पठानकोट का श्री शनिदेव मंदिर 

श्री शनि देव मंदिर, डल्हौजी रोड, पठानकोट (पंजाब) में शोभनीय है। सौंदर्य का अनुपम विशिष्ट नमूना है यह मंदिर। आधुनिकता तथा प्राचीनता का मिश्रण है यह भव्य मंदिर। इसके मुख्य द्वार के दाएं-बाएं ओर काले रंग के आदमकद पिल्लर हैं। इन पिल्लरों के ऊपर श्री शनि देव मंदिर का नाम लिखा हुआ है। पिल्लरों के ऊपर माथा बना कर मंदिर का नाम लिखा हुआ है। बीच में लोहे का सफेद गेट है जो काले तथा सफेद रंग का है। प्रवेश करते ही मंदिर के कमरे में श्री शनि देव की प्रतिमा के दर्शन होते हैं। मंदिर में काले रंग के प्राचीन मुद्रा-शैली वाले गुम्बद हैं। मंदिर में कई भव्य बहुमूल्य आकर्षक आध्यात्मिक प्रतिमाएं सुशोभित हैं। मंदिर में श्री शनि देव की स्तुति प्रति, आस्था प्रति कई श्लोक तथा प्रवचन अंकित हैं। शनि यमराज के भाई और सूर्य के पुत्र हैं। वैशाख की अमावस्या इनका शुभ जन्म दिन है। पुराणों में एक कथा है कि बालपन में शनि देव भगवान विष्णु की भक्ति में लीन रहा करते थे। चित्ररथ की परम सुन्दरी कन्या चित्रा इनकी धर्म पत्नी थी। एक रात ऋतु स्नान के पश्चात् संतान इच्छा से वह इनके पास पहुंची। भगवान की भक्ति में लीन शनि देव ने उनकी ओर ध्यान नहीं दिया। चित्रा ने कुपित हो कर श्राप दे दिया। शनि का नाम ‘शनैश्चर’, अर्थात् शनै: शनै: चलने वाला ग्रह है और सौर मंडल में शनि एक विशाल और रहस्यवादी ग्रह है। इसकी पृथ्वी से सबसे अधिक दूरी है। इसका बारह राशियों में भ्रमण 29 वर्ष 5 मास 17 दिन में पूरा होता है। शनि को सूर्य पुत्र कहा जाता है। यह सूर्य की छाया से उत्पन्न हुआ माना जाता है। शनि का वाहन गिद्ध तथा वार शनिवार है। इस मंदिर में मर्यादानुसार दिन-त्योहार भी मनाए जाते हैं।

—बलविन्द्र ‘बालम’