सवालों के घेरे में

पिछले कुछ ही समय में जिस तरह अमृतपाल सिंह का नाम उभरा तथा उसकी गतिविधियों में तेज़ी आई, वह बेहद आश्चर्यजनक थी। उसकी ओर से दिए जाते बयानों की भी बड़ी चर्चा तथा आलोचना होती रही है तथा उनसे उसका एजेंडा भी स्पष्ट होता रहा है। पंजाब में रहते भिन्न-भिन्न वर्गों तथा समुदायों के लोगों के भीतर इसे लेकर सहम का माहौल भी बना रहा है। चाहे आज उसकी ओर से दिए जाते बयानों तथा उसकी पिछली गतिविधियों को लेकर उस पर तथा उसके कई साथियों पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत मामले दर्ज किए गए हैं। पुलिस सैकड़ों गिरफ्तारियां भी कर चुकी है तथा कुछ एक को तो असम के डिब्रूगढ़ की जेल में भी भेज दिया गया है। विदेशों में भी इस घटनाक्रम की प्रतिक्रिया-स्वरूप उग्र विचारधारा के लोगों ने  प्रदर्शन किये हैं।
लंडन में तो भारतीय दूतावास से जब्री राष्ट्रीय ध्वज भी उतार दिया गया था। ऐसे प्रदर्शनों के विरुद्ध भिन्न-भिन्न स्थानों पर बड़ी प्रतिक्रियाएं भी देखने को मिली हैं। चाहे इस सन्दर्भ में मुख्यमंत्री भगवंत मान द्वारा प्रदेश की शांति भंग करने वालों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई किए जाने की बात की गई है परन्तु इस पूरे घटनाक्रम से कुछ ऐसे ज़रूरी सवाल ज़रूर उभरते हैं, जिनका उत्तर सरकार को लोगों की अदालत में देना पड़ता है। इस संबंध में हाईकोर्ट द्वारा की गई टिप्पणियों से भी सरकार की कारगुज़ारी संबंधी ऐसे ही सवाल उभरते हैं। उच्च न्यायालय का यह कहना, कि अमृतपाल का पुलिस की  कार्रवाई से बच निकलना (यह कार्रवाई पुलिस द्वारा 18 मार्च को शुरू की गई थी तथा 22 मार्च सायंकाल तक भी उसे गिरफ्तार नहीं किया जा सका था) प्रशासन तथा पुलिस की अक्षमता का ही प्रगटावा है। उच्च न्यायालय ने यह भी कहा है कि प्रदेश में 80,000 पुलिस बल के होते हुए अमृतपाल  का बच निकलना क्या दर्शाता है? यह भी कि आज चाहे सरकार लोगों की सुरक्षा की बात कर रही है परन्तु यदि देश की सुरक्षा को अमृतपाल सिंह से इतना बड़ा ़खतरा था तो सरकार अब तक क्या कर रही थी क्योंकि अमृतपाल तथा उसके साथी तो पिछले कई महीनों से सरेआम हथियारों से लैस होकर हर स्थान पर घूमते रहे थे। विगत लम्बी अवधि से उसने लगातार जो बयान दिए थे, अब इतना समय व्यतीत होने के बाद उन्हें आधार बना कर मामले क्यों दर्ज किए जा रहे हैं? अमृतपाल तथा उसके साथियों ने कई दिनों तक पुलिस को चेतावनियां देने के उपरांत अजनाला पुलिस स्टेशन से धक्काशाही से अपने एक साथी को छोड़ने के लिए पुलिस को विवश कर दिया था। उस समय हुई झड़पों में एस.एस.पी. सहित कुछ पुलिस कर्मचारी घायल भी हो गए थे। यह घटना 23 फरवरी को घटित हुई थी परन्तु इसके 24 दिन बाद तक प्रशासन इस मामले पर क्यों सोया रहा तथा अब तक भी अमृतपाल के न पकड़े जाने के कारण प्रशासन की हो रही किरकिरी के लिए कौन ज़िम्मेदार है?
देश-विदेश में जिस तरह इस घटनाक्रम को पेश किया जा रहा है तथा जिस प्रकार इसे लेकर भिन्न-भिन्न प्रकार की अनेक प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं, उससे प्रदेश तथा देश के माहौल में गर्मी बढ़ती जा रही है जिसे किसी भी पक्ष से समाज के हित में नहीं माना जा सकता। यह ज़िम्मेदारी वर्तमान प्रदेश सरकार की है कि उसने किस तरह हालात को सम्भालना है ताकि उसके क्रिया-कलाप अनावश्यक सीमा तक विवादग्रस्त न बनते जाएं। नि:सन्देह यह समय सरकार के परिपक्व दृष्टिकोण की मांग करता है। 


—बरजिन्दर सिंह हमदर्द