राजेश खन्ना को ‘इत्त़ेफाक’ से मिली थी नई दिशा

 

आम धारणा है कि जिस समय फिल्म ‘इत्तेफाक’ रिलीज़ हुई तो राजेश खन्ना अपने सुपर स्टारडम के चरम पर थे। लेकिन ऐसा नहीं था। वह अपने करियर में बहुत बुरे दौर से गुज़र रहे थे। फिल्मोद्योग के अति स्थापित निर्माता-निर्देशकों के बैनर तले बनी उनकी पांच फिल्में लगातार फ्लॉप हो चुकी थीं- चेतन आनंद की ‘आखिरी खत’ (1966), नासिर हुसैन की ‘बहारों के सपने’ (1967), जीपी सिप्पी की ‘राज़’ (1967), एस.एस. वासन की ‘औरत’ (1967) और अधुर्ति सुब्बा राव की ‘डोली’ (1969)।
इसमें सांतवना का एकमात्र बिंदु यह था कि उनकी ‘आखिरी खत’ को 1967 में अकादमी अवार्ड्स की सर्वश्रेष्ठ विदेशी भाषा फिल्म श्रेणी के लिए भारत की अधिकारिक एंट्री के लिए चुना गया था, लेकिन वह नामांकन प्राप्त करने में असफल रही। ‘डोली’ ने शुरुआत में कुछ संभावनाएं देखायी, लेकिन वह भी अधिक दूर तक न जा सकी। 1968 में राजेश खन्ना के पास एक भी फिल्म नहीं थी। यह खालीपन 1969 के दसवें माह तक खिंच चुका था, जिससे चिंतित होकर उनको बहुत प्यार करने वाले उनके पिता ने उनसे कहा था कि वह अपने कॅरियर योजना के बारे में पुन: विचार करें, किसी वैकल्पिक कॅरियर के बारे में सोचें। उनके पिता ने कहा, ‘एक कॅरियर जो तुम्हें निरंतर ठुकराए जा रहा है, उसमें लगे रहना बेवकूफी है। जीवन तुम्हें किस तरफ ले जा रहा है, यह बात बहुत जल्दी जान लेनी चाहिए। शायद फिल्मों में कॅरियर तुम्हारे लिए नहीं है। तुम्हें इस पर गम्भीरता से विचार करना चाहिए।’ लेकिन राजेश खन्ना की कुंडली में सुपरस्टार बनना लिखा था। एक छोटी सी फिल्म, जिससे किसी को भी अधिक उम्मीद नहीं थी, ने राजेश खन्ना के डूबते कॅरियर को बचा लिया और उन्हें नया जीवनदान मिल गया। यह फिल्म थी ‘इत्तेफाक’, जिसमें न गाने थे, न नृत्य और न ही बड़े सितारे। इस थ्रिलर को बी.आर. फिल्म्स के लिए यश चोपड़ा ने निर्देशित किया था। बिना किसी पब्लिसिटी व हंगामे के, इस फिल्म को मामूली बजट में मात्र 28 दिन में पूरा कर लिया गया था। यश चोपड़ा के बारे में मशहूर था कि वह जिसे छूते वही सोना बन जाता। ‘इत्तेफाक’ भी हिट हुई और राजेश खन्ना के दिन पलट गये। शुरु में बी.आर. के बैनर ने दर्शकों को सिनेमा हॉल तक खींचा, लेकिन बाद में सबको एहसास हो गया कि फिल्म की कामयाबी का सेहरा राजेश खन्ना को जाता है, जो बाद में स्टारडम के नए नियम लिखने वाले थे। राजेश खन्ना को ‘इत्तेफाक’ के लिए मात्र 2000 रूपये मेहनताना और 500 रूपये भत्ता मिला था। लेकिन ऐसी ही एक अन्य स्टॉप-गैप फिल्म ‘आराधना’, जिसके निर्माता-निर्देशक शक्ति सामंत थे और जो नवम्बर 1969 में रिलीज़ हुई थी, ने न सिर्फ राजेश खन्ना के लिए आर्थिक भरपाई कर दी बल्कि उनके लिए गोल्डन जुबली का सिलसिला आरम्भ कर दिया। 1970 व 1971 के दौरान ‘दो रास्ते’ से शुरू होकर उनकी 13 फिल्में आयीं और सभी गोल्डन जुबली हिट रही। सुपरस्टार का जन्म हो चुका था, करियर बदलने की आवश्यकता नहीं थी। ‘इत्तेफाक’ वास्तव में इत्तेफाक (संयोग) से ही बनी। चोपड़ा उस समय ‘आदमी और इंसान’ डायरेक्ट कर रहे थे कि फिल्म की हीरोइन सायरा बानो बीमार हो गईं और उन्हें उपचार के लिए लंदन जाना पड़ा। यूनिट उनकी प्रतीक्षा में खाली पड़ा था। तभी एक कम बजट की फिल्म बनाने का विचार आया। 
एक इंटरव्यू में चोपड़ा ने बताया था, ‘बड़े प्रोडक्शन यूनिट को खाली बिठाकर हमें ज़बरदस्त आर्थिक नुकसान हो रहा था। इसकी भरपाई के लिए हमने एक कम बजट की फिल्म बनाने का निर्णय लिया। भाई साहेब (बड़े भाई बी.आर. चोपड़ा) और मैंने एक गुजराती नाटक ‘धुमस’ देखा था जोकि एक फ्रेंच नाटक पर आधारित था। मूल नाटक पर पहले ही हॉलीवुड में ‘साइनपोस्ट टू मर्डर’ फिल्म बन चुकी थी। मैंने सोचा कि इस पर दिलचस्प हिंदी फिल्म बनाई जा सकती है, बशर्ते कि हम उसे एक माह में समेट लें।’ मुख्य किरदार के लिए नंदा तीसरी अदाकारा थीं जिनसे सम्पर्क किया गया था। लेकिन चोपड़ा का मानना था कि उन्हें पहली चॉइस होना चाहिए था, क्योंकि नंदा ऐसी हीरोइन थीं जिनके बारे में दर्शक कातिल होने की कभी कल्पना नहीं कर सकते थे।
हीरो के लिए पहले शशि कपूर से सम्पर्क किया गया, लेकिन वह फिल्म ‘अभिनेत्री’ बनाने में व्यस्त थे। यूनाइटेड प्रोडयूसर्स ने राजेश खन्ना की खोज की थी, जिसमें बी.आर. चोपड़ा चयन समिति के प्रमुख सदस्य थे। खन्ना की डेट्स वरीयता पर मिल सकती थीं, इसलिए चोपड़ा ने उनका चयन किया। चोपड़ा ने अपने इंटरव्यू में यह भी बताया था, ‘अत्यधिक सतर्क होमवर्क के बाद हमने फिल्म बनानी शुरू की और राजकमल स्टूडियो में मात्र 28 दिन में काम पूरा कर लिया। राजेश खन्ना का चयन बढ़िया रहा। वह मन लगाकर अपना काम करते थे, उनमें एक्टिंग के लिए जूनून था ... और वह अपने डायलॉग भी बहुत जल्दी याद कर लेते थे।’
‘इत्तेफाक’ 4 अक्तूबर 1969 को सिनेमा घरों में लगी। वह बहुत सफल फिल्म साबित हुई। इसके बाद राजेश खन्ना की ‘आराधना’, ‘दो रास्ते’, ‘दुश्मन’ आदि फिल्में आयीं और भारत के पहले सुपरस्टार का जन्म हुआ। एक ऐसा सुपरस्टार जिसके जैसी कामयाबी और फैंस की दीवानगी आज तक भारतीय सिनेमा के इतिहास में देखी नहीं गई है। राजेश खन्ना की कार जहां से गुज़रती थी, वहां से लड़कियां मिट्टी उठाकर अपनी मांग भर लिया करती थीं। राजेश खन्ना ‘इत्तेफाक’ से जीरो से हीरो बल्कि सुपरस्टार बन गये।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर