करती हैं तथा होलिका दहन के पश्चात् व्रत खोलती हैं। यहां होली की आग में गेहूं तथा चने की बालें भूनकर खाना शुभ माना जाता है। अगले दिन ‘दुलहैंडी’ के दिन स्त्री-पुरुष, बच्चे सभी गली-गली में होली के रंगों में मस्त दिखाई देते हैं। हर गली में पानी से बड़े-बड़े टब अथवा ड्रम भरकर रखे जाते हैं। आमतौर पर गांवों में कुंवारी लड़कियां इन टबों में पानी भरती हैं, जिन्हें इसके लिए ‘नेग’ के रूप में कुछ राशि दी जाती है। पुरुष महिलाओं पर पानी डालते हैं और महिलाएं उन पर कोड़े बरसाती हैं। कोड़े की जगह अब कहीं-कहीं लाठियों ने ले ली है। 
शाम को गांवों में कबड्डी व कुश्ती प्रतियोगिताएं भी आयोजित होती हैं। महिलाएं शाम के समय अपने लोक देवता की पूजा के लिए मंदिरों में जाती हैं और प्रसाद बांटती हैं। पंजाब में भी हरियाणा की ही भांति होली पर खूब धूमधाम और मस्ती देखी जाती है। लोग रंग और गुलाल से होली खेलकर एक-दूसरे से गले मिलते हैं। महिलाएं होली के दिन अपने घर के दरवाजे पर ‘स्वास्तिक’ चिन्ह बनाती हैं।