यहां हर काम में वक्त लगता है, बन्धु !

वैसे तो इस देश में लोग आम तौर पर इतने दु:खी रहते हैं कि उन्हें अपने महानायकों के ‘मन की बात’ के धारावाहिक प्रसारण का उद्दाह भी जीवन्तता की कोई धारावाहिक अनुभूति नहीं दे पाता। उपलब्धियों की घोषणा का हर मील पत्थर स्थापित भी नहीं होता, कि अपने लिए मुरम्मत का नया मांग-पत्र लेकर पेश हो जाता है।  अब जनाब सुख का शुबहा देने वाली इस दु:ख की थिगलियों लगी चादर में इतने छेद हो गए हैं कि लगता ही नहीं कि इस पौन सदी की आबादी में हमने कोई चादर कभी ओढ़ी थी। शुबहे-शुबहे में ही यह विकास यात्रा कट गई, और हमने पाया कि निरन्तर चलते रहने के बावजूद हम तो आज भी वहां के वहां खड़े हैं, जहां से चले थे। 
 सत्तर बरस पहले की बात छेड़ लें, जबकि इस देश में योजना आयोग खड़ा किया गया था, जिसे फिलहाल एक सफेद हाथी कह कर नकार दिया गया है। जी हां, बेशक उसकी जगह एक नीति आयोग ने ले ली है, पहले तो उसे अपना रूप धारते ही वक्त लग गया, फिर नीतियां बनानी हैं। यह फैसला भी तो उसे करना था। इस देश में हर काम धीरे-धीरे होता है। सदियों की गरीबी है, अनपढ़ता है, पिछड़ापन है, धीरे-धीरे जाएगा। समझे बन्धु।
जनसंख्या पर नियंत्रण नहीं करोगे, तो बेकारी तो बढ़ेगी ही। परिवार नियोजन की बात का धूम-धड़ाका जारी था कि बीच में यह कोरोना नियंत्रण की बात होने लगी। जनाब, पिछले बरस एक लहर से जूझे, तो इस बरस के शुरू में दूसरी लहर चली आई। अभी उससे रुखसत भी नहीं ली कि हमें अपनी खिड़कियों और दरीचों में से इसकी तीसरी लहर भी झांकती दिखाई देने लगी। खैर इस देश के लोग मृत्यु प्रेमी हैं। जीवन को क्षण भंगुर और शरीर को नश्वर मानते हैं, इसलिए जैसे दो लहरों का मुकाबला कर लिया, वैसे ही तीसरी लहर का भी कर ही लेंगे। हां, इस बीच नीति आयोग के सेहत खण्ड के एक सदस्य के बयान बाकायदा इस आने वाली तीसरी लहर के बारे में दिखाई देने लगे कि भई, जल्दी से जल्दी टीका लगवा लो, नहीं तो हालत कहीं पहले से बदतर न हो जाये। इस बार जो कोरोना लहर का डैल्टा प्लस वेरिएंट आ रहा है, वह पहले से भी अधिक संक्रामक, और अधिक तेज़ी से असर करने वाला है। इसलिए फिलहाल टीका लगवाओ, और इस मारक रोग से लड़ने की अपनी ताकत में वृद्धि करो। रोग के जड़मूल का नाश करने वाली दवा तो अभी ईजाद हो रही है। हमारे वैज्ञानिक दिन-रात इस कोशिश में लगे हैं। उम्मीद पर दुनिया कायम है, इसे रखो। वह दवा भी मिल जाएगी। फिलहाल इस बचाव टीके को सुधारने के लिए इसका चूहों पर प्रयोग किया जा रहा है, ताकि यह कोरोना वायरस के हर बदलते हुए धूर्त रूप से लोहा ले सकें। 
हमने जब इस बचाव टीके की चूहों पर प्रयोग की बात सुनी तो हमें बहुत भरोसा हो गया। अगर चूहों पर इसका प्रयोग सफल रहा, तो अवश्य ही भारतीयों पर भी इसका प्रयोग सफल रहेगा। स्टेनबैक ने तो कभी अमरीका में अपनी एक किताब लिखी थी, ‘ये आदमी ये चूहे।’ हां जी, हमने तो हमेशा अपने देशवासियों की चूहों से तुलना होती देखी है। परिवार नियोजक कहा करते थे, ‘इस देश में तो लोग चूहों की तरह अपनी संख्या बढ़ाते हैं। कोरोना की इन दोनों लहरों में न जाने कितने लोग चल बसे, और विश्लेषक महोदय बोले, दूसरी लहर में तो इतनी मौतें हुईं कि लोग जैसे चूहों की तरह मरे। 
अब अगर इस नये टीके ने चूहों को कोरोना के हर वेरिएंट से बचा दिया, तो भरोसा रखिये भारतीयों पर भी यह टीका कामयाब हो जाएगा। अभी देख लो कोरोना की दूसरी लहर में गिरावट के कारण पाबंदियां हटते ही भीड़तंत्र मास्क-वास्क उतार कर अपने रंग दिखाने लगा है। लोगों को तीसरी लहर के आने का भय सताने लगा क्या? धीरज रखिए, नये टीके का परीक्षण चूहों पर हो रहा है। सफल रहा तो हम भी बच निकलेंगे, लेकिन कब तक? इसके लिए कहीं नये बने नीति आयोग से यह न पूछ लीजियेगा कि जनाब यहां मौतों का असली कारण तो भुखमरी है, बेलगाम महंगाई है, कमरतोड़ बेकारी है, और मुंहज़ोर भ्रष्टाचार है। आपने योजनाबद्ध आर्थिक विकास से इनके उन्मूलन का बीड़ा उठाया था। बारह पंचवर्षीय योजनाओं के घोड़े दौड़ाये थे। फिलहाल, घोड़े तो अस्तबल में बंधे हैं। योजना आयोग का सफेद हाथी भी आपने विदा कर दिया। अब क्या कार्यक्रम है? उसकी जगह नीति आयोग बन तो गया बरखुरदार। 
विशेषज्ञ चश्मा चढ़ा कर हमें घूरने लगे हैं। ‘तो अब इन योजनाओं के घोड़े भी अस्तबल से निकालिये। देखिये महंगाई और बेकारी फिर बढ़ने लगी।’ हमने फरियाद की।
‘अरे ये सब कोरोना की वजह से है। उससे युद्ध चल रहा है। बस इस पर नियंत्रण पाते ही देश के विकास पर ध्यान केन्द्रित कर लिया जाएगा।’ उन्होंने दिलासा दिया। 
सुनो, इस बीच हम यह फैसला भी कर लेंगे कि आर्थिक योजनाएं अब दस वर्षीष बनानी हैं, या तीस वर्षीष। आखिर पहले वाली त्रुटियां भी तो दूर करनी हैं। एक दूसरे सदस्य ने भी हमें समझा दिया था।