प्रकाशोत्सव पर विशेष : श्री हजूर बाबा साहिब सिंह जी बेदी 

ऊना नगरी की स्थापना करने वाले, महाराजा रणजीत सिंह को राज तिलक देने वाले तथा सिख राज के संस्थापक गुरु नानक पातशाह की 11वीं सन्तान श्री हजूर बाबा साहिब सिंह बेदी का प्रकाशोत्सव किला बेदी साहिब ऊना (हिमाचल) में बाबा सर्वजोत सिंह बेदी तथा साध संगत की तरफ से हर वर्ष की तरह 26 से 28 मार्च तक बड़ी श्रद्धा व उत्साह से मनाया जा रहा है। बाबा साहिब सिंह जी बेदी का जन्म कलगीधर दशमेश पिता गुरु गोबिंद सिंह जी के वरदान अनुसार गुरु नानक देव जी के वंश में से बाबा कलाधारी के सुपुत्र बाबा अजीत सिंह जी व माता सरूपा देवी के गृह में मार्च, 1756 ई. में डेरा बाबा नानक गुरदासपुर में हुआ। 13वें दिन उनका ‘नामकरण’ हुआ जो कि श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी के हुक्मनामे ‘साहिब होए दयाल कृपा करे, तां साई कार कराएसी, सो सेवक सेवा करे जिसनो हुकम मनाएसी’ साहिब सिंह नाम रखा गया। बाबा साहिब सिंह बेदी शुरू से ही गंभीर तथा संत स्वरूप थे। उनको सांसारिक पदार्थों व धन-दौलत का लोभ नहीं था तथा आप ज्यादा समय परमात्मा की बंदगी में बिताया करते। आपने प्राथमिक शिक्षा अपने पिता बाबा अजीत सिंह जी से ग्रहण की तथा पंडित सोमनाथ शर्मा से भारतीय दर्शन तथा मिथिहास की जानकारी प्राप्त की। शास्त्रों का ज्ञान भी हासिल किया। बाबा साहिब सिंह बेदी की तीन शादियां हुईर्ं। इनकी तीनों पत्नियों से इनके घर तीन पुत्र बाबा बिशन सिंह, बाबा तेग सिंह व बाबा विक्रमा सिंह पैदा हुए। सन् 1775 ई. को वैसाखी वाले दिन अपनी पहली पत्नी बीबी गुलाब देवी के साथ बाबा साहिब सिंह बेदी ने आनन्दपुर साहिब में अमृत पान किया। बाबा साहिब सिंह बेदी ने सिख राज तथा सिख कौम का पहरेदार बनकर राजनीति की और राजाओं से धर्म का झंडा कायम रखकर सिख राज को उत्तम राज का दर्जा दिलवाया। बाबा जी ने 12 मिसलों में बंटी हुई सिख कौम को इकट्ठा करके गुरु ग्रंथ साहिब जी के साथ जोड़ा। 13 अप्रैल सन् 1801 को रणजीत सिंह को बाबा साहिब सिंह बेदी ने राज तिलक लगाकर सिख धर्म का मुख्य सेवादार बनाया तथा कहा कि उन्हें भविष्य में महाराजा रणजीत सिंह के नाम से पुकारा जाएगा। बाबा साहिब सिंह बेदी राम नगर वासियों को आशीर्वाद देकर महाराजा रणजीत सिंह और उनकी माता रानी राज कौर समेत ननकाना साहिब पहुंचे। यहां उन्होंने ‘गुरुनानक दरबार’ श्री जन्म स्थान तथा कई गुरुद्वारों के दर्शन किए तथा देखा कि उनकी हालत काफी खस्ता है व लंगर का प्रबंध भी ठीक नहीं है। उन्होंने महाराजा रणजीत सिंह और उनकी माता को बुलाकर कहा कि यहां सेवा की जरूरत है और यहां की सेवा बहुत सफल रहेगी। बाबा जी बचन कर ही रहे थे कि महाराजा रणजीत सिंह ने उनके चरण पकड़ कर प्रार्थना की, महाराज आप अमृत समय घोड़े पर सवार होकर दोपहर वापसी आराम करने के समय तक जितनी जमीन के आगे-पीछे चरण पाकर  पवित्र करोगे तथा निशान दोगे, उतनी गुरु की जागीर हो रहेगी। बाबा साहिब सिंह बेदी ने ऐसा ही किया। बाबा साहिब सिंह बेदी के तीन पुत्रों में से मंझले सुपुत्र बाबा तेग सिंह का सन् 1833 में उनके जीवन काल में ही स्वर्गवास हो गया। उनके बड़े सुपुत्र बाबा बिशन सिंह का सन् 1839 में देहांत हो गया तथा बाबा बिक्रमा सिंह बड़े वफादार बनकर महाराजा रणजीत सिंह का साथ देते रहे। इसके बाद उनको अंग्रेज हुकूमत ने नज़रबंद कर दिया तथा 1863 में वह स्वर्ग सिधार गए। बाबा साहिब सिंह बेदी ने अपना सारा जीवन खालसा राज की उन्नति व सेवा में बिता दिया और सन् 1834 में स्वर्ग  सिधार गए। बाबा साहिब सिंह बेदी जी की बरसी उनके अस्थान गांव मनसूरा ज़िला लुधियाना में जून महीने की दसवीं वाले दिन मनाई जाती है। बाबा साहिब सिंह बेदी जी का प्रकाशोत्सव उनके दादा बाबा कलाधारी जी के अस्थान ऊना (हिमाचल) में (13-15 चैत्र) 26 से 28 मार्च तक हर वर्ष मनाया जाता है जिसमें देश-विदेश के श्रद्धालु भाग लेते हैं तथा अपनी मनोकामना पूरी करके जाते हैं। 27 मार्च को एक महान नगर कीर्तन श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी व पांच प्यारों के नेतृत्व में बाबा सर्वजोत सिंह बेदी जी की देखरेख में निकाला जाता है जोकि देखने योग्य होता है। 28 मार्च को संत समागम व कीर्तन दरबार में अनेक संत, महापुरुष, कवि, कथावाचक, प्रचारक, रागी, ढाडी कीर्तन व उपदेश द्वारा संगतों को बाबा साहिब सिंह जी बेदी के इतिहास से परिचित करवाते हैं। वर्तमान गद्दीनशीन बाबा सर्वजोत सिंह जी बेदी गुरु नानक पातशाह के प्रचार द्वारा संगतों को श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी से जुड़ने की प्रेरणा देते हैं। गुरु के लंगर दिन-रात चलते हैं।

—गुरप्रीत सिंह सेठी
ऊना (हि.प्र.) मो. 98164-97250